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मास्क
#मास्क
लखनऊ मेट्रो में आपका स्वागत है, कृपया पीली रेखा का ध्यान रखें..!, मेट्रो से आने वाले यात्रियों को पहले उतरने दे, लखनऊ मेट्रो में सफर करते वक्त फेस मास्क पहनना अनिवार्य है, ये सूचनाएं गूंज रही थी। चारबाग मेट्रो रोजाना की तरह आज भी शहर की एक आबादी की रौनक के साथ सजा हुआ था। प्रीतम food court में मजे से मोमोज का आनंद ले रहा था। खाना खत्म हुआ उसने पैसे दिए और टिस्सू पेपर से हाथ मुंह पोछते हुए मस्त चाल से बाहर निकलकर yellow line के तरफ जा ही रहा था की लखनऊ पुलिस के एक हवलदार ने उसका हाथ पकड़कर एक तरफ चलने को इशारा कर दिया।
प्रीतम हवलदार के द्वारा दिखाए गए रास्ते पर चलने लगा लखनऊ मेट्रो प्रतिदिन मुंशी पुलिया से कृष्णा नगर की ओर चलती है ।
प्रीतम प्रतिदिन चारबाग से सिंगार नगर की ओर निकलता है क्योंकि वह शृंगार नगर में ही जॉब करता है यह उसका रोजाना का काम है इसलिए वह कान में एयर फोन लगा कर के गाना सुनता रहता है लेकिन आज जैसे ही प्रियतम अपने सीट पर बैठता है तभी अचानक उसके सामने से एक लड़की आती है चेहरे पर मास्क हाथ में मोबाइल पर आंखों में चश्मा लड़की बोलती है क्या मैं बैठ सकती हूं?
प्रियतम उसको बड़ा ध्यान से देखता है काफी देर देखता ही रह जाता है लड़की दोबारा बोलती है क्या मैं बैठ सकती हूं प्रीतम हां जरूर और प्रीतम थोड़ा साइड हो जाता है लड़की उसके बगल में बैठ जाती है और मोबाइल में कुछ देखने लगती हैं लेकिन अब प्रीतम तो बस उसे ही निहारे जा रहा था।
कुछ समय बीता है प्रीतम आलमबाग पहुंच जाता है और लड़की उसे पूछती है यह सिंगार नगर कितनी दूर होगा प्रीतम बोलता है बस थोड़ी प्रीतम पूछता है क्या आप भी वही जा रही है लड़की ने कहा हां प्रीतम बोला मैं भी वहीं जा रहा हूं दरअसल मैं वहां पर जॉब करता हूं लड़की बोली नहीं मैं जॉब नहीं करती दरअसल मैं वहां अपनी सहेली कहां जा रही हूं और मैं चारबाग में ही रहती हूं।

आज काफी दिनों बाद शहर से लखनऊ आई हूं तो इसलिए थोड़ा याद नहीं क्योंकि जब मैं यहां पर रहती थी तब यहां मेट्रो नहीं चलता था इसलिए प्रीतम कोई बात नहीं अपना ही शहर है और अपने लोग हैं आप अच्छे से देख लीजिए थोड़ी देर में सिंगार नगर आ जाता है और लड़की उतर के जाने लगती हैं प्रीतम पूछता है आपका नाम क्या है लड़की बोलती है पहले ही बार में सब कुछ पूछ लेंगे और मुस्कुराते हो चली जाती है।
प्रियतम भी अपने रास्ते पर निकल पड़ता है वहीं थोड़ी दूर पर उसको अपने ऑफिस पहुंचना था जब वह पीछे मुड़कर देखता है तो लड़की काफी आगे निकल चुकी होती है एक उम्मीद के साथ कि वह पीछे पलटेगी प्रीतम उसको निहारता है और लास्ट में वह लड़की भी एक दफा हल्के से पीछे मुड़कर उसको देखती है और मुस्कुरा कर चली जाती है प्रीतम अपने ऑफिस पहुंचता और रोजाना की तरह काम करता है ।
पर आज उसके अंदर अजीब सी बेचैनी है पता नहीं वो लड़की मिलेगी या नहीं सोच रहा है धीरे-धीरे समय बीतने लगता और शाम हो जाती है प्रीतम काम खत्म करके वही मेट्रो स्टेशन पर आता है और इधर उधर देखता है शायद वो लड़की मुझे दिख जाए पर नहीं प्रीतम उदास मन से अंदर जाकर बैठ जाता और देखता है तो उसके होश थोड़े गायब से हो जाते हैं ।
जिस लड़की को वह बाहर खोज रहा था वह तो अंदर ही बैठी थी वह लड़की हल्की सी मुस्कान के साथ हाथों से इशारा करती है प्रीतम भी हाथों से इशारा करता है और बोलता है हाय! फिर दोनों एक दूसरे को देखते ही रहते हैं और प्रीतम सर नीचे कर लेता है।
वह क्या बोली उसकी कुछ समझ में नहीं आ रहा था बात चलती है और उसी लेती हो आखिर तुम्हारा नाम क्या है प्रीतम बोलता है मेरा नाम प्रीतम है और तुम्हारा थोड़ा शर्माते हुए वह भी बोलती हैं मेरा नाम सान्विका है लोग मुझे सोनू बोलते हैं।
प्रीतम बोलता है कोई बात नहीं हम भी सोनू ही बोलेंगे सोनू बोलती है अच्छा जो आपकी मर्जी ऐसे ही बात होती रहती है और दोनों फिर से चारबाग पहुंच जाते हैं सोनू पूछती है तुम कहां रहते हो प्रीतम मैं तो बस इसी स्टेशन के पीछे और आप हम भी यहीं रहते हैं थोड़ी दूर पर अरे घर तो बता दीजिए नहीं घर जाने की क्या जरूरत है मुझे जानते हो इतना काफी है ।
एक शर्मीली अंदाज में उसने बोला प्रीतम कोई बात नहीं आपको जानता हूं इतना बहुत है कोई नंबर है आपका सोनू हां क्यों नहीं मिल सकता है एक बहुत ही शांत और आशावान अंदाज में प्रीतम बोला हां क्यों नहीं सोनू बोली लेकिन क्या आज ही ले लोगे या कल के लिए भी रहने दोगे कल मिलते हैं अऔर ऐसा बोल कर वह ऑटो मैं बैठ जाती है और बाय बोल कर चली जाती है प्रीतम भी अपने घर चला जाता है प्रीतम का रात बहुत ही मुश्किल से कटता है पर किसी तरह होता है और सुबह फिर उसी समय बन ठन के कुछ देर पहले चारबाग आ जाता है वह खड़ा इधर उधर देख ही रहा था तभी पीछे से आवाज आती है किसे देख रहे हो नहीं किसी को भी नहीं चौंककर प्रीतम बोलता है पीछे मुड़कर देखता है तो सोनू खड़ी होती है सोनू बोलती है वाह कमाल है देख भी रहे हो और बोलते हो कि किसी को नहीं देख रहा हूं चलो चलते हैं ना तब तक मेट्रो आ जाती है और दोनों बैठ जाते हैं आज ही उसने मास्क लगा रखा था पर बहुत ही हसीन लग रही थी उसके जुल्फें जो उसके झुमकों के बगल में लटक रही थी बहुत ही सुंदर लग रही थी खास करके तब जब बार-बार वह अपने जुल्फों को अपने कान के पीछे करती और एक हल्की सी हवा के झोंके से वह फिर से नीचे लटक के उसके गाल को छूने लगते थे यह बार-बार हो रहा था तभी प्रीतम बोलता है रहने दो ना किसी को तो तुम्हें छूने का फायदा उठाने दो बहुत सुंदर लग रही हो जब तुम्हारे बाल लटकते रहते हैं तो अच्छा मुझे तो पता ही नहीं था थोड़ा शर्माते हुए सोनू बोलती है हां कुछ चीजें दूसरों के देखने में अच्छी लगती है प्रीतम बोला दोनों एक दूसरे को देखे जा रहे थे एकटक अपलक ऐसा लग रहा था मानो समय रुक गया हो बस हल्की सी हवा चल रही है जो उनके जुल्फों को उड़ा रही है और यह ट्रेन किसी परिंदे की भर्ती आसमान की उन काले काले बादलों से नीचे उड़ान भर रहा है जहां या तो सिर्फ सागर है या तो सिर्फ झीलें और कुछ नहीं प्रीतम उसके से आंखों को निहारता ही जा रहा था तभी अचानक पीछे से मेट्रो स्टेशन की आवाज आयी जो किसी रंग में भंग डालने जैसे ही थे मानो आज फिर से किसी व्याध ने दो हंस के जोड़ों को अलग कर दिया हो पर आज कोई बाल्मीकि नहीं है उनको श्राप देने के लिए दोनों फिर से उतर जाते हैं पर आज प्रीतम बोलता है चलो ना कुछ खा लेते यहां मोमोज बड़े अच्छे मिलते हैं अब तुम कह रहे हो तो चलो खा ही लेती हूं दोनों पास के ही एक दुकान में जाते हैं और मोमोज खाते पर मोमोज सिर्फ सोनू ही खा रही थी प्रीतम तो उसे निहारे ही जा रहा था थोड़ा समय बीत जाता है मोमोज खत्म हो जाता है सोनू बोलती है अच्छा चलूं हां शाम को मिलते हैं और फिर दोनों चल पड़ते हैं दोनों एक दूसरे के विपरीत पर इस बार कुछ अलग होता है प्रीतम फिर पीछे मुड़कर देखता शायद आज देख ले और होता ही कुछ ऐसा वह मुस्कुरा के एक बार पीछे देखती और फिर अपनी नजरें झुका लेती है या किसी तीर से कम नहीं था जो आज प्रीतम के हृदय में लग चुका था पर यह कोई दर्द नहीं दे रहा था बल्कि आज तो बहुत खुश था प्रीतम खैर खुशी मन से प्रीतम अपने ऑफिस पहुंचता है और पूरे दिन का काम हो जाने के बाद शाम को फिर मेट्रो स्टेशन पहुंच जाता है और आज उसे नहीं देखना पड़ता वह खुद इसे इधर उधर देख रही थी तभी प्रीतम हाथ मिलाकर उसे इसारा करता है फिर दोनों बैठ जाते हैं और चल पड़ते हैं प्रीतम पूछता है कि आज फिर अपनी सहेली से मिलने आई थी वह बोलती है हां आज थोड़ा काम था इसलिए अच्छा क्या कल तुम फिर आओगी नहीं कल नहीं कल कोई बहाना भी तो नहीं है अच्छा तो क्या सोचा है कुछ नहीं अभी तो तभी वह प्रीतम की फाइल उठाती है और देखती है अरे वाह आपकी राइटिंग तो बहुत ही अच्छी हैं हां लिख लेता हूं थोड़ा बहुत क्या बोर नहीं होते इतना लिखते लिखते नहीं काम है ना तो बोर कैसे होंगे शायद इसीलिए मैं बोर नहीं होता अच्छा और फिर दोनों बात करते करते वापस उसी जगह पहुंच जाते हैं जहां से उन्हें बिछड़ना है पर आज जाते हुए सोनू बोलती है कभी आप अपने फाइल को पीछे से भी देखिएगा पीछे की राइटिंग तो आपकी और भी अच्छी है और ऐसा बोल कर शर्माते हुए सोनू चली जाती है प्रीतम सोचता है और फिर कुछ सोच कर जब फाइल पलट ता है तो देखता है कि उसमें उसका नंबर लिखा था और लिखा था शाम को 7:30 बजे मैसेज कर देना हां कॉल मत करना मैं करूंगी अब तो प्रीतम की खुशी का कोई ठिकाना नहीं था वह घर पहुंचता है और बस इसी इंतजार में रहता है कब 7:30 बजे और वह मैसेज करें मानो आज का दिन कट नहीं रहा था जैसे आज समय बहुत धीरे धीरे चल रहा हो बीतने का नाम नहीं ले रहा था खैर किसी तरह शाम को जैसे ही 7:30 बजे तुरंत प्रीतम ने मैसेज किया हाय मानो आज उसने कोई देश जीत लिया ऐसी खुशी थी अब इंतजार था उधर से रिप्लाई आने का कुछ मिनट बीते और उधर से रिप्लाई आया हाय! फिर फोन की घंटी बजी तो मानो प्रीतम उछल ही पड़ा और फोन उठाया बोला हाय! उधर से उसने भी पूछा क्या मेरा इंतजार कर रहे थे प्रीतम थोड़ा सा हडबडाते हुए बोला नहीं नहीं ऐसी बात नहीं है अच्छा क्या सच में इंतजार नहीं कर रहे थे मायूस होते हुए सोनू ने पूछा नहीं ऐसी बात नहीं है हां मैं कर रहा था सोनू खुश हुई प्यार तो नहीं हो गया है और हंसने लगी प्रीतम भी हसने लगा अरे नहीं इतना जल्दी भला प्यार होता है पर मुझे तो हो गया है तुम्हारी बातों से और हंसने लगी ऐसे ही बात चलती रही और घंटो बीत गये है पता ही नहीं चला प्रीतम बोला चलो कहीं मिलते हैं ना सोनू ने कहा कहां इमामबाड़ा या अंबेडकर पार्क नहीं कहीं और मिलते हैं जैसे कि गोलघर या फिर गोमती नगर या कहीं और पर मुझे तो इमामबाड़ा देखना अच्छा लगता कोई नहीं तुम जहां कहोगी वही मिलेंगे यह भी अच्छी बात है पर आज नहीं किसी और दिन चलो ठीक है और ऐसे बात होते होते 3 घंटे में अच्छा तो मैं फोन रखती हूं कल बात करेंगे और ऐसा क्या कर फोन काट दिया फिर सुबह हुई प्रीतम का फिर ऑफिस जाना लेकिन इस बार मेट्रो में सोनू नहीं वह अकेले पर फिर भी उसके चेहरे पर एक खुशी थी वह ऑफिस पहुंचता काम करता और फिर घर शाम को सोनू के साथ में बातें यही रोज का काम था हंसी मजाक और ठिठोली दोस्ती मनों प्यार में बदलता जा रहा था सोनू का तो पता नहीं मगर प्रीतम तो अपना दिल कब का हार बैठा था पर वही कहते हैं ना कि सच्चा आशिक कभी बयान थोड़ी कर पाता है फिर भी बातें तो होती ही थी धीरे-धीरे एक दूसरे के बारे में जानना और फिर बहुत ज्यादा जानना पर एक अंतर था सोनू ने प्रीतम को तो देख रखा था मगर प्रीतम को सोनू की सिर्फ आंखें थी क्योंकि चेहरा दोस्ती कभी देखा नहीं जब भी देखा तो सिर्फ और सिर्फ आंखें मुंह पर तो मास्क लगा रहता था उस दिन जब मोमोज खा रहे थे तो भी प्रीतम को यही लगा था कि उसके मुंह पर मास्क हैं इसीलिए वह उसके आंखों को निहारे जा रहा था अगर उसे याद होता कि कमबख्त खाते वक्त कोई मास्क थोड़ी लगाता है तो शायद उसके सामने सोनू का पूरा चेहरा रहता फिर भी कमाल है प्यार प्यार होता है भले ही प्रीतम यह बात ना माने पर उसको प्यार हो चुका था ऐसे ही रोजाना का काम था सुबह काम शाम को सोनू के साथ बातें पर 1 दिन कहते हैं ना कि जब खुशी बहुत ज्यादा मिलने लगती है तो गम कभी भी आ सकता है एक दिन शाम को कॉल आता है और सोनू थोड़ी सी उदास थी और बोलती है चलो ना कल मिलते हैं तुम जहां बोलो प्रीतम भी सोचता है आज इसलिए कहा तो सही कि हम मिलते हैं और हम जाता है सोनू समय बता देती है और फिर भी तुम उसी समय चारबाग पहुंच जाता है दोनों पहले अंबेडकर पार्क फिर इमामबाड़ा फिर गोलघर फिर भूल भुलैया और बहुत सारी चीजें चिड़ियाघर पूरा दिन घूमते हैं बातें करते हैं मगर इस बीच आज सोनू प्रीतम को निहारे जा रही थी मानो वह उसकी हर बात उसकी हर तरीके की मुस्कान चेहरे सब कुछ अपनी आंखों में समा लेना चाहती हो वह उसे बस निहारे जा रही थी पूरा दिन बीत गया और शाम को जब दोनों लौटने लगे तो सोनू फफक कर रो पड़ी और उसके गले लग गई और बोली क्या तुम सच में मुझसे प्यार करते हो या दोस्ती प्रीतम बोला अरे क्या दोस्त प्यार नहीं कर सकता तुम तो मुझे बहुत पसंद हो यह बात सुनकर सोनू खुश हो जाती हो और उसकी आंखों में एक अजीब सी खुशी थी मानो बहुत संतुष्टि के भाव हो वह उसे खत देती है और कहती है कि तुम इसे 5 दिन बाद पढ़ना और यह कह कर चली जाती है प्रीतम घर आता है पर आज शाम को सोनू का कॉल नहीं आता है दूसरे दिन भी नहीं आता है तीसरे दिन भी नहीं आता है और चौथे दिन भी जिस दिन सोनू ने खत पढ़ने को कहा था प्रीतम उस दिन खत खोलता है और पड़ता है प्यारे दोस्त मुझे मालूम है तुम मुझसे बहुत प्यार करते हो मैं भी तुमसे बहुत प्यार करती हूं काश तुम मुझे कुछ दिन पहले मिले होते शायद महीनों पहले तो मैं सब कुछ छोड़ कर तुम्हारे पास चली आती तुम मुझे जिस दिन मिले थे उस दिन मैं अपने सहेली से मिलने गई दरअसल मैं उसे अपने शादी का कार्ड देने गई थी मेरी शादी 10 दिन पहले तय हो चुकी थी हां मुझे दूल्हे से तो प्यार नहीं अभी पर मेरी शादी तय हो गई मेरा फर्ज बनता है कि मैं अपने घर वालों का ख्याल रखूं मुझे मालूम है तुम इस बात को समझोगे और कभी अपने घर वालों को उदास नहीं होने दोगे इसीलिए मैं तुमको मिलना चाहती थी ताकि मैं तुमको जी भर के देख सकूं और हां तुम मुझे बहुत पसंद हो सबसे ज्यादा सबसे अच्छे सबसे प्यारे भी अपना ख्याल रखना अलविदा दोस्त चारों ओर एक अजीब सी शांति एक गहन उजाला मगर उदासी से भरा हर ओर सन्नाटा मानों सारी दुनिया रुक सी गई हो।
खत पढ़कर प्रीतम बैठ सा जाता है उसके मुंह से कोई आवाज नहीं निकलती बस एक अजीब सी चमक आंखों में और मुख पर एक दर्द भरी मुस्कान ऐसा लगता था मानो हंस भी रहा है और रो भी रहा है कई दिन बीत गए महीने और साल उसके चेहरे पर पहले जैसी मुस्कान नहीं थी एक दिन अचानक प्रीतम फोन चला रहा था और तभी आवाज आई क्या मैं आप के बगल में बैठ सकती हूं प्रीतम ने चेहरा देखा और बोला हां फिर वही बातें और गाड़ी धीरे धीरे चल पड़ी सब कुछ अलग था पर एक चीज था जो हर बार था और वह था कि उस चेहरे पर लगा हुआ मास्क जो हर बार चेहरे को सामने नहीं आने दे रहा था आ रही थी तो सिर्फ भावनाएं बातें और हंसने की आवाज।।

लेखक अरुण कुमार शुक्ल