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उम्मीद
एक बूढ़ा आदमी अपने बेटे के साथ खाना खाने रेस्टोरेंट में आया। बात करते-करते बाप-बेटा दोनों खाना खा रहे थे। भोजन करते समय जैसे ही बूढ़े के हाथ काँपने लगे, दाल-सब्ज़ी के छींटे उड़कर मेज पर और उसके अपने कपड़ों पर पड़ गए और कपड़े गंदे हो गए।

अन्य लोग जो पास में खा रहे हैं वे इससे घृणा करेंगे लेकिन हर बार लड़का अपने पिता को एक प्यारी सी मुस्कान दे रहा था । जब तक भोजन समाप्त हुआ, तब तक पिता के हाथ काँप रहे थे और कपड़े गंदे थे। बेटा अपने पिता को वॉशरूम ले गया। पिता के कपड़ों पर लगे दागों को बड़े प्यार से साफ करने के बाद उन्होंने अपने हाथ और चेहरे को अच्छे से साफ किया। पिता बेटे के साथ वॉशरूम के बाहर जब आए तो पिता का पेट अन्न से भर गया था, पर उनका हृदय भी पुत्र के प्रेम से तृप्त था।

जैसे ही बेटा बिल चुका कर चला गया, रेस्तरां में खाना खा रहे एक और बूढ़े ने उसे रोक लिया और कहा, "बेटा, यहां खाने वाले बेटों और पिताओं के लिए कुछ छोड़ने के लिए धन्यवाद।" युवक ने कहा, "जो कुछ लाया था, सब ले जा रहा हूं। लगता है कुछ भूल रहे हो। मैं कुछ भी पीछे नहीं छोड़ रहा हूं।"

बूढ़े ने एक घूंट घूंटते हुए कहा, "नहीं, कोई गलती नहीं है, हर बेटा यहाँ बैठा है।

प्रेरणा के लिए' और हर वरिष्ठ के लिए एक 'उम्मीद' छोड़कर।

जब दोस्त, माता-पिता या दादा-दादी काम करने में खुद के शरीर का साथ नहीं देते तो उन्हें हमारे सहारे की बहुत जरूरत होती है। ऐसे समय में अगर हम उनके साथ होंगे तो उनका आधा दर्द बिना दवाई के ही दूर हो जाएगा।

© Shagun