...

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कीमत
गरीब होने की कीमत है
उसी को भर रहा हूं मैं
जिसपे पैसा हमसे ज़्यादा
उन्हीं से डर रहा हूं मैं।
कहां उनको खबर क्या बीतती है
हम गरीबों पे
बात जब वोट की आई
सभी को दिख रहा हूं मैं।
कमाई थी जो दो चारी
वो सारी आप ने धर ली
जो हक की आवाज़ उठाई
तो कीड़ों की तरह मसली।
बना कर बैल हमको
तेल भी पिरवा लिए हमसे
हिस्से की बात जब आई
तो सारी आप ने भर ली।।

– ध्रुव