...

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मां ...
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मां केवल एक शब्द नहीं
जिसे दिनभर पुकारती हूं
मां तो वह आंचल हैं
जिसे दिनभर निहारती हूं
~•~•💌•~•~
एक फूलों की बगिया
जिसे दिनभर संवारती हूं
एक मीठी सी बोली
जिसे दिल में उतारती हूं
~•~•••~•~
एक प्यारा सा एहसास
जिसमे हर पल गुजारती हूं
जिसकी मुस्कान पे
अपना सबकुछ वारती हूं
~•~•••~•~
जिनकी हर सिख को
जीवन में उतारती हूं
जिनकी डांट को भी
मैं हंसकर स्वीकारती हूं
~•~•••~•~
जिसके अमूल्य प्रेम पर
अपना सबकुछ हारती हूं
जिनकी प्यारी बातों को
सबसे ज्यादा दुलारती हूं
~•~•💌•~•~
हां मां वह कविता है
जिसे दिनभर उचारती हूं
जिसकी मुस्कान पे
अपना सबकुछ वारती हूं
🌹
~•~•••~•~

©Pri Poetry 💫