पॉजिटिव बोला करो
सुरेश और रैना दोनों बहुत ही भावुक हो जाते जब भी किसी के घर में सभी का प्यार देखते ,इनकी अपनी कहानी भी कुछ इस तरह जुड़ी थी कि भावुक होना स्वाभाविक था ।रैना तो एकल परिवार में रही थी पर सुरेश तो संयुक्त परिवार से ही था ।
शादी के बाद रैना ने संयुक्त परिवार में रहकर देखा कि मुसीबत के समय कैसे लोग एक-दूसरे का सहारा बनते है ।
रैना के घर मे तो अकेले अकेले सबकुछ करने की सबको आदत थी ।कभी कभी रैना को अखर जाता था कि उसके परिवार में कोई भी ऐसा नहीं जिससे वो थोड़ी देर दिल की बात कर सकें , पर शादी के बाद वक्त का पता ही नहीं चलता था ।
उसे तो अपने घर की याद तक न आती । सब आपस में यू बँधे थे कि उसकी बेटी कीया के जन्म के समय उसे ज़रा भी नहीं पता चला कि कब कैसे क्या हुआ । सभी ने अपनी ड्यूटी जैसे संभाल रखी थी कब क्या खाना है कब क्या आध्यात्मिक चीज़ें सुननी है ।
सुरेश अगर आफिस के काम से बाहर हो तो भी समय आराम से बीत जाता ।देखते देखते कीया 5 साल की और रियान साल भर का हो गाया ।सब कुछ किसी सपने सा लग रहा था घर मे जब वो आफिस से आती तो दोनों बच्चे दादी दादा बुआ के साथ उंधम मचाते मिलते ।
सुरेश अक्सर कह देता कितने निंशिचत है हम रिया भी हामी भर लेती पर कहते है ना अच्छी चीजों और चैन के दुश्मन हम खुद होते है ।
रैना को न जाने क्यों अब लगने लगा कि हम अलग होते तो शायद अच्छा रहता पर ये बातें उसके मन में ही रहती हिम्मत नहीं पड़ी कभी कहने की समय बीतने लगा । उसे कभी अपना एकल परिवार और वहाँ की शांति लुभा जाती कभी यहाँ एक दूसरे का साथ हिम्मत देता ।
धीरे-धीरे महू उसकी ननंद भी नौकरी करने लगी । घर में आए दिन कभी चाचा ताऊ के लड़के फुआ फूफा के लड़के आते जाते रहते , लोग रैना के चेहरे पर पड़ी शिकन को अगर कभी नोटिस भी करते तो सब यही सोचते कि शायद महू की नौकरी करने से भाभी के ऊपर काम का प्रेशर ज्यादा आ गया है , और बात आई गई हो जाती ।
रैना ने कई बार अपने पति सुरेश को कहने की कोशिश की कि हम अकेले फ्लैट लेकर के रहते हैं पर कभी उसको यहां कि आराम तलबी जैसे अपने बच्चों को छोड़कर इत्मीनान से निकल जाना ।
महू का आर्थिक रुप से हमेशा सहयोग करना कहीं ना कहीं उसे चुप्पी कर रहा था पर अंदर ही अंदर उसे कहीं ना कहीं यह महसूस हो रहा था ,कि अकेली रहती तो शायद ज्यादा खुश रहती पर कभी भी उसने डर और झिझक से यह बातें किसी के सामने जाहिर नहीं की ।
गरमी की छुट्टियाँ आ गई थी । सबने मिलकर तय किया की इसबार घूमने पहाड़ों पर जाऐगे ।नियत समय में सब रवाना हुए पता नहीं क्यों रैना बेमन से सांथ गई पर किसी को भी रैना के मन का भान न था ।
जगह जगह घूमते हुए सब लोग केदारनाथ चले गए । बारिश उस दिन अपने हुजूम पर थी ।ठंढ भी बहुत थी होटल का इंतज़ाम किया गया तो कमरे उपर नीचे के मिले पहले तय हुआ कि रैना सुरेश के बच्चे भी दादी के पास रहेंगे , पर अचानक रैना की सास ने कहा बारिश ज़्यादा हो रही ।
तुम चारों ऊपर सो जाओ मैं , महू और पति के साथ यहीं रहूँगी कुछ होगा तो महूँ तुम लोगों को बुला लगी ।
रैना बेमन से ऊपर आ गई , सोते हुए सोचने लगी कब वो दिन आएगा । मैं जो भी कहूँगी सब वही करेंगे ,सोचते हुए उसकी आँख लग गई ।
अचानक रात को बहुत ज़ोर की आवाज़ आई रैना और सुरेश जागे । कमरे के बाहर खिड़की से देखा कुछ समझ नही आया बालकनी थी । साथ उधर से बाहर आए तो अवाक रह गए ।नीचे जहाँ माँ पापा के होटल के कमरे थे वहाँ सिर्फ़ नदी और मलवे बहते दिंख रहे थे दोनों को काटों तो ख़ून नही वाली हालत थी । सब तरफ अंधेरे में पानी के शोर के साथ बस चीख़ें सुनाई दे रही थी ।
सुबह हुई तो दोनों कुछ कहने की स्थित में नही थे ।किसी तरह वापस आए बहुत ढूँढा पर मलवे में सिर्फ़ महूँ की लाश मिली ।
रैना की हालत अब पहले जैसे नही रही वो भी मानसिक रूप से व्यथित रहने लगी है ।कभी कभी अनायास बोल पड़ती है ।
हमें सपने में भी बुरा नहीं सोचना चाहिए ।मेरे अच्छे भले घर को मेरी नजर लग गई ,और बेतहाशा रोने लगती है ।उसकी सारी ख़ुशियाँ उसी रात दफ़्न हो गई अब घर बच्चों की सारी ज़िम्मेदारियाँ भी देखनी पड़ती है ।
किसी भी खुशहाल घर और उनकी खुशियों को देखकर आज भी मन उसका तड़प उठता है कि शायद उसकी सोच ने ही उसकी ख़ूबसूरत बगिया में आग लगा दी ये दर्द ऐसा है कि वो कह भी नहीं सकती और जिदगी के सफ़र में घूँट घूँट कर पीते रहेगी ।
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शादी के बाद रैना ने संयुक्त परिवार में रहकर देखा कि मुसीबत के समय कैसे लोग एक-दूसरे का सहारा बनते है ।
रैना के घर मे तो अकेले अकेले सबकुछ करने की सबको आदत थी ।कभी कभी रैना को अखर जाता था कि उसके परिवार में कोई भी ऐसा नहीं जिससे वो थोड़ी देर दिल की बात कर सकें , पर शादी के बाद वक्त का पता ही नहीं चलता था ।
उसे तो अपने घर की याद तक न आती । सब आपस में यू बँधे थे कि उसकी बेटी कीया के जन्म के समय उसे ज़रा भी नहीं पता चला कि कब कैसे क्या हुआ । सभी ने अपनी ड्यूटी जैसे संभाल रखी थी कब क्या खाना है कब क्या आध्यात्मिक चीज़ें सुननी है ।
सुरेश अगर आफिस के काम से बाहर हो तो भी समय आराम से बीत जाता ।देखते देखते कीया 5 साल की और रियान साल भर का हो गाया ।सब कुछ किसी सपने सा लग रहा था घर मे जब वो आफिस से आती तो दोनों बच्चे दादी दादा बुआ के साथ उंधम मचाते मिलते ।
सुरेश अक्सर कह देता कितने निंशिचत है हम रिया भी हामी भर लेती पर कहते है ना अच्छी चीजों और चैन के दुश्मन हम खुद होते है ।
रैना को न जाने क्यों अब लगने लगा कि हम अलग होते तो शायद अच्छा रहता पर ये बातें उसके मन में ही रहती हिम्मत नहीं पड़ी कभी कहने की समय बीतने लगा । उसे कभी अपना एकल परिवार और वहाँ की शांति लुभा जाती कभी यहाँ एक दूसरे का साथ हिम्मत देता ।
धीरे-धीरे महू उसकी ननंद भी नौकरी करने लगी । घर में आए दिन कभी चाचा ताऊ के लड़के फुआ फूफा के लड़के आते जाते रहते , लोग रैना के चेहरे पर पड़ी शिकन को अगर कभी नोटिस भी करते तो सब यही सोचते कि शायद महू की नौकरी करने से भाभी के ऊपर काम का प्रेशर ज्यादा आ गया है , और बात आई गई हो जाती ।
रैना ने कई बार अपने पति सुरेश को कहने की कोशिश की कि हम अकेले फ्लैट लेकर के रहते हैं पर कभी उसको यहां कि आराम तलबी जैसे अपने बच्चों को छोड़कर इत्मीनान से निकल जाना ।
महू का आर्थिक रुप से हमेशा सहयोग करना कहीं ना कहीं उसे चुप्पी कर रहा था पर अंदर ही अंदर उसे कहीं ना कहीं यह महसूस हो रहा था ,कि अकेली रहती तो शायद ज्यादा खुश रहती पर कभी भी उसने डर और झिझक से यह बातें किसी के सामने जाहिर नहीं की ।
गरमी की छुट्टियाँ आ गई थी । सबने मिलकर तय किया की इसबार घूमने पहाड़ों पर जाऐगे ।नियत समय में सब रवाना हुए पता नहीं क्यों रैना बेमन से सांथ गई पर किसी को भी रैना के मन का भान न था ।
जगह जगह घूमते हुए सब लोग केदारनाथ चले गए । बारिश उस दिन अपने हुजूम पर थी ।ठंढ भी बहुत थी होटल का इंतज़ाम किया गया तो कमरे उपर नीचे के मिले पहले तय हुआ कि रैना सुरेश के बच्चे भी दादी के पास रहेंगे , पर अचानक रैना की सास ने कहा बारिश ज़्यादा हो रही ।
तुम चारों ऊपर सो जाओ मैं , महू और पति के साथ यहीं रहूँगी कुछ होगा तो महूँ तुम लोगों को बुला लगी ।
रैना बेमन से ऊपर आ गई , सोते हुए सोचने लगी कब वो दिन आएगा । मैं जो भी कहूँगी सब वही करेंगे ,सोचते हुए उसकी आँख लग गई ।
अचानक रात को बहुत ज़ोर की आवाज़ आई रैना और सुरेश जागे । कमरे के बाहर खिड़की से देखा कुछ समझ नही आया बालकनी थी । साथ उधर से बाहर आए तो अवाक रह गए ।नीचे जहाँ माँ पापा के होटल के कमरे थे वहाँ सिर्फ़ नदी और मलवे बहते दिंख रहे थे दोनों को काटों तो ख़ून नही वाली हालत थी । सब तरफ अंधेरे में पानी के शोर के साथ बस चीख़ें सुनाई दे रही थी ।
सुबह हुई तो दोनों कुछ कहने की स्थित में नही थे ।किसी तरह वापस आए बहुत ढूँढा पर मलवे में सिर्फ़ महूँ की लाश मिली ।
रैना की हालत अब पहले जैसे नही रही वो भी मानसिक रूप से व्यथित रहने लगी है ।कभी कभी अनायास बोल पड़ती है ।
हमें सपने में भी बुरा नहीं सोचना चाहिए ।मेरे अच्छे भले घर को मेरी नजर लग गई ,और बेतहाशा रोने लगती है ।उसकी सारी ख़ुशियाँ उसी रात दफ़्न हो गई अब घर बच्चों की सारी ज़िम्मेदारियाँ भी देखनी पड़ती है ।
किसी भी खुशहाल घर और उनकी खुशियों को देखकर आज भी मन उसका तड़प उठता है कि शायद उसकी सोच ने ही उसकी ख़ूबसूरत बगिया में आग लगा दी ये दर्द ऐसा है कि वो कह भी नहीं सकती और जिदगी के सफ़र में घूँट घूँट कर पीते रहेगी ।
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