...

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विरह के विरुद्ध प्रतीक्षा,नही उसके समान अर्थ में प्रेम लाना पड़ता है..!!
प्रेम भले ही पूजा समान हो
पर उस पूजा को सफल करने हेतु
आवश्यक है एक" तप..!!!
जैसे ईश्वर की कामना के लिए
एक अखंड एवम कठोर तप अनिवार्य है...
तो प्रेम की कामना मात्र पूजा से
कैसे संभव है..???

प्रेम कर लेना कोई बड़ी बात नही..
पर...

उसे शाश्वत रूप देना अपने आप में एक तप है..!!

बस कुछ खाली पन्ने भरने पड़ते है..!!
यादों को समेटना पड़ता है..!!
और
काली सियाही से भरना पड़ता है..!!
नजरो में इंतजार
सवार के रखना पड़ता है..!!
कुछ जवाब ढूंढने पड़ते है..!!
कुछ सवाल छोड़ने पड़ते है..!!
आसुओकी ठंडक में ..!!
जज्बात के स्वेटर बुनने पड़ते है..!!
बस यूंही एक तप करते करते..!!
कभी प्रेम को जनम देना पड़ता है..।।
तो कभी खुद में उसे जीना पड़ता है..!!

और "विरह के विरुद्ध "प्रतीक्षा को नही
उसके समान अर्थ में" प्रेम को लाना पड़ता है..!!!
© A.subhash
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