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टूटते बिखरते परिवार : (भाग 3)
‘बेटा यही गलती तो मैंने भी की थी। इसलिए सभी ने मेरा फायदा उठाया, मैं हमेशा पिसती ही रही। वे सब अपने परिवार के साथ घूमने जाते रहे। सब कहते वंदना बहुत अच्छी है, घरेलू है।
‘बेटा मैं नहीं चाहती कि ये सब तुम्हारे साथ भी हो।
‘पर मां इस तरह घर में कलह होगी और परिवार टूट जाएगा।
‘लेकिन आज कोई है हमारे साथ शिल्पा? सब चले ही गए ना छोड़कर, मेरी अच्छाइयों को ताक में रखकर।
‘नहीं मां हमें थोड़ा और इंतजार करना चाहिए।
लेकिन वंदना ने शिल्पा के लिए अपनी चुप्पी तोड़ दी।
अब वह अलका को खुद ही काम करने के लिए कहने लगी।
रात को वंदना ने अलका को आवाज दी, ‘अलका शिल्पा को रोटी बनाने में मदद कर दो और सब्जी जरा काट दो।
अलका नाक मुंह चढ़ा कर ही सही कुछ दिन काम करती रही फिर एक दिन चिढ़कर बोली, ‘मां मुझसे नहीं होगा। आपको कहा था ना मां, काम वाली रख लो।
अब रोज की कलह शुरू हो गई। मोहन हमेशा अलका की ही तरफदारी करता।
एक दिन तो अलका ने अपना गुस्सा शिल्पा के ऊपर ही उतार दिया और कहा, ‘जीजी मैं सब समझती हूं, आप ही मां को भड़काती हो।
शिल्पा की आंखों से आंसू बह रहे थे। वंदना का तो दिमाग खराब हो गया। उन्होंने कहा, ‘अलका तुम गलत सोच रही हो। शिल्पा ने मुझे कभी कुछ नहीं कहा लेकिन मैं जिस चक्की में जीवन भर पिसती आई हूं उसी चक्की में शिल्पा को नहीं पिसने दे सकती। तुम्हें यदि ऐसा लगता है कि बिना किसी को मदद किए तुम सही कर रही हो तो तुम मोहन को लेकर अलग रहने जा सकती हो।
अलका ने तुरंत ही मोहन को आवाज लगाई, ‘मोहन देखो हमें तो घर से निकाला जा रहा है.......

आगे की कहानी अगले भाग में .......
© kittu_writes