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!! पत्थर के देवता !!
काश! वो समझ पाती कि देवता पत्थर के होते हैं, हाँ इंसान ज़िंदा होते थे। मगर उसने मुझको तो अपने मन ही मन में देवता मन लिया है। वो मुझे जान पाती मुझे समझ पाती इसके पहले ही उसने मुझे देवता बना दिया। जब भी मैं उसको मिलता वो देवता के नज़रिए से मुझे देखती, मुझसे बर्ताव करती, उसकी मेरे प्रति ऐसी भक्ति देखकर मैं भी कई बार हैरान सा रह जाता। जबकि मैंने ऐसे कोई कर्म नहीं किए, उसके लिए तो कुछ भी नहीं किया, उसका दर्द भी कभी नहीं बाँटा। मैं तो उसके बारे में सिर्फ़ इतना ही जानता हूँ कि उसकी वो सांवली, सलोनी झील सी आँखें, वो मासूम हँसी इन बातों पर ही मैं फिदा हो गया। उसकी बातों में गले की वो सुरमई आवाज़ ने मुझको उसका दीवाना बना दिया, ऐसा लगता मानो उसको सिर्फ़ देखता ही रहूँ। उसको देखते-देखते यह ज़िंदगी गुज़र जाए तो कितना अच्छा होगा लेकिन, हर वक़्त, हर कोई किसी के नज़र के सामने तो नहीं रह सकता है ना? यूँ तो कई बार मैंने कोशिश की मेरे दिल की बात उसको बताने की मगर उसके सामने जैसे मेरी ज़ुबान ही बंद हो जाती और जब भी कभी
बहुत कोशिश करके मैं वो बात कहता तो वो मज़ाक समझकर मुझे ही यह नसीहत देते कि देवता कभी ऐसे मज़ाक नहीं करते। जब मैं कई कई दिनों तक उससे नहीं मिलता था तो वो मेरी तलाश में ना जाने क्या-क्या करती किसी मंदिर में जाकर फूल मालाएँ चढ़ाती तो कभी मजार पर जाकर मेरे लिए प्रार्थना भी करती तो किसी गुरुद्वारे में जाकर गुरुवाणी सुनकर मेरे लिए उम्र भर की ख़ुशी चाहती। कभी-कभी मेरे लिए उसका यह पागलपन देखकर मैं बौखला सा जाता क्योंकि न तो वो मेरे रिश्ते में थी और न तो वो मेरे किसी दोस्तों में थी। ऐसे ही किसी परिचित के घर में उससे मुलाक़ात हुई थी। तब से न जाने कौन से अनजाने रिश्ते ने अनदेखे दायरे ने अनकहे बंधन ने मुझको उससे जोड़ दिया था फिर हमारे मिलने के सिलसिले बढ़ते गए। मौसम आते रहे, जाते रहे, सर्दी बारिश धूप मुस्कुराती रही मगर हम मिलते रहे लेकिन वो मुझे देवता क्यों समझती है यह सवाल किसी रहस्य की तरह सस्पेंस बनकर रह गया फिर न जाने क्या हो गया एक दिन अचानक वो कहाँ चली गई, किधर लापता हो गई किसी को आज तक ख़बर नहीं। इतने वर्ष बीत जाने के बाद आज भी मैं उस पगली लड़की की खोज कर रहा हूँ जिसने कभी मुझे देवता बनाकर पूजा था, देवता बनाकर चाहा था। कभी-कभी अनायास ही मेरी आँखें उसकी यादों से भर आती हैं। आँसू अपने आप आँखों से बहते हैं लगता है जैसे ये नयनाश्रु उसके पैर धो रहे हैं। इतने सालों बाद अब लोग भी कहने लगे हैं कि मैं पत्थर दिल बन गया हूँ। एक ख़ामोश पत्थर की तरह जिसे सिर्फ़ तन्हाई के सिवा कुछ भी पसंद नहीं। हाँ प्रिये! तुम सच ही कहती थी कि मैं देवता हूँ और आज देखो तो लोग भी कहने लगे हैं कि मैं पत्थर बन गया हूँ और देवता तो पत्थर के होते हैं ना ???
© राजेश पंचबुधे