सूनापन
कभी कभी होता है कि परिवार कि बहुत याद आती है, मगर जिसका परिवार होकर भी ना हो, वो क्या करे?
साथ यूँ तो लोगों की कमी नहीं मगर जब महफ़िल में सन्नाटा पसरा हो तो क्या करें?
जब सालों आप बर्दाश्त करते रहें, फिर बर्दाश्त कि सीमा टूटने पर आपसे कोई अक्षम्य गुनाह हो जाए, तो क्या करें?
होठों पर मुस्कान सजा यूँ तो जी रहें हो आप मगर भीतर से सब तितर बितर हो तो क्या करें?
जिसके लिए आप सब कुछ छोड़ चुके हों, उसने हर मोड़ पर आपको अकेला छोड़ दिया हो ज़िंदगी के, तो क्या करें?
जब साथ कि सबसे ज़्यादा ज़रूरत हो, और हर तरफ़ मतलबी और फरेबी दुनिया हो तो क्या करें?
और ऐसे में जब आप इतने बंधन चाहकर भी ना तोड़ सकें तो क्या करें?
खुद का आंकलन करने पर आपको आप ग़लत नहीं लगे मगर संस्कारों की नज़र में आप पूर्णतः ग़लत हो तो क्या करें?
© @Deeva
साथ यूँ तो लोगों की कमी नहीं मगर जब महफ़िल में सन्नाटा पसरा हो तो क्या करें?
जब सालों आप बर्दाश्त करते रहें, फिर बर्दाश्त कि सीमा टूटने पर आपसे कोई अक्षम्य गुनाह हो जाए, तो क्या करें?
होठों पर मुस्कान सजा यूँ तो जी रहें हो आप मगर भीतर से सब तितर बितर हो तो क्या करें?
जिसके लिए आप सब कुछ छोड़ चुके हों, उसने हर मोड़ पर आपको अकेला छोड़ दिया हो ज़िंदगी के, तो क्या करें?
जब साथ कि सबसे ज़्यादा ज़रूरत हो, और हर तरफ़ मतलबी और फरेबी दुनिया हो तो क्या करें?
और ऐसे में जब आप इतने बंधन चाहकर भी ना तोड़ सकें तो क्या करें?
खुद का आंकलन करने पर आपको आप ग़लत नहीं लगे मगर संस्कारों की नज़र में आप पूर्णतः ग़लत हो तो क्या करें?
© @Deeva
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