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एक वेशया की डायरी के पन्नों 📝✏️भाग१
जैसा कि आप सब जानते हैं कि लेखक श्री वासुदेव एक असम्भव प्रेम गाथा अनन्त में एक वेशया और अन्य कि गाथा के दौरे पर है, जिसमें
उन्होंने एक असम्भव प्रेम गाथा अनन्त में लेखिका को एक बड़ा हिस्सा घोषित कर तथा उसे बहुत बड़ी उपलब्धि दी जो इस कालचकृ द्वारा ग्रस्त किसी युग में किसी को भी नहीं थी गई, मगर अगर हम दैवीकाल में जाए तो इसका अर्थ तथा किस योनि यह महानायिका सर्वश्रेष्ठ उत्तम पुरस्कार मिला था ।।
तो आइए जानते हैं कि यह महानायिका सर्वश्रेष्ठ का किस योनि को प्राप्त हो हुआ और क्यों क्या कालचक्रम् द्वारा निरंतर चक्राणी से प्रभावित नहीं थी तो यह प्रश्नवाचक बोल रहा होता हैं तो लेखक द्वारा इस महान पुरस्कार के विजेता का नाम है वह वेशया जो एक नई दिशा देने की एक प्रयास में लगी हुई जिसका बाज़ारू होना कुछ चीजें नियंत्रण रेखा में रखता मगर उसके पश्चात भी एक असम्भव प्रेम गाथा अनन्त में कन्या एक खेलिका होकर उभरती है।। जिसके द्वारा कालचक्रम् शारानि भया केवल दुमुखाह है पहला मुख -वेश्य बैकुनडी रीढ़ा तथा दूसरा मुख किन्नर कल्याणवी वल्लभ मंदिर पूजनीय स्मारक।।🪔🙏
चतुरबुटि🪔
मगर जो तप एक वैशया करती है वो एक सुवरीजात नहीं कर पाएगी क्योंकि वह हमेशा अर्थ की ओर अग्रसर प्रेरित होकर आगे बढ़ रही होती, मगर उसके ऊपर किसी का कोई अधिकार नहीं क्योंकि वह आज़ाद होकर बाजारू जिसका सुशूर उसकी सुंदरता के साथ ही विलुप्त हो जाएगा फिर वो एक बैकुनडी रीढ़ा विलोपनीय हो जाएगी।। 🪔वो अपने अस्तित्व को प्राप्त करने के काई चीजो का सहारा लेकर आगे बढ़ रही होती हैं, जैसे वह अपने एक आदमी ढूंढ रही है जो कि उसकी इज्जत को भूलकर उसके अस्तित्व को उसे प्राप्त करने में सक्षम हो मगर वह यह कह चुप हो कि यह योनि मेरी बड़ी गृहस्थ है जिसमें मुझे अनेकों त्याग बलिदान मूल्य समर्पण देकर आगे बढ़ना पड़ा मुझे एक वैशया बनाने में इनका नाम आगे आता-गरीबी, रोटी, कपड़ा मकान, अस्तित्व,समाज की सोच, पुरूषार्थ बहुविकल्पी इच्छा दुमार्गम पथ,यौन क्रिया-हवस, जो कि एक स्त्री को अपनी इज्जत बलिदान मूल्य समर्पण ,कर्म ,गुण सत्व, लाज्जा, चूत को एक असम्भव मार्गम् बनाकर तथा गान्ड मारवाकर अपनी जुबान से वेशया कहलाने वाली वो खुद की पूछ-ताछ में हमारे समाज से ग्रस्त हो कर बैकुनडी रीढ़ा मोक्षिका कहलाई जाती है और अन्त वह अपने अस्तित्व की आसीमता को प्राप्त कर कालचकृ के प्रभाह से मुक्त होकर बैकुनडी रीढ़ा मोक्षिका बनकर बैठकुन्धाम प्राप्त हो जाती है।। जिससे अन्त वो अपने अस्तित्व को ही प्राप्त हो जाती है और इस तरह एक वैश्या मजबुरी केवल बैकुनडी रीढ़ा बनकर ही श्री कृष्ण द्वारा श्रापित मुक्त होकर आजाद हो सकती है।। वह डायरी लिखी गई उसी के रक्त से 🩸।। उसकी डायरी बनी उसी के शरीर से जिसके अंग भी उसके अपने नहीं इस समाज की नजर में उसका कोई कर्म, सत्व गुण कर्म स्वभाव मूल्य समर्पण त्याग बलिदान नहीं जबकि वो इन सबसे ही उत्पन हुई है, इसलिए गाथा में वह कालचक्रम् से पहले ही मुक्त होकर बैकुनडी रीढ़ा मोक्षिका कहलाई जा रही होती क्योंकि उसने अपना सबकुछ अपने अस्तित्व को अर्पित कर दिया त्याग स्वयं को भी उन्हें भेंट स्वरूप अर्पण कर दिया।। इसलिए उसकी डायरी हमेंशा उसके अस्तित्व की ओर अग्रसर प्रेरित होकर संघर्ष करती ही रहती है।। अन्तताह जब वो अपने अस्तित्व को प्राप्त ना हो जाए।। क्योंकि यह गाथा यह कहती हैं कि एक स्त्री और एक पुरूष कोई संबंध कायम कर कोई स्तंभ बना ही नहीं सकते हैं वे सिर्फ एक समझौता करते जिसमें योनि की रोटी सजाने की आस तथा पुरुष को अपनी हवस मिटाने के लिए एक साधन चाहिए जो वह वैशया बनती है मगर फिर भी इस कलियुग में योनि आजाद नहीं।।
और इस गाथा में एक अस्तित्व की आसीमता को समाप्त होने के लिए स्थिरता चाहिए जो कि इस कलियुग में एक योनि तथा लन्ड में नहीं वह सथाई भाव में ना होकर केवल एक समझौता ही करते हैं , मगर कोई स्थाई भाव में होकर अपने प्रेम को अभिव्यक्त करने का प्रयास करती तो वो केवल वो वेशया तथा किन्नर ही है क्योंकि यह दोनों की मोक्ष प्राप्त करने के योग्य हैं, इसलिए यह गाथा को कर्म मुक्त कर कर्म समाप्त कर अपने अस्तित्व को प्राप्त हो कर स्वयं ही कालचकृ से मुक्त हो जाते हैं जिसमें वैशया को तो सर्वगुण संपन्न बताकर श्रेष्ठ कहा गया है।।
इसलिए उसे कर्म के कालचक्र से मुक्ति मिलती और वो हमेशा के लिए श्री कृष्ण के धाम में बैठकुन्धाम में बैकुनडी रीढ़ा बनकर मोक्ष प्राप्त कर लेती इसलिए वह सबसे पवित्र तथा सुध है।
मगर किन्नर कल्याणवी मूर्ति उसके पूर्व जन्म की कु इच्छा का श्राप जिसमें वो खुद आदमी तथा स्त्री जात में स्वयं बंटकर अपने अस्तित्व के लिए एक श्राप है, मगर हमारे लिए उसके दर्शन होना यानी हमारी हर मनोकामना पूरी होई है।। इसलिए यह भी कही ना कही एक समय के बाद कालचकृ से मुक्त हो जाते और सीधा बैकुनडी अस्मिता का भाग बन मोक्ष प्राप्त कर बैठकुन्धाम मोक्ष प्राप्त हो जाते हैं।।