कोरा पन्ना
मेरे सामने मेज़ पर कागज़ का एक कोरा पन्ना था जिसके किनारे पर बारीकी से दो नाम जुदा जुदा लिखे थे और बीच का हिस्सा भीगने पर खुरदुरा सा था | मैंने तजस्सुस में उस पन्ने को उठाया और उस भीगी सतह पे मांद पड़े धुंधले अलफ़ाज़ के निशाँ पढ़ना चाही लेकिन उसपे किसी रौशनाई का न रंग था और ना ही अलफ़ाज़ के अधूरे निशाँ , जैसे बीच में कुछ लिखा...