...

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वो अधूरी बनी दुकान
सुनो न,आज बारिश को देख कर, हमें वो बारिश याद आ गई।जब आपने हमें मिलने को बुलाया था। पता है कितनी मुश्किल से मां को हजार बहाने बनाये थे।कि कुछ काम है अभी आते हैं।कहकर फुर्ती से निकल गए,और देखा हमने आपको ,आप गली में उस अधूरी बनी दुकान जिसका आधा शटर खुला हुआ था ,वहां खड़े थे।
हम भी वहीं आ कर खड़े हो गए। कहीं जा सकते नहीं थे। बारिश हो रही थी, और दूसरी बात आप पैदल आये थे। और मां को भी बोला था कि अभी आती हूं। कितना डर था पहले न,अब के बच्चे देखो आराम से हाथों में हाथ डाले घूमते हैं। ख़ैर ! आ तो गए थे दोनों मगर बात होती ही कहां थी हमारे बीच या तो लड़ते थे या महीनों तुम्हें हमारी याद नहीं आती थी। पता है अब सोचती हूं सच में मोहब्बत थी भी कि नहीं। लेकिन तुम्हारे सिवा वैसा आज तक महसूस नहीं हुआ कभी। ख़ैर शायद तुम्हें ये सब याद न हो लेकिन हमारे लिए ये सब ही तो है जो हमें जीने की उमंग देता है।बस चाहे बात ज्यादा न हुई थी लेकिन तुम्हारे साथ हर पल हमें अनमोल लगता था।काश आप भी ऐसा ही महसूस करते तो शायद हम आज साथ होते। ख़ैर जाने दीजिए ये सब बस खुश रहो, क्योंकि हमारी तरह तुम तड़पो हमें मंज़ूर नहीं।
© Anu