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आधार की जंग (व्यंग)

© दीपक बुंदेला आर्यमौलिक


आधार की जंग ज़िन्दगी के संग

जब से देश की सरकार ने ये घोषणा की के अब आधार हीं सब कुछ होगा...उस आधार पर हर नागरिक का ग्यारह डिजिट का एक नम्बर होगा.. व्यक्ति की वायोमेट्रिक डिटेल होंगी जैसे दोनों हांथो की अंगुलीयों के फिंगर प्रिंट होंगे, अंखो की बनावट का रिकॉर्ड होगा आदि आदि... जो हर सरकारी और गैर सरकारी कामों में आधार हीं काम आएगा.. लोगों को आकर्षित करने के लिए.. कई विज्ञापन और स्लोगनों का प्रसारण किया गया.. जो आम जन मानस के कानों में गूंजते गूंजते जुबां से गुन गुनाने लगें...जैसे

"आधार के बिना ज़िन्दगी उधार हैं आधार के बिना सब बेकार हैं"

तो ज़नाब हमने अपने जीवन के अब तक के सफर में बहुत सारी जंगो के एतिहासिक पन्ने पढ़े भी और देखें भी.. लेकिन कुछ जंग ऐसी भी हैं जो आदमी खुद लड़ता हैं.. जिसका कोई इतिहास नहीं होता.. ऐसे ही एक दिलचस्प ऐतिहासिक जंग की आज मैं चर्चा कर रहा हूं... जिस जंग को मेरे भारत का हर दूसरा और तीसरा आदमी लड़ रहा हैं... अब बात चाहें रोज़गार की हों या महंगाई की हों जंग तो जंग हैं... इसी जंग में एक जंग और हैं वो हैं आधार की जंग... देश के हर नागरिक के अधिकतर मुद्दे इसी आधार की जंग से जुड़े हुए हैं जो लगता हैं शायद ये कभी खत्म नहीं होंगी .. जिसकी लड़ाई कही आदमी खुद की गलतियों के कारण लड़ रहा हैं तो कहीं आदमी सरकारी तंत्र की कमी के खामियाजे को भुगत रहा हैं...अब मसला मेरा ही लेलो कमबख्त आधार के चक्कर में ऐसा पेच फसा हैं जो ठीक होने की सूरत में ही नहीं आ रहा हैं... कभी कभी तो ऐसा लगता हैं पता नहीं किस गुनाह की सजा भुगत रहा हूं...

आधार बनवाने की जब घोषणा सरकार ने उसके जो फायदे बता कर तो ऐसा लगा के सही में हम आधुनिक युग की ओर रुख कर रहें हैं..आधार सेंटरो को...