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जीवन की कल्पना १
Disclaimer : No Reality Is There And Each Item Here Is Hypothetical…

आज से करीब १० करोड़ अरब साल पहले शुक्र पर जीवन की शुरुआत हुई। छोटे छोटे अणुओं से जीव जंतु पनपने लगे और उनके पनपने के महज हजार वर्षों बाद पौधों ने जन्म लिया। तब तक जीव खुद को ही खाते थे और उनके खाए हुए हिस्से दोबारा जी उठते थे। यही वो समय था जब सबसे पुराने जीव भी मौत से मिलने लगे थे। धीरे धीरे नए जीव उत्पन्न हुए और पुरानी प्रजातियां मरने भी लगी। खुद को वातावरण में बनाए रखने के लिए जीवों में अब इवोल्यूशन हुआ तब उसकी दर इतनी तेज थी की महज एक करोड़ सालों में ही उनकी दुनिया सौर मंडल की सबसे विकसित दुनिया बन चुकी थी। समय के साथ जीवों में सोचने की क्षमता आ गई। ये एक नई खासियत बनी की सौर मंडल के इकलौते ग्रह जहां जीवन मौजूद है वहां केवल जिंदा रहने के लिए ही नहीं जिया जाता बल्कि हर पल खुद को और अपने आस पास को बेहतर बनाने की कोशिश जारी रहती है। हर प्राणी को दूसरे जीव से लगाव था। लेकिन समय के साथ सभी जीवों की आबादी बढ़ने लगी और क्योंकि इनका जीवन दर शताब्दियों का था इनके रहने लायक स्थान कम होने लगे। इसीलिए धीरे धीरे उन्होंने अंतरिक्ष में भी अपने पैर पसारने शुरू किए। दुनिया में बढ़ती सभ्यता और कम जगह होने के कारण अब वे नए नए ग्रहों की तलाश में थे। खोज करते हुए उन्हें ये पता चला कि मंगल ग्रह जो उनसे कुछ ही दूर है पर जीवन जीने योग्य स्थितियां मौजूद हैं, उन्होंने इस नए ग्रह पर जीवन बसाने के लिए तैयारियां शुरू कर ही दी थी की तभी कुछ ऐसा हुआ की शुक्र की आधी आबादी तबाह हो गई। सूरज का गुरुत्वाकर्षण बल अचानक से बढ़ने लगा और सभी ग्रह अब मानो उसमे समाने लग गए थे जिससे बढ़ती गर्मी ने जीवों का जीना मुश्किल कर दिया था। कुछ समय में उन जीवों ने खुद को इस नए वातावरण में ढाल लिया लेकिन जो ऐसा करने में असमर्थ रहे वे मारे गए। लेकिन इस अनुकूलन का कोई फायदा नही था क्योंकि अब ये बल इतनी तेज़ी से घटा की ग्रहों की तो दशा ही उलट गई। कई सौ सालों तक रही इस अस्थिरता ने तो सौर मंडल पर पनपा लगभग जीवन ही मिटा दिया था। लेकिन इतने समय तबाही मचाने के बाद ये बल कुछ शांत हुआ और एक ऐसी स्थिरता में आ गया की फिर इसका दर बहुत धीमे से बढ़ने लगा। लेकिन अब जीवन तो लगभग समाप्त ही था। शुक्र ने अपने भीतर बसाए जीवन की मौत बेहद निकट से देखी और उसमे रह रहे सभी प्राणियों ने भी।

आखिर क्या हुआ उस जीवन का और इसका सौर मंडल पर क्या परिणाम रहा? क्या वे इस से उभर भी पाए या नहीं? क्या जीवन हमेशा के लिए समाप्त हो गया?

© Utkarsh Ahuja