Meera..
मीरा कहती है मेरे कान्हा मैं जीवन के प्रत्येक पड़ाव पर तुम्हारी "प्रतीक्षा" में रही...तुम मिले तो तुम्हारे प्रत्यक्ष होने की प्रतीक्षा रही... तुम मुझ में ठहरे तो तुमसे प्रेम की प्रतीक्षा में रही... जबकि ये भली भांति जानती थी, की मेरे हर आती जाती श्वास की ध्वनि में तुम हो मेरे इस प्रेम संगीत के सुर और तुम्हारा नाम तुम भली भांति सुन सकते थे ... मगर फिर भी मैंने इस प्रेम को शब्द देने को आतुर रही..
मीरा कहती है कान्हा :
मै मीरा रही हमेशा जोगन जैसी ना बन पाई गोपिन जैसी .. ना मै बन पाई तुम्हारी प्रीत सावरे मैं रही हमेशा भक्तिन जैसी.. ना रास भई तुम्हारे संग ना शाम मिली राधा जैसी...
मीरा कहती है कान्हा :
मै मीरा रही हमेशा जोगन जैसी ना बन पाई गोपिन जैसी .. ना मै बन पाई तुम्हारी प्रीत सावरे मैं रही हमेशा भक्तिन जैसी.. ना रास भई तुम्हारे संग ना शाम मिली राधा जैसी...