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ग़ज़ल
१२२ १२२ १२२ १२
कभी पास मेरे भी आओ सनम
ये दूरी ये हिज्राँ मिटाओ सनम
मेरी तिश्नगी यूँ मिटेगी नहीं
लबों से लबों को मिलाओ सनम
तेरी ज़ुल्फ़ में कहकशाँ दिख रहा
नज़ारा मुक़द्दस दिखाओ सनम
रुलाये अगर दुनिया ज़ालिम तुझे
मुझे सोच कर मुस्कुराओ सनम
छुपाओ न मुझसे सितम दुनिया के
मुझे दर्द अपना बताओ सनम
'सफ़र' नफ़रतों का है लंबा बहुत
मुहब्बत की ग़ज़लें सुनाओ सनम
© -प्रेरित 'सफ़र'
कभी पास मेरे भी आओ सनम
ये दूरी ये हिज्राँ मिटाओ सनम
मेरी तिश्नगी यूँ मिटेगी नहीं
लबों से लबों को मिलाओ सनम
तेरी ज़ुल्फ़ में कहकशाँ दिख रहा
नज़ारा मुक़द्दस दिखाओ सनम
रुलाये अगर दुनिया ज़ालिम तुझे
मुझे सोच कर मुस्कुराओ सनम
छुपाओ न मुझसे सितम दुनिया के
मुझे दर्द अपना बताओ सनम
'सफ़र' नफ़रतों का है लंबा बहुत
मुहब्बत की ग़ज़लें सुनाओ सनम
© -प्रेरित 'सफ़र'
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