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"ख़बर मेरी शायद तुझ तक, उस फिज़ा ने न पहुँचायी,"
"दिल में उठी एक हूक-सी, आज आख़िरी रात आयी,
खंगाले दिल ने दफ़्न लम्हे, शायद तू फिर याद आयी,
खुली गाँठ वो पुरानी-सी, जो यादों में थी लगाई,
लगी झड़ी फिर उन बातों की, जो तूने मुझसे बतलाई,
रिश्तों के बीच हमारे, गलतफहमी जो एक आई,
सुनी बात न तूने एक, दीवार हमारे बीच लगाई,
किया तेरा इंतज़ार बरसों, तुझे याद न मेरी आयी,
बरस पड़ी आँखें बेहद, इंतज़ार की इतनी इंतहाई,
भीड़ इतनी है साथ मेरे, फिर भी है कैसी तन्हाई,
तरस उठी दीदार को तेरे, ये आँखें भी पथरा आईं,
ख़बर मेरी शायद तुझ तक, उस फिज़ा ने न पहुँचायी,
सब आए हैं मय्यत पर मेरी, एक सिर्फ़ तू ना आयी,"
*(Picture downloaded from the Internet)
ASHOK HARENDRA
© into.the.imagination
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