परेतकाल बिसाचकाल और डायनकाल भाग ३
परेतकाल और बिसाचकाल और डायनकाल इनमें एक के बाद एक उतार चढ़ाव आते हैं जैसे जिस योनि ने सबका भला नहीं किया और जीवन पर मया से चली काभी भी अपनी योनि को सहलाने वाले यक्ति का आश्रय नहीं पाई जो उसे जरम सुख की प्राप्ति करवा सके ऐसी कन्या की योनि एक परेतकाल की योनि में जन्म लेती है। और वही बाद में दान, धर्म त्याग बलिदान ना करके और वसनामयी होकर के इच्छुक होने से मुक्ति ना पाकर एक बिसाचकाल रूप धारण कर अपने कर्म और कर्तव्य इत्रयो का नाश एक देवीकाल का अन्त वसना वासीकरण और काली का प्रयोग कर एक डायकाल में परिवर्तित हो जाती है और जीवन में मुक्ति स्रोत ना पाने पर हमेशा रोगो द्वारा श्रापित रहती हैं मगर यदि वो एक भृमचरय को अपना उनकी देवीतकाल पर मन और ध्यान लगाए तो शायद इनके कर्म कुछ हद तक सही हो और इन्हें मुक्त प्राप्त हो।। और यह बिल्कुल सत्य है कि एक स्त्री के भोग काल और इस्त्री के प्रकार से निर्मित रूप से सहायता प्राप्त है।। असम्भव मोक्छ
#भयंकर अन्त
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