"वो मेरा पहला प्यार"- Chapter 1
एक दिन मैं खुद से मिला, वो बिलकुल मुझ जैसी थी। मेरे जैसे पसंद थे उसके मेरे जैसे ख्याल थे। मैं जिन बातों पर हस्ता था उसे भी हसी उन्ही बातों पर आती थी, मैं जिन बातों को बोला करता था वो उन बातों को दोहराती थी।
पहले कभी मिला तो नहीं था उससे, पर ऐसा लगता था जैसे मानो इक राब्ता सा हो हमारे दरमिया।
मैं उन दिनों बारवी में था, मुझे दोस्त बनाना और घूमने का बहुत शौक था, उनमे ही खोया रहता था मैं।
मुझे याद है, वो पहली बार मेरे ट्यूशन में जब आयी थी, वो पहले ही दिन थोड़ी देर से पहुंची थी घबराई सी वो, इस डर में थी के कही सर उसे डाट न दे, वो अपनी सहेली के साथ मेरे बाजू वाली बेंच पर आ कर बैठ गयी। उस वक़्त मैंने कुछ महसूस किया वो क्या था मुझे अब तलक ना मालुम हुआ, मैं सेहमा सा अपनी क्लास ख़त्म कर के जैसे-तैसे वहा से बहार निकला। वो भी अपनी सहेली के साथ बाहर निकली, मैं उसे तब तक देखता रहा जब तक वो मेरी आँखों से ओझल ना हुई।
अगले दिन से मैंने खुद को आईने में देखना शुरू किया, शक्ल-सूरत तो बस यूँ ही थी, पर उस रोज़ के बाद मैं सवरने लगा के किसी तरह...
पहले कभी मिला तो नहीं था उससे, पर ऐसा लगता था जैसे मानो इक राब्ता सा हो हमारे दरमिया।
मैं उन दिनों बारवी में था, मुझे दोस्त बनाना और घूमने का बहुत शौक था, उनमे ही खोया रहता था मैं।
मुझे याद है, वो पहली बार मेरे ट्यूशन में जब आयी थी, वो पहले ही दिन थोड़ी देर से पहुंची थी घबराई सी वो, इस डर में थी के कही सर उसे डाट न दे, वो अपनी सहेली के साथ मेरे बाजू वाली बेंच पर आ कर बैठ गयी। उस वक़्त मैंने कुछ महसूस किया वो क्या था मुझे अब तलक ना मालुम हुआ, मैं सेहमा सा अपनी क्लास ख़त्म कर के जैसे-तैसे वहा से बहार निकला। वो भी अपनी सहेली के साथ बाहर निकली, मैं उसे तब तक देखता रहा जब तक वो मेरी आँखों से ओझल ना हुई।
अगले दिन से मैंने खुद को आईने में देखना शुरू किया, शक्ल-सूरत तो बस यूँ ही थी, पर उस रोज़ के बाद मैं सवरने लगा के किसी तरह...