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आत्मविश्वास....!
कहानि है.. निहारिका की।
उसेके पति को इस दुनिया से जाकर आज पंधरा दिन हो गए थे। घर की सारी चेहेल पहल भी शांत हो चुकी थी। उसके ससुराल के मायके के सारे रिश्तेदार अन्त्यसंस्कार को 13 दिन पूरे होते ही चले गए थे। कब ये सब खत्म हो मानो जैसे वो इसी बात का इंतजार कर रहे हो।

वरुण का ऐसे अचानक चले जाना इस बात के लिए उससे ही दोषी ठहराया जा रहा था। सारा को गोद मे लिए वो शांत सी गैलेरी मैं बैठी थी। उसे अब ये सारी जिंदगी खालीखालीसी लगने लगी थी। जैसे वो कही खो सी गई हो।
song

Door bel..... अचानक बजे डोरबेल के आवाज से वो होश मैं आई। दरवाजा खोला तो सामने छोटा देवर खड़ा था। भाभी काम के सिलसिले मैं पूना जा रहा हु। आपकी इजाजत हो तो गाड़ी लेकर जाऊ...? उसने दरवाजेमैं खड़े रहकर ही पूछा। उसने बिना कुछ कहे गाड़ी की चाबी देवर को देदी।

जब उन्होंने एक्टिवा लि थी तब तो सारा का जन्म भी नही हुआ था। वो हमेशा कहा करते थे कि तूम भी स्कूटी चलना शिख लो। पर उनकी बाते सुनकर नेहा हमेशा कहती थी कि आप हो ना तो मुझे ये सीखनेकी क्या जरूरत है? फिर सारा का जन्म होने के बाद कार ली। पर नेहा को येसब सीखना पसंद नही था। उसने सोचा आज अगर वरुण होते तो किसिकी हिम्मत नही होती गाड़ी की चाबी मांगने की। पर फिर खयाल आया कि गाड़ी ऐसी ही पड़ी रहनेसे तो अच्छा है के अपनेही घर के लोग उसे इस्तिमाल करे।

उतने ही समय मैं मोबाइल बेल बजी किसी कंपनी का कॉल था..." mam आपका कुछ पेमेंट बाकी है बस यही याद...