प्रभु साध्य हैं..! संसार साधन है..! हम साधक हैं..!
ईश्वर साध्य है-----
अर्थात हमारे जीवन के लक्ष्य है..। उसको प्राप्त करना यानी स्वयं को पूर्ण करना है। उसी को सच्चिदानंद कहते हैं... सत् (अनन्त सत्ता---), चित(अनंत ज्ञान), आनंद(अनंत आनंद)..।।
1) सत् - संसार में कौन है जो मरना चाहता है, यानी सबको जीवन प्रिय है..
2) चित्- संसार में कौन है जो अज्ञानी रहना चाहता है यानी ज्ञान सबको प्रिय है..
3) आनन्द---संसार में कौन है जो दुःखी रहना चाहता है.. यानी आनंद सबको प्रिय है
ब्रह्मांड में जितने भी प्राणी है सब का प्रयत्न उपर्युक्त तीन बिंदुओं के अंतर्गत घूमता है.....।
हम अपने सामर्थ्य अनुसार प्रयत्न करते हैं फिर भी हम अपने आपको दु:खी ही पाते हैं.. क्योंकि कामना हम संसार से करते हैं..। संसार स्वयं अपूर्ण है ...यह आप की कामनाएं कैसे पूर्ण कर सकता है ..।आपकी कामना तो वही पूर्ण कर सकता है जो स्वयं पूर्ण हो.. पूर्ण तो एकमात्र ईश्वर है इसलिये साध्य ईश्वर है....।
संसार साधन है.......
संसार की जितनी सुख सुविधाएं हैं अथवा यह जो दृश्य जगत है यह सब साधन है, उस पूर्ण परमात्मा तक जाने हेतु....।
हम साधक हैं ........।
हम लोग साधक किस श्रेणी में आते हैं... अर्थात हम सबको प्रयत्न के द्वारा संसार को साधन बना कर उस साध्य तक पहुंचना है..।
( आप सभी का आशीर्वाद सुझाव प्रेरणा इत्यादि अपेक्षित है .....।
ईश्वर प्रेरणा से इतनी बातें ध्यान में आई हैं आगे और भी जुड़ सकती हैं?...????)
श्री गणेश 🙏🏻
शिव शिव 🙏🏻
राम राम 🙏🏻
अर्थात हमारे जीवन के लक्ष्य है..। उसको प्राप्त करना यानी स्वयं को पूर्ण करना है। उसी को सच्चिदानंद कहते हैं... सत् (अनन्त सत्ता---), चित(अनंत ज्ञान), आनंद(अनंत आनंद)..।।
1) सत् - संसार में कौन है जो मरना चाहता है, यानी सबको जीवन प्रिय है..
2) चित्- संसार में कौन है जो अज्ञानी रहना चाहता है यानी ज्ञान सबको प्रिय है..
3) आनन्द---संसार में कौन है जो दुःखी रहना चाहता है.. यानी आनंद सबको प्रिय है
ब्रह्मांड में जितने भी प्राणी है सब का प्रयत्न उपर्युक्त तीन बिंदुओं के अंतर्गत घूमता है.....।
हम अपने सामर्थ्य अनुसार प्रयत्न करते हैं फिर भी हम अपने आपको दु:खी ही पाते हैं.. क्योंकि कामना हम संसार से करते हैं..। संसार स्वयं अपूर्ण है ...यह आप की कामनाएं कैसे पूर्ण कर सकता है ..।आपकी कामना तो वही पूर्ण कर सकता है जो स्वयं पूर्ण हो.. पूर्ण तो एकमात्र ईश्वर है इसलिये साध्य ईश्वर है....।
संसार साधन है.......
संसार की जितनी सुख सुविधाएं हैं अथवा यह जो दृश्य जगत है यह सब साधन है, उस पूर्ण परमात्मा तक जाने हेतु....।
हम साधक हैं ........।
हम लोग साधक किस श्रेणी में आते हैं... अर्थात हम सबको प्रयत्न के द्वारा संसार को साधन बना कर उस साध्य तक पहुंचना है..।
( आप सभी का आशीर्वाद सुझाव प्रेरणा इत्यादि अपेक्षित है .....।
ईश्वर प्रेरणा से इतनी बातें ध्यान में आई हैं आगे और भी जुड़ सकती हैं?...????)
श्री गणेश 🙏🏻
शिव शिव 🙏🏻
राम राम 🙏🏻