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रहस्मयी द्वार
विवेक को हमेशा पुरानी हवेलियों और प्राचीन वस्त्रों में रहस्य की गंध महसूस होती थी। जब उसने अपने दादा की हवेली के तहखाने में वह पुराना और धूल से ढका दरवाज़ा देखा, तो उसकी उत्सुकता चरम पर थी। दरवाज़े पर अजीबोगरीब चिन्ह और प्रतीक उकेरे गए थे, जो उसे किसी पुराने गुप्त रहस्य की ओर इशारा करते दिख रहे थे। विवेक ने जब दरवाज़े की कुंडी घुमाई, तो एक जोरदार गड़गड़ाहट के साथ दरवाज़ा खुल गया, और वह चमकदार रोशनी में डूब गया।

जैसे ही विवेक ने अपनी आँखें खोलीं, वह खुद को एक प्राचीन सभ्यता के मध्य खड़ा पाया। यह दुनिया साधारण नहीं थी—यह गुप्तकाल था, जब कला, विज्ञान और संस्कृति का अद्वितीय उत्कर्ष था। हवेली के धूल भरे तहखाने से अब वह एक विशाल और सजीव साम्राज्य के मध्य खड़ा था। उसके चारों ओर सुनहरे वस्त्रधारी लोग, महलनुमा इमारतें, और सड़कों पर हाथियों के जुलूस थे। उसे समझ में आया कि वह अब एक साधारण पर्यटक नहीं था; उसे इस दुनिया में किसी विशेष उद्देश्य के लिए बुलाया गया था।

विवेक को तभी एक वृद्ध संत मिले, जिनकी आँखों में ज्ञान की गहराई थी। संत ने बताया कि विवेक को इस युग में बुलाने का कारण एक गुप्त पुस्तक थी, जो अपार शक्तियों से भरी थी। वह पुस्तक अब खो चुकी थी, और अगर वह गलत हाथों में पहुँच जाती, तो इससे साम्राज्य को विनाश का सामना करना पड़ता। संत ने उसे बताया, "यह पुस्तक केवल वही व्यक्ति पा सकता है, जो खुद अपनी बुद्घि और साहस से इस यात्रा की गुत्थियों को सुलझा सके।"

1. समय की मृगतृष्णा

विवेक को पहले सुराग से समझ में आया कि उसे उस मंदिर तक पहुँचना है जहाँ समय का पहिया उल्टा चलता है। वह सुनसान और धूल भरे रास्तों से होकर एक प्राचीन मंदिर तक पहुंचा, जो चार द्वारों से घिरा हुआ था।
पहले द्वार पर एक शिला पर उकेरे गए शब्दों ने उसका ध्यान खींचा:

"समय वही देखेगा, जो...