शिवा
बात सन 1632 की है . एक छोटा सा गांव जिसका नाम मलकापुर था, एक तरफ से ऊंची ऊंची पहाड़ियों से घीरा हुआ था और एक तरफ कुछ कोस दूर पर ऊंचे ऊंचे रेत के टीले थे .
इन्ही के बीच में 80 घर का एक छोटा सा गांव था मलकापुर.
गांव की प्राकृतिक सुंदरता देखते ही बनती थी .
बारिश का पानी पहाड़ियों की तलहटी मैं इकठ्ठा होकर एक सुंदर तालाब का रूप ले लेता था .
सारे गांव की पानी की पूर्ति इसी तालाब से होती थी .
इस तालाब के तल में बुजुर्ग लोगों ने 3 बड़े कुए बना रखे थे ,कि जब तेज गर्मी का मौसम हो तो तालाब का पानी अगर सूख भी जाए तो इन कुओं में पीनेे के पर्याप्त पानी रह जायेगा .
तालाब के किनारे ही पहाड़ी पर भगवान कृष्ण का सुंदर सा मंदिर बना हुआ था. इस मंदिर की दीवारें सदियों पुरानी लगती है.
यह कब से बना हुआ है किसी को भी नहीं पता था.
सारे गांव वाले कहते हैं की , यह बहुत पुराना मंदिर है .
जब यह मंदिर बनाया गया था, तब इस तालाब का भी जीणोद्धार किया गया था.
तालाब के पानी की शुद्धता रखने के लिए उस वक़्त के ठाकुर साहब राम सिंह जी ने तालाब के तल में तांबा लगवा दिया था.
पहाड़ पर बहुत छोटी-छोटी गुफाएं है कहते है कि यहां कभी ऋषि मुनि तप किया करते थे
मंदिर से होता हुआ रास्ता सीधा गांव को जाता हैैं. मंदिर गांव से लगभग आधा कोस की दूरी पर था
रास्ते में बहुत सारे नीम के पेड़ और बहुत सारी बेर की झाड़ियां थी.
मोरों का झुंड और कोयल की आवाज रास्ते को और मनमोहक बना देेते हैं.
घास फूस से बने घर और गोबर से निपा गया आंगन, चौक मे चोक से कोरी गयी रंगोली घरों को महलो सा रूपवान बनाती थी
इस गांव में एक 16 साल का लड़का, जिसका नाम शिवा है ,अपने पिताजी प्रताप सिंह और माता देवयानी के साथ रहता है
शिवा के घर की स्थिति बहुत चिंताजनक थी
कम जमीन और पिछले साल बारिश ना होने की वजह से बचा खुचा अनाज भी समाप्त हो गया था
प्रताप सिंह जी ने नजदीकी गांव के लाला सुखराम से पैसे उधार ले रखे थे.
इस बार भी बारीश ना होने की वजह से शिवा गुरुकुल न जा सका.
शिवा को इस बात का गहरा दुख था पर घर की स्थिति देख वह कुछ न बोलता था.
शिवा अपने पिताजी के साथ आज मन्दिर आया हुआ था.
शिवा मंदिर की दीवार से तालाब को देखते हुवे
पिताजी - क्या देख रहे हो शिवा
शिव - तालाब कितना गहरा है ना
पिताजी - अभी तो पानी ही कहां है बेटा, पहली सीढ़ी से भी 2 हाथ ऊपर तक पानी रहता था, अब जाने कब बारिश हो, कुओं का पानी भी सूखने को हैं
शिव - इस तालाब का तल ताम्बे का था क्या?
पिताजी - हां बेटा कहते तो हैं
शिव - पर हमारे गांव में इतना ताम्बा आया कहां से
पिताजी - कहते हैं यहां कोई महात्मा थे जिनकी तपस्या पूर्ण हो चली थी पर गाँव की एक युवती पर अपना मन हार बैठे थे
सदगति ना होने से अगले जन्म में मणिधर सांप का स्वरूप मिला.
शिव - क्या मणिधारी सांप सच मे होते हैं
पिताजी - कहते तो है बेटा. मणि की शक्तियों से ये नाग इच्छाधारी होते हैं, मनचाहा रूप धर लेते हैं.
शिव - कैसे पता चलता है कौन सा नाग मणिधारी है
पिताजी - कहते हैं अगर मणिधारी नाग 1 कोस की दूरी पे हो तो आप के शरीर मे खुजली होने लग जाती हैं और पूर्णिमा को साँप में मणि ज्योत सी चमकने लगती हैं, तभी जानना संभव हैं
शिव - अब कोई मणिधारी नाग नही है क्या?
पिताजी - होगा बेटा
शिव - ये मंदिर हमारे गांव से आधा कोस दूरी पर हैं, अगर होता तो सारे गांव को खुजली हो जाती ( हंसता हैं)
पिताजी - ठाकुर राम सिंह जी को नाग देवता पहाड़ी के उस पार दिखे थे.
पहाड़ी के पीछे थोड़ा जंगल सा हैं, सूखे झाड़ो से बंधा हुआ सा. जंगली जानवरों के रहने का अच्छा ठिकाना है वो.
उस समय भी अकाल था औऱ कोई जरक उनकी बकरी उठा के ले भागा था.
अकाल में वही धन था, वो पीछा करते उस पार चले गये.
शिव - क्या उन्हें बकरी मिली
पिताजी - नही , वो सुबह के गए शाम लोटे, पर उनके मुख का तेज व निर्भय चेहरा देख सब दंग रह गए, उनको नाग देवता ने मणि बख्शी थी.
उसी मणि से गाँव के सब दुख दूर हुवे व खुशहाली लोटी.
वो जो भी करना चाहते थे वो काम पूरा हो जाता था
रात को दीपक में वो मणि रख देते थे और उसी रौशनी में उन्होने ये बातें लिखी, जो आज हम जानते हैं
शिव - वो मणि अब कहाँ हैं?
पिताजी - राम सिंह जी ने शादी नही की थी पर उनके परिवार के बाकी सदस्य मणि के लिए अपना लालच दिखाने लगे.
राम सिंह जी ने वो मणि वापस नाग देवता को सुपूर्द करदी ताकि उसका दुरुपयोग नही हो
शिव - वो नागदेवता आज भी हैं
पिताजी - बरसो...
इन्ही के बीच में 80 घर का एक छोटा सा गांव था मलकापुर.
गांव की प्राकृतिक सुंदरता देखते ही बनती थी .
बारिश का पानी पहाड़ियों की तलहटी मैं इकठ्ठा होकर एक सुंदर तालाब का रूप ले लेता था .
सारे गांव की पानी की पूर्ति इसी तालाब से होती थी .
इस तालाब के तल में बुजुर्ग लोगों ने 3 बड़े कुए बना रखे थे ,कि जब तेज गर्मी का मौसम हो तो तालाब का पानी अगर सूख भी जाए तो इन कुओं में पीनेे के पर्याप्त पानी रह जायेगा .
तालाब के किनारे ही पहाड़ी पर भगवान कृष्ण का सुंदर सा मंदिर बना हुआ था. इस मंदिर की दीवारें सदियों पुरानी लगती है.
यह कब से बना हुआ है किसी को भी नहीं पता था.
सारे गांव वाले कहते हैं की , यह बहुत पुराना मंदिर है .
जब यह मंदिर बनाया गया था, तब इस तालाब का भी जीणोद्धार किया गया था.
तालाब के पानी की शुद्धता रखने के लिए उस वक़्त के ठाकुर साहब राम सिंह जी ने तालाब के तल में तांबा लगवा दिया था.
पहाड़ पर बहुत छोटी-छोटी गुफाएं है कहते है कि यहां कभी ऋषि मुनि तप किया करते थे
मंदिर से होता हुआ रास्ता सीधा गांव को जाता हैैं. मंदिर गांव से लगभग आधा कोस की दूरी पर था
रास्ते में बहुत सारे नीम के पेड़ और बहुत सारी बेर की झाड़ियां थी.
मोरों का झुंड और कोयल की आवाज रास्ते को और मनमोहक बना देेते हैं.
घास फूस से बने घर और गोबर से निपा गया आंगन, चौक मे चोक से कोरी गयी रंगोली घरों को महलो सा रूपवान बनाती थी
इस गांव में एक 16 साल का लड़का, जिसका नाम शिवा है ,अपने पिताजी प्रताप सिंह और माता देवयानी के साथ रहता है
शिवा के घर की स्थिति बहुत चिंताजनक थी
कम जमीन और पिछले साल बारिश ना होने की वजह से बचा खुचा अनाज भी समाप्त हो गया था
प्रताप सिंह जी ने नजदीकी गांव के लाला सुखराम से पैसे उधार ले रखे थे.
इस बार भी बारीश ना होने की वजह से शिवा गुरुकुल न जा सका.
शिवा को इस बात का गहरा दुख था पर घर की स्थिति देख वह कुछ न बोलता था.
शिवा अपने पिताजी के साथ आज मन्दिर आया हुआ था.
शिवा मंदिर की दीवार से तालाब को देखते हुवे
पिताजी - क्या देख रहे हो शिवा
शिव - तालाब कितना गहरा है ना
पिताजी - अभी तो पानी ही कहां है बेटा, पहली सीढ़ी से भी 2 हाथ ऊपर तक पानी रहता था, अब जाने कब बारिश हो, कुओं का पानी भी सूखने को हैं
शिव - इस तालाब का तल ताम्बे का था क्या?
पिताजी - हां बेटा कहते तो हैं
शिव - पर हमारे गांव में इतना ताम्बा आया कहां से
पिताजी - कहते हैं यहां कोई महात्मा थे जिनकी तपस्या पूर्ण हो चली थी पर गाँव की एक युवती पर अपना मन हार बैठे थे
सदगति ना होने से अगले जन्म में मणिधर सांप का स्वरूप मिला.
शिव - क्या मणिधारी सांप सच मे होते हैं
पिताजी - कहते तो है बेटा. मणि की शक्तियों से ये नाग इच्छाधारी होते हैं, मनचाहा रूप धर लेते हैं.
शिव - कैसे पता चलता है कौन सा नाग मणिधारी है
पिताजी - कहते हैं अगर मणिधारी नाग 1 कोस की दूरी पे हो तो आप के शरीर मे खुजली होने लग जाती हैं और पूर्णिमा को साँप में मणि ज्योत सी चमकने लगती हैं, तभी जानना संभव हैं
शिव - अब कोई मणिधारी नाग नही है क्या?
पिताजी - होगा बेटा
शिव - ये मंदिर हमारे गांव से आधा कोस दूरी पर हैं, अगर होता तो सारे गांव को खुजली हो जाती ( हंसता हैं)
पिताजी - ठाकुर राम सिंह जी को नाग देवता पहाड़ी के उस पार दिखे थे.
पहाड़ी के पीछे थोड़ा जंगल सा हैं, सूखे झाड़ो से बंधा हुआ सा. जंगली जानवरों के रहने का अच्छा ठिकाना है वो.
उस समय भी अकाल था औऱ कोई जरक उनकी बकरी उठा के ले भागा था.
अकाल में वही धन था, वो पीछा करते उस पार चले गये.
शिव - क्या उन्हें बकरी मिली
पिताजी - नही , वो सुबह के गए शाम लोटे, पर उनके मुख का तेज व निर्भय चेहरा देख सब दंग रह गए, उनको नाग देवता ने मणि बख्शी थी.
उसी मणि से गाँव के सब दुख दूर हुवे व खुशहाली लोटी.
वो जो भी करना चाहते थे वो काम पूरा हो जाता था
रात को दीपक में वो मणि रख देते थे और उसी रौशनी में उन्होने ये बातें लिखी, जो आज हम जानते हैं
शिव - वो मणि अब कहाँ हैं?
पिताजी - राम सिंह जी ने शादी नही की थी पर उनके परिवार के बाकी सदस्य मणि के लिए अपना लालच दिखाने लगे.
राम सिंह जी ने वो मणि वापस नाग देवता को सुपूर्द करदी ताकि उसका दुरुपयोग नही हो
शिव - वो नागदेवता आज भी हैं
पिताजी - बरसो...