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धर्म का मर्म
हिंदू धर्म और इस्लाम में क्या समानताएं हैं? कैसे लोग कहते हैं कि एक धर्म दूसरे धर्म से अच्छा है?

✍🏼 सभी धर्मों में एक ही समानता होती है। और वह यह, कि- सभी का लक्ष्य आदमी को इंसान बनाना होता है !

हर धर्म अपने आप में अनूठा होता है, और लक्ष्य प्राप्ति हेतु पूर्णतः"परफेक्ट" होता है।

कोई भी धर्म किसी अन्य धर्म से अच्छा या बुरा नहीं होता।

किसी भी धर्म के अनुयायी अच्छे या बुरे‌ होते हैं।

अच्छे अनुयायी अपने धर्म के अनुशीलन द्वारा निर्मल मन प्राप्त करते हैं और अन्य धर्म के प्रति सम्मान भाव रखते हैं।

बुरे अनुयायी धर्म के बजाय धर्म के ठेकेदारों (बिचौलियों) के पिछलग्गू बनकर कुटिल मन प्राप्त करते हैं और अन्य धर्मों को हेय दृष्टि से देखते हुए नफरत का समां बनाते हैं।

इसलिए तथाकथित धर्मों को संप्रदाय कहा जाना चाहिए।

धर्म तो वस्तुत: एक ही है: और वह है, मानव -धर्म।

यह मानव-धर्म ही समस्त संप्रदायों में अनुस्यूत होता है।

मनुष्य विभिन्न संप्रदायों के माध्यम से मानव-धर्म का अनुशीलन करके अपनी चेतना की उद्विकास-यात्रा संपूर्ण करता है और अध्यात्म के आयाम में पदार्पण करता है, जहां वह अपने अहंकार को लांघकर समष्टि से एकत्व की अनुभूति के रूप में जीवन्मुक्ति प्राप्त करता है।

मानव-चेतना ईश्वर से नि:सृत हुई है। अतः ईश्वर से एकत्व साध लेना ही उसकी चेतना-यात्रा का परमलक्ष्य है।

धर्म के अभाव में, अथवा अंधविश्वासों के प्रभाव में मनुष्य पशुत्व की ओर अधोगमन कर जाता है।

धर्म के अनुशीलन द्वारा वह आदमी से इंसान बनता‌ है ।

अन्ततः अध्यात्म के आयाम में अपने क्षुद्र अहम् (Ego) से मुक्त होते हुए, स्व-चेतना से परे ईश्वरत्व (पराचेतना) में छलांग लगाकर मनुष्य अपनी चेतना की उद्विकास-यात्रा को पूरी करता है।

अत: इसप्रकार के व्यर्थ प्रश्नों और बहसों में उलझकर अपना जीवन बर्बाद करने से बेहतर है, हम अपने अपने धर्म का ईमानदारी से अनुशीलन करते हुए, अन्य धर्मों के प्रति सद्भाव, सम्मान और सदाशयता बनाए रखें।