...

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जिंदगी...

एक अजीब सी बैचेनी लेकर सोता हूं ......
न जाने कितनी अनकही कहानियां को बुनता हूं ,
कुछ उलझा कुछ सुलझा सा रहता हूं ,
सालों पुरानी दीवारों पर आज भी उसके नाम को, उंगलियों से लिखता हूं ,
बेबजह ही सही, रोज मैं इस अधूरे ख्वाब मे अपनी जिंदगी को संवरते हुए देखता हूं ,
हंसता हू रोता हूं,
मुझे पागल कहने बालों को रोज मैं बिकता हुआ देखता हूं,
धोखा ,मायूसी, बेबसी में
तमाम रिश्तों को टूटते हुए देखता हू,
एक अजीब सी बैचेनी लेकर सोता हूं .......


Rakesh Sharma

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