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पोंगल पर्व का महत्व
आज दिनांक 15/01/2023, यानि की रविवार है और आप सभी को पोंगल पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं। पोंगल पर्व का इतिहास लगभग 1000 साल पुराना है। इसे देश के दक्षिणी हिस्से में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। दरअसल ये फसल की कटाई का उत्सव है। इसकी तैयारी लगभग हफ्तों पहले ही शुरू हो जाती है, जैसे की घरों की साफ़ सफाई,पुताई और आप पास की भी सफाई। हर उस पुरानी और अनचाहे वस्तुओं को एकत्रित कर, उन्हें जलाया जाता है। ये त्योहार चार दिनों तक चलता है, और लोग जो अपने घरों से दूर रहते हैं, जैसे की काम के सिलसिले में,या फिर पढ़ाई के लिए,वो सभी इस पर्व पर एक साथ, एकजुट होकर आनंद लेते हैं। घरों में चहलपहल बढ़ जाती है और माहौल खुशनुमा हो उठता है। इस त्योहार में गन्ने का बड़ा महत्व है, बिना गन्ने के आप पोंगल मना ही नहीं सकते।
सबसे पहले दिन को भोगी कहा जाता है जो देवराज इन्द्र को समर्पित है। इस दिन लोग अपने घरों से इकठ्ठा किये पुराने वस्त्र और कूड़े आदि को जलाते हैं।
दूसरे दिन सूर्य देवता की उपासना की जाती है, जिसे की सूर्य पोंगल भी कहा जाता है। इस दिल सूर्य देवता को पोंगल (जो की एक मिष्ठान है, जिसे चावल,मूंग दाल, गुड़, काजू,बादाम, इलायची, और नारियल को मिला कर मिट्टी के बर्तन में बनाया जाता है), देवता को प्रसन्न करने हेतु भोग में चढ़ाया जाता है। और घरों को तोरण से सजाया जाता है। हर तरफ़ फूलों की महक छा जाती है।
तीसरे दिन माट् पोंगल मनाया जाता है, माट् यानि मवेशी, जैसे की गाय,बैल जिनसे हम खेती बाड़ी करते हैं, उन्हें नहलाया जाता है, फिर उनका अलंकार किया जाता है कुमकुम, फूलों का हार और गले में घुंघरू या छोटे छोटे घंटों से। गांवों में इस दिन बैलगाड़ी प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है जिसमें आसपास के गांव के लोग भी हिस्सा लेते हैं। और भी कई तरह के खेलों का आयोजन किया जाता है जैसे कि कबड्डी, रस्साकसी,कोलम प्रतियोगिता यानि कि रंगोली बनाना और एक पारंपरिक नाच भी किया जाता है जिसमें की पुरूष और महिलाएं, एक साथ सम्मिलित हो कर पोंगल पर्व का आनंद उठाते हैं। घरों में फूलों, फलों और मिष्ठान की महक भर जाती है। इस दिन मवेशियों को पोंगल का भोग लगाया जाता है जो कि बहुत शुभ माना जाता है।
चौथा और अंतिम दिन को कानुम पोंगल कहते हैं,इस दिन महिलाएं अपने घरों के प्रवेश द्वार पर रंगोली बनाती है। ये दिन समर्पित होता है खाने पीने और मौज मस्ती करने हेतु, अर्थात मनपसंद पकवान, शाकाहारी और मांसाहारी,हर प्रकार के भोजन का। लोग अपने सहूलियत के हिसाब से अपने अपने घरों में मेहमानों संग भोजन का आनंद उठाते हैं।‌और सभी एक दूसरे को शुभकामनाएं देते हुए पोंगल का लुत्फ उठाते हैं।

कितने गर्व की बात है जहां देश के उत्तरी भाग में इसे मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है, वहीं इसे गुजरात और महाराष्ट्र में उत्तरायन कहते हैं, जबकि देश के दक्षिणी भाग में इसे पोंगल के नाम से जाना जाता है। पंजाब में इसे लोहड़ी कहते हैं।
ये सिर्फ हमारे देश भारत में ही आपको देखने को मिलेगा कि प्रांत अलग अलग होते हुए भी, उत्साह वही होता है,तो क्यों ना आज आप और हम एक साथ मिलकर इस पोंगल पर्व को धूमधाम से मनाएं।
तो कहिए हमारे साथ:
पोंगल ओ पोंगल
पोंगल ओ पोंगल
पोंगल ओ पोंगल।।।।

धन्यवाद 🙏😊

© Aphrodite