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काश‌ बनाम आस
प्रश्न : जीवन में काश और आस ना हो तो जीवन कैसा होगा?

उत्तर : जीवन में काश और आस ना हो, तभी जीवन वास्तविक होगा और भरपूर जिया जा सकेगा।

दीक्षा जी, प्रश्न तो आपने यूं ही रूटीन में पूछ लिया है, मगर यह प्रश्न कितना गहरा, सार्थक और क्रान्तिकारी है, इसका अंदाजा शायद आपको भी नहीं है। इस प्रश्न के उत्तर की समझ, हमारे जीवन में अध्यात्म की राह प्रशस्त करती है तथा हमारी जीवनशैली और जीवन के प्रति हमारे नजरिए में आमूल परिवर्तन का आधार बनती है।

जीवन में 'काश ', अतीत की असफल संभावनाओं के प्रति एक ठंडी आह है, जबकि- 'आस ' भविष्योन्मुख संभावनाओं के प्रति उत्तप्त और प्रतीक्षारत मनोभाव है। दोनों ही स्थितियों में हम वर्तमान से छिटक जाते हैं, जबकि- जीना तो हमें वर्तमान में है। इस प्रकार हम वर्तमान को अतीत और भविष्य के दो पाटों के बीच नष्ट कर देते हैं। और फ़िर जीवन के प्रति शिकायतों से भरा मन लेकर छीजते रहते हैं और चूक जाते हैं उन उपहारों से, जो वर्तमान के रूप में जीवन अपनी झोली में लाया था।

इसलिए छोड़ दीजिए काश का दामन।

काश ऐसा हुआ होता, वैसा हुआ होता!

जी नहीं, जैसा भी हुआ, अच्छा अथवा बुरा, वह हमारे ही कर्म-विधान के अनुसार ही हुआ और हमारे हित के लिए ही हुआ। हम सहर्ष उसे स्वीकार करें!

इसी प्रकार परे कर दीजिए आस का दिलासा।

आशा है, कल ऐसा होगा, वैसा होगा।

जी नहीं, जैसा भी होगा उत्कृष्ट या निकृष्ट, वह हमारे ही वर्तमान वर्तन का प्रतिफ़लन होगा। और हां, होगा वह भी हमारे ही हित में। बस, जो भी हो वह स्वीकारने का हमें ज़ज़्बा पैदा करना है।

बात खत्म! अब न अतीत के प्रति कोई मलाल रहा और न ही भविष्य की कोई चिन्ता। उससे क्या हुआ? उससे यह हुआ कि- हम निपट वर्तमान में खड़े हो गये। अतीत के काश और भविष्य की आस से मुक्त मन की चाल हंस की चाल है। अर्थात् अब वह विवेक की राह चलेगा। केवल वर्तमान में वर्तन करेगा। आपके कर्म की दिशा प्रकाशित हो जाएगी और आप जागरूकता से जियेंगे।सजग जीवन की गुणवत्ता ही कुछ और होती है! वह आपके कर्म-विधान तक में आमूल परिवर्तन ला देती है।

तो, मुक्त हो जाइये काश और आस से जो कि- मनोनिद्रा के उपादान हैं और जी लीजिए भरपूर सजग जीवन!

हमारे इन शब्दों के बावजूद कुछ संशय रह गये हों तो कमेंट और मेसेज के दरवाजे खुले हुए हैं।

इति शुभम्।🙏❤️🙏