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सहयोग
प्रश्न:
पुलिस ने आपको कभी सहयोग किया है?

उत्तर:
✍🏼 बिल्कुल !
पुलिस ने एक बार हमारा‌ सहयोग किया है।
और बड़ी तत्परता से किया है।

बात बहुत पुरानी लगभग 1983–84 की है। संक्षेप में सुनिए।

हमारी पोस्टिंग रामगंजमंडी (राजस्थान) में थी। सरकारी कार्यवश हम जयपुर जाने के लिए रोडवेज बस में बैठे। साथ में हमने कुछ महत्वपूर्ण कागज़ात , हमारी सेलेरी की रकम और दो जोड़ी कपड़े एक सूटकेस में रख लिए थे। सूटकेस को हमने अपनी सीट नं.18 के ऊपर रेक में रख दिया था।

रात्रि करीब तीन बजे, बस टोंक में चाय-पानी के लिए रुकी। वही स्टाफ भी चेंज होता था , जिसका हमें पता नहीं था।
हम पहले वाले ड्राइवर के साथ चाय पी रहे थे। इतने में दूसरा ड्राइवर बस में चढ़ा। हम कुछ समझ पाते, इससे पहले‌ ही बस स्टार्ट हो गयी।

हमने पहले वाले ड्राइवर से पूछा,
" भाई, गाड़ी कैसे स्टार्ट हुई? आप तो यहां बैठे हैं।"
ड्राइवर बोला, "यहां स्टाफ चेंज होता है। भागिए, गाड़ी पकड़िए!"

हम भागे किन्तु तब तक गाड़ी स्पीड पकड़ चुकी थी। हम देखते ही रह गये, और बस तो यह गयी, वह गयी।"

हम घबरा गये। सूटकेस में महत्वपूर्ण दस्तावेज थे। हम तुरंत बुकिंग पर गये। वहां टिकट-बाबू सो रहे थे। उन्हें जगाया और समस्या बताई।

हमने उनसे प्रार्थना की, कि- वे अगले बस-स्टॉप पर फोन द्वारा सूचना करके हमारा सूटकेस उतरवा दें।

उस जमाने में मोबाइल तो थे नहीं। फोन ही का सहारा था। बाबू ने बताया इस बस-स्टॉप पर फोन कनेक्शन नहीं है। रात्रि के इस अंतिम पहर में, सब ओर सन्नाटा था। अब फोन कहां से करें।
हमने उनसे और कोई उपाय सुझाने को कहा। उन्होंने बताया, कि- पास ही में पुलिस कंट्रोल रूम है। वहां जाइए। यदि पुलिस वालों को तरस आ गया, तो वे अगले बस-स्टॉप (निवाई) के थाने पर वायरलेस कर देंगे।
निवाई के सिपाही बस से आपका सूटकेस उतरवा लेंगे।

हमें बात कुछ जमी। मगर पुलिस वाले क्यों मदद करने लगे? यह संदेह मन में था। फिर भी, मरता क्या न करता।
हमने हिम्मत और आशा के साथ पुलिस कंट्रोल रूम में पहुंचकर अपनी व्यथा बताई।


आशा के विपरीत एक सज्जन पुलिसकर्मी ने बड़ी तत्परता से निवाई के पुलिस कंट्रोल रूम में वायरलेस से संपर्क किया। जो कि- काफी प्रयासों के बाद सम्पन्न हो सका, क्यों कि- उधर से कोई रेस्पॉन्स नहीं आ रहा था।
खैर !
अब निवाई पुलिस की तत्परता बताते हैं। हमारे यहां से वायरलेस की सूचना जाते ही तीन चार पुलिसकर्मियों को थाने के गेट पर तैनात कर दिया गया, ताकि- वे टौंक से आ रही बस को रोककर सूटकेस उतार लें। क्योंकि बस थाने के सामने से ही गुजरती थी।

किन्तु न जाने क्यों, उस दिन उनके हाथ देने पर भी बस रुकी नहीं। पुलिसकर्मी दंग रह गये। किन्तु उन्होंने अपनी तत्परता नहीं छोड़ी।

उन दिनों किसी कारण शहर के सीमांत पर नाकेबंदी की व्यवस्था थी। वहां बेरीकेट्स लगे हुए थे। थाने के पुलिसकर्मियों ने तत्काल नाके की पुलिस चौकी पर तैनात पुलिसकर्मियों को बस रुकवाकर सूटकेस उतारने के निर्देश दिए।

नाके पर तैनात पुलिसकर्मी हरकत में आ गये। जैसे ही बस वहां पहुंची, उसे रुकवाकर सीट नं.18 के ऊपर की रेक से हमारा सूटकेस उतार लिया गया। इसकी सूचना वायरलेस से टौंक पुलिस को दी गयी।

आप कल्पना कर सकते हैं, कि- हमें कितना सुकुन मिला होगा, जब टौंक पुलिस के वायरलेस ऑपरेटर ने हमें यह सूचना दी कि- "सर, आपका सूटकेस निवाई पुलिस ने सुरक्षित उतार लिया है। अब आप निवाई जाइए, और पहचान बताकर सूटकेस प्राप्त कर लीजिए।"

हमने उनके सहयोग के लिए, उनका हार्दिक आभार व्यक्त किया और प्रातः की पहली बस से निवाई थाने पर पहुंच कर, थानाधिकारी से अपना मंतव्य जाहिर किया।
वहीं पर तैनात एक सिपाही द्वारा हमें रात्रि में हुई उपरोक्त वर्णित हलचलों का ब्यौरा सुनाया गया।
तत्पश्चात् थानाधिकारी ने हमारी पहचान सुनिश्चित की, सूटकेस के विषय में हमारा मालिकाना हक सुनिश्चित किया और हमें हमारा सूटकेस सौंप दिया।

इस प्रकार पुलिस की तत्परता के कारण हम एक गंभीर मुसीबत का सामना करने से बच गए, क्योंकि सूटकेस में बहुत महत्वपूर्ण सरकारी दस्तावेज थे।
जय भारत!
जय भारत की कर्तव्य परायण
और तत्पर पुलिस!!