कसक
मन की कसक
द्वंद स्वाभाविक
हकदार मै भी
क्यों नहीं वो मेरा भी
हर बार मै ही क्यूँ
ना किये की सजा मुझे ही क्यूँ
मैने तो बेइंतिहा चाहा
पर उसे पूरा क्यो नही पाया
क्यूँ हर बार मेरे हिस्से
बार बार अधूरे किस्से
ये तो तय था
पूरा ना पाया था
अपेक्षा से...
द्वंद स्वाभाविक
हकदार मै भी
क्यों नहीं वो मेरा भी
हर बार मै ही क्यूँ
ना किये की सजा मुझे ही क्यूँ
मैने तो बेइंतिहा चाहा
पर उसे पूरा क्यो नही पाया
क्यूँ हर बार मेरे हिस्से
बार बार अधूरे किस्से
ये तो तय था
पूरा ना पाया था
अपेक्षा से...