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प्रतियोगी परीक्षाओं की किताबों के बालक
जिस व्यक्ति का ज्ञान “लक्ष्य” की किताबों तक सीमित है, जो व्यक्ति प्रतियोगी परीक्षाओं की किताबों में ज्ञान ढूँढ रहा है, उसका तो अभी जीवन भी शुरु नहीं हुआ है, वह तो अभी समझ की प्रथम सीढ़ी पर भी नहीं है। बेचारा है ऐसा आदमी, दया करनी चाहिए ऐसे आदमी पर, बेचारा रट-रट कर जीवन बनाने में लगा है।
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