...

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बस इतना सा साथ 77
नेहा मनीष से फोन पर बात कर रही होती है।
नेहा - अच्छा जी , तो अब आपको मेरे चश्मे से
प्रॉब्लम है ?
मनीष - अरे यार, प्रॉब्लम की बात नहीं है। बस
कुछ स्पेशल मोमेंटस पर आप लेंस लगा
सकते हो ना।
नेहा - पर क्यूँ लगाऊँ ? जब मैन्यू लेंस की कोई
लोड ही नहीं है।
मनीष - पर मुझे तो है, आप और अच्छे लगोगे
लेंस लगाकर। फिर शादी व्याह बार - बार
थोड़ी ना होते हैं।
नेहा - मैं जैसी हूँ, बहुत अच्छी हूँ। और दो साल
की बच्ची नहीं हूँ जो आप लोग मुझे बार -
बार बता रहे हैं शादी व्याह एक ही बार
होते हैं।
मनीष - गुस्सा मत हो , आजकल तो सब लगाते
हैं। अरे कई लोग तो सिर्फ आँखों के रंग को
बदलने के लिए अलग अलग रंग के लगाते
हैं।
नेहा- तो सर, वो उनकी पसंद होती है। किसी
और की पसंद उन पर थोपी नहीं होती है।
मनीष - किसी और की ?
नेहा - हाँ , किसी और की ।
मनीष- तो मैं किसी और में आता हूँ।
नेहा - हाँ, आप किसी और में ही आते हैं। और
हर वो इंसान जो मुझ पर अपनी मर्जी
थोपना चाहता है, किसी और में ही आता
है। मुझे चश्मा है इतना बड़ा नंबर है ये
छिपाया नहीं गया था आपसे , जो अब
आपको चश्मे से एतराज़ है।
मनीष - यार एतराज़ नहीं है, पर ये तो कॉमन
सेंस है ....
नेहा- तो सर आप अपना कॉमन सेंस अपने पास
रखिए ।
मनीष - तुम ऐसे मुझ से बात नहीं कर सकती ।
नेहा - क्यूँ, कहीं के राष्ट्रपति हैं आप ।
मनीष - मैं तुम्हारा होने वाला पति हूँ। this is not
at all tolerable.
नेहा - then mind it sir , because the way
you want me to be is not acceptable.
मनीष- तुम...
नेहा- आप सुनिए, अगर आप सुझाव देते तो
शायद मैं सोचती और मान भी जाती । पर
जो आपने ये जबरदस्ती वाला हक जताया
ना ये बहुत गलत किया । और सही कहा
आपने आप मेरे होने वाले पति हो पर अब
मुझे सोचना पड़ेगा इसे होने भी दिया जाए
या नहीं।
मनीष - क्या मतलब? तुम इतनी सी बात से सब
खत्म कर दोगी ।
नेहा - अभी कुछ खास नहीं है खत्म करने के
लिए और हाँ जरूरत पड़ी तो कर भी दूँगी।
क्यूँकि अगर कोई मुझे प्यार करेगा ,
अपनी जिंदगी का हिस्सा बनाना चाहेगा
तो मुझे अपना कर मुझे बदल कर नहीं ।
bye
मनीष - सुनो...
( ऐसा बोलते हुए नेहा फोन रख देती है। मनीष कई बार नेहा को फोन मिलाता है पर नेहा फोन नहीं उठाती। )
मनीष - ( अपने आप से ) ऐसा भी क्या कह
दिया , बस लेंस लगाने को ही तो कहा था ।
चश्मे से ना जाने क्या लगाव है और अकड़
इतनी की रिश्ता खत्म करने की बोल रही
हैं। करने दे खत्म करना है तो । ( तभी मम्मी की बात याद आती है , कि कोई पिता अपनी लड़की नहीं देगा वो भी जो इतनी .... ) नहीं यार,
मैं नेहा को नहीं खो सकता, सिर्फ इसलिए
नहीं कि मुझे लड़की मिलनी मुश्किल है पर
इसलिए भी नेहा जैसी लड़की मिलनी
मुश्किल है। कम से कम उम्मीद तो है कि
मेरे बीते कल को समझेगी । ( सोच फिर नेहा को फोन लगाने लगता है पर नेहा फोन नहीं उठाती। कई बार फोन मिलाता है, पर हर बार यही हाल। )
( नेहा के मन में जितनी उथल -पुथल चल रही होती है, उससे कहीं ज्यादा नेहा के घर में चल रही होती हैं। ज्योति कुछ पढ़ रही होती है , नेहा की मम्मी कुछ काम करते हुए ज्योति के पास जाती है ।
नेहा की मम्मी - तू भी ले ले क्या पहनना है।
ज्योति - क्या ?
नेहा की मम्मी - क्या , क्या ? इन्हीं कपड़ों में तो
नहीं आएगी सगाई पर ।
ज्योति - आपको किसने कहा, मैं आ रही हूँ।
नेहा की मम्मी - इसमें कहने का क्या है ।
( ज्योति कुछ नहीं कहती । ) क्या चल रहा है तेरे
दिमाग में। ( ज्योति कुछ नहीं कहती । मम्मी उसके बगल में बैठती हैं और बड़े प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहती हैं। ) तू
कहेगी नहीं तो मुझे पता कैसा चलेगा ।
( ज्योति मम्मी का हाथ सिर पर से हटाते हुए। )
ज्योति - मेरे साथ ये नाटक करने की जरूरत
नहीं है। पैदा चार बच्चे किए हैं आपने पर
हैं तो आपके दो ही। उनके लिए बचा कर
रखो अपना ये लाड़ , मुझे नहीं चाहिए
आपका ये दिखावा।
नेहा की मम्मी - चल दिखावा ही सही , थोड़ा
दिखावा तू भी कर ले । आज कल जब
चलना हो , बोल एक बढ़िया-सा गाउन
लातें हैं तेरे लिए।
ज्योति- उसी के लिए ले आओ , कहीं उसके ही
कम ना पड़ जाए ।
नेहा की मम्मी - नहीं पड़ेंगे, तू ले ले जो लेना हो ।
ज्योति - ( चीड़ कर जोर से ) अरे क्यूँ लेना है ?
जब मुझे आना ही नहीं, तो क्यूँ लेना है ?
नेहा की मम्मी - ऐसे कैसे नहीं आना , बड़ी बहन
है तू ।
ज्योति - बड़ी बहन ! ( कह ज्योति मुस्कुराती है। ) याद आया आपको मैं उसकी बड़ी बहन हूँ।
नेहा की मम्मी - मुझे तो हमेशा से ही याद है, पर
शायद तू भूल गई है ।
ज्योति - ठीक है, तो भूले रहने दो मुझे याद भी
नहीं करना । ( नेहा की मम्मी ज्योति की इन बातों से परेशान हो जाने लगती हैं। ) वैसे भी
कौन- सा एक मेरे ना आने से आपकी
लाड़ली की शादी नहीं....
नेहा की मम्मी- बस तुझे जो करना है कर । मैं
आज के बाद तुझे कुछ बोलूँगी भी नहीं।
पर कुछ भी गलत बोलने से पहले दस बार
सोच लेना कहीं मैं सच में ना भूल जाऊँ कि
तू नेहा की बहन और मेरी बेटी है।
( इस बार सच में नेहा की मम्मी की आँखों में बहुत गुस्सा था। उधर नेहा प्रशांत की मम्मी के घर पर फ़सील करा रही होती है। आंटी कुछ कह रही होती हैं पर उसका ध्यान तो अब भी उस लेंस वाली बात में ही होता है। )
आंटी- ( नेहा को हिलाते हुए। ) सो गई क्या?
नेहा - नहीं आंटी जी , ऐसे ही कुछ सोच रही थी ।
आंटी - क्या , बच्चों के एग्जाम । वो तो आज
आखिरी हैं।
नेहा - नहीं कुछ और।
आंटी - सच्ची , मैंने तो कभी तुझे बच्चों से अलग
कुछ सोचते हुए देखा ही नहीं।
नेहा - एक बात पूछूं आंटी जी ।
आंटी- हम्म।
नेहा- क्या मुझे लेंस लगाना चाहिए ?
आंटी - लेंस ? वैसे अच्छे तो लगोगे लगाकर।
नेहा - ( आँखें खोल कर) चश्मे में कोई कमी है
क्या ?
आंटी- नहीं तो , पर आँखों पर की कलाकारी भी
नहीं दिखेगी तेरे चश्मे में।
नेहा - कलाकारी?
आंटी- eyeshadow वगैरह।
नेहा - इतना ताम - झाम नहीं कराना आंटी जी ।
आंटी- अब तू तैयार होने मेरे पास आई है, तो ये
नहीं चाहिए। तैयार तो मैं अपने हिसाब से
करूँगी ।
नेहा - और आप पैसे भी नहीं लोगी ।
आंटी - तू मेरे पलक-प्रशांत पर खर्च करने से
पहले सोचती है।
नेहा - वो बात अलग है।
आंटी - तो ये बात भी अलग है।
नेहा - मतलब आप नहीं मानोगे ।
आंटी - बिल्कुल नहीं।
नेहा - अच्छा फिर सामान मेरा ।
आंटी - हाँ , बड़ा लाखों का सामान लग जाएगा।
नेहा - हजारों का तो लग जाएगा। तो ये तय हुआ
मेरा शादी तक सब कुछ आपने करना है,
पर सामान मेरा होगा । ( कहते हुए रुपए निकाल कर देती है। )
आंटी - इतने क्यूँ दे रही है।
नेहा - पाँच ही हैं । मैं पार्लर जाती नहीं , पर मुझे
पता है पार्लर में कितना खर्च होता है। ( कहते हुए आंटी को रुपए दे देती हैं। )
आंटी - तू मानेगी कहाँ। ( कहते हुए रुपए लेती हैं। ) अब तू बैठ, बोल - बोल कर सारा चेहरा
खराब कर लेना है। ( नेहा वापिस आँखें बंद कर बैठ जाती है। ) सगाई की तारीख एक दम
सही है। ज्यादातर ......
नेहा- ( अपने मन में )
अब क्या कहूँ मैं ,
क्या सही है, क्या गलत है
इसमें मेरा मन उलझा है
बिन चालक की नाव जैसा
मेरा जीवन भटका है
की लहरों के बीच तो
मुझे हर हवा ही उम्मीद लगती है
पर देखूँ जो किनारों को
तो जिंदगी उन लहरों में उलझी ही
अच्छी लगती है
किसी एक ओर तो पहुंचेंगी मेरी नाव
बस इतनी खुशी ही , सबसे बड़ी लगती है
सबसे बड़ी लगती है ...

continued to next part.......


© nehaa