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दर्द के शब्द...
अँधेरे कमरे की पंखे के चर-चर आवाज़ में कुछ याद आया.... की कितनो ने कितनी बार हमें याद करके भुलाया...
सच बात है... ज़िन्दगी अजब सी है... बात मेरी या आपकी नहीं, सबके लिए एक है की कोई कितने भी मिनट,घंटे, दिन, साल आपके साथ बिता ले, भूलने में उसे कितने भी मिनट, घंटे, दिन या साल लगे - भूलता जरुर है |
ये पूर्णबिराम (|) की परिभाषा ऊपर लिखें लाइन में ना में कर पाया ना आप कर पाएंगे, क्यूंकि इसके आगे शब्द जीबित नहीं... मृत होजाते हैँ, कल पहचाने से लगते चेहरे , अनजान होजाते हैँ, दो पल बितायी कितनो की बातें, यादें बनजाते हैँ..|

हाँ, ये तोह जानते है की कोई अंत तक साथ नहीं रेहता ना ही कोई अपने साथ जाता है, पर स्वीकार करना इतना आसान नहीं होता, बताओ," भूलें कैसे वोह यादें जो बेवफा दे गया, की भूलें कैसे वोह यादें जो बेवफा दे गया, जाते जाते मेरा दिल भी साथ अपने ले गया... यूँ भोली सी निगाहें उसकी आज याद जब आती है, कैसे उन्होंने हमको छला, ये बात बड़ी सताती है... वादा करके जनम जनम का, दो पल में ही भूल गया, शायद वक़्त के चक्रब्यूह में, वादा रखने का रूल गया...नज़ाने क्यूँ लगता था, बड़ी चाह है तुझको जाने की ; में क्या जानू की कोई मक़सद भी थी तेरे आने की "

भटक गया में भी कहीं अपने लाइनों से, देखो शायरी लिख डाली यहाँ कहाँ... सच है, उदासी छाई है, मुस्कान तोह परायों के लिए रखते हैँ, अपने तोह हसीं के पीछे के ग़म को दो पल में जान लेते हैँ... शायद वसे अपने, मिलते नहीं... आज तोह अपने पराये के बिच क्या फर्क है, मुश्किल लगता है पहचानना...

© Mr Emotional Shayar