कुछ शौक भी, कुछ दर्द भी
दिन भर की थकान थी मगर रात को भी सुकूं न मिला,
सुबह भी दर्द था, फिर भी नहीं किया कोई गिला।
देकर दुआएं, कुछ लेकर दुआएं चलो फिर से दिन खूबसूरत बनाएं।
पूछें कुछ आंसू ली सिकंदर (मेरा ट्रेक्टर)की बलाएं।
भूख थी मगर जल्दबाजी में था, छूट न जाए ये कहीं ये सुहाने मौसम की मेहरबानी,
झटपट तैयार हुआ,खाई थोड़ी–सी मां की...
सुबह भी दर्द था, फिर भी नहीं किया कोई गिला।
देकर दुआएं, कुछ लेकर दुआएं चलो फिर से दिन खूबसूरत बनाएं।
पूछें कुछ आंसू ली सिकंदर (मेरा ट्रेक्टर)की बलाएं।
भूख थी मगर जल्दबाजी में था, छूट न जाए ये कहीं ये सुहाने मौसम की मेहरबानी,
झटपट तैयार हुआ,खाई थोड़ी–सी मां की...