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बचपना
अगर हम बचपन की बात करते है तो सब को अपना बचपना याद आ जाता है सब लोग याद करके खुश हो जाते है
खुश क्यों न हो बचपन होता ही कुछ ऐसा है
बचपन मैं हम सबसे ज्यादा जिसको जानते थे यह बड़ा मानते थे वह भगवान यह खुदा नहीं बल्की माँ बाप को जानते थे
फिर वक़्त बदलता रहता है हम बुद्धिमान हो जाते है बड़े हो जाते तो दुनिया की उलझन मैं फ़स जाते है बचपन मैं घर छोटा लोग ज़्यदा होते थे वो चाचा चाची माँ बाप से कम नहीं थे मगर बड़े होकर हम बहुत समझदार हो जाते है हम अपने चाचा चाची से घर जमीन के लिए लड़ते है हम जिस भाई के साथ अपने बचपन के सारे यादें और जीते थे
बड़े होने पर उसे जमीन के लिए लड़ते है मारते है
शयाद इसलिए कहते है न बच्चों द्वारा मंगी गईं सारी दुआ कुबूल होती है क्यों की बच्चे कभी भी किसी की बुराई यह किसी के नुकसान के लिए दुआ नहीं मांगते
बहुत फरक है बचपन और जवानी मैं
धन्यवाद :-