...

4 views

शाम से बातें
वो ढलती शाम थी ख्वाबों से लिपटी थी
आकर जो मेरे पास बैठी थी।
कहा उसने, कि तू खोया सा है
कहा उसने, कि तू रोया सा है।
बदलकर करवटें कहा उसे मैंने,
कि तू हर बार आती है
क्यूँ हर बार रुलाती है।
खिसककर पास वो बैठी
थामकर हाथ वो बैठी।
कहा उसने की सुन वाणी
कि है धरती का तू प्राणी।
कि तू चलने का दम तो रख
पगले तू हिम्मत कम न रख।
अँधेरी रात आती है
अँधेरा साथ लाती है।
जो तू भी भानु सा बन जा
तपन की घाम सा बन जा।
फिर मैं, इक रोज आऊंगी
महकते ख्वाब लाऊंगी।
कहा उसने तो चलती हूँ
सपनों के साथ मिलती हूँ।
जो बनकर आस मेरे दिल में सिमटी थी
वो ढलती शाम थी ख्वाबों से लिपटी थी।
© Naveen Kumar