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#UP_encounter
विकास दुबे जैसे एनकाउंटर कम मर्डर में मन दुविधा में फंस जाता है! एक और लगता है के किसी भी सभ्य समाज में न्याय का अधिकार माननीय न्यायालय को ही होना चाहिए! तो दूसरी और अगर अपराधी इतना दुर्दांत हो और अपराध बिल्कुल शीशे की तरह स्पष्ट तो ये त्वरित न्याय भी जायज़ सा लगता है!
ख़ुद ये भी सालों से अपराध में लिप्त था और इससे भी दुर्दांत अपराधी, पैसों और रसूख के बल पर खुलेआम घूमते है, बड़े बड़े राजनीतिक पदों पर बैठकर न्यायालय का मजाक उड़ाते हैं!
लाचार और शोषित सालों धक्के खाकर भी न्याय नहीं पाते हैं! कभी मिलता भी है तो आधा अधूरा, लूट पिट के!
ये हमारे व्यवस्था की कड़वी सच्चाई हैं!
जब तक ये जारी रहेगा, लोग ऐसे ही मिले न्याय को सही भी मानेंगे और जयकारे भी लगाएंगे!
"क्यों ना ऐसी व्यवस्था बनाई जाए
अपराधी से पहले अपराध पे प्रहार किया जाए"
© JD