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बचपन तेरी यादों का सफर...
कभी कभी सोचती हूँ तो लगता है कि बचपन तेरा सफर कितना प्यारा था!
ये बात उस वक्त की है जब मैं 8-9 साल की थी, मेरे विघालय में में स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर समारोह हो रहा था! मुझे याद नहीं पर मैं अपनी माँ और दीदी के साथ किसी कारण से नाना जी के घर गए थे उस समय मेरी मासी जी की बेटी भी पढाई के लिए हमारे साथ ही रहती थी! मुझे सांस्कृतिक कार्यक्रमों में बहुत अधिक रूचि थी! इसलिए मैं ने मां से वापस आने को कहा, शायद काम कुछ बहुत जरूरी था इसलिए छोड़कर आना सम्भव नहीं था पर माँ को यह भी पता था कि बिना वापस आए मैं मानने वाली नहीं थी, हालांकि माँ भी हमसब को उदास नहीं करना चाहती थी इसलिए 15 अगस्त को सुबह में ही हम सभी वापस आ गये ,उस समय हम मसौढी में किराये के एक छोटे से कमरे में रहकर पढाई करते थें, क्योकि गाँव में शिक्षा की कोई साधन न था! समारोह में भाग लेना था पर आखिरी समय में न मुझे परेड की टीम में सामिल किया गया और ना ही नृत्य का अवसर प्राप्त हुआ पर मेरे प्रधानाचार्य ने मेरे लालाईत मन को देखकर मुझे संगीत का अवसर प्रदान किया मेरी खुशियों का कोई ठिकाना न था मानो अन्तिम समय में किसी ने मरते हुए व्यक्ति को जल देकर जीवन दान दिया हो! समारोह आंरभ हो गया, सभी ने अपने अपने कला का प्रदर्शन किया अब आखिरकार मेरी भी बारी आ गई मैंने अपना संगीत प्रस्तुत किया सब की नजरें मानो एक जगह ही टिक गईं सभी ऐसे मौन गये मानो कृष्ण की बासुरी का मधुर स्वर गुंज उठा हो, ऐसा नहीं है कि मेरे स्वर में इतनी मिठास है दराअ्सल् वो गीत ही इतना अद्भुत था कि आकर्षित होने आम बात थी ऊपर से एक छोटी सी बालिका का कोमल स्वर मन तो मोह ही जाएगा! समारोह समाप्त हो गया उस समय हमारे विघालय में पुरस्कार विस्तृत नहीं किया जाता था वरना कोई सक नहीं कि प्रथम पुरस्कार मुझे मिलता पंरतु महिनों तक सबके जुवान पर उसी संगीत का वश चला! "उस संगीत का बोल है भरी भरी अंजूरी से" ये मै फिर कभी आपको सुनाड.गी! इस समारोह से मुझे आज भी प्रेरणा मिलती है कि भले हमारा लिस्ट में नाम न हो पर हमे आखिरी तक अपनी कोशिश नहीं छोड़नी चाहिए क्योंकि जिस तरह दौड़ का आखिरी संकेड विजेता का निर्णय करता है उसी तरह सफलता जीवन के किसी मोड़ पर मि सकती है बस हमें कोशिश करती रहनी चाहिए!
सभी सहपाठी अपने-अपने माता-पिता के साथ आये थे पर पिता जी गाँव में रहते थे और माता जी घर के कामों में व्यस्त रहती थी तो समारोह में आ न सकी एक कारण और भी था उनके न आने का ,उस समय मेरी एक छोटी सी बहन भी थी जो बिमार रहती थी जो बाद में हमें हमेशा के लिए छोड़ कर चली गई ( अर्थात उसकी मृत्यु हो गई ) !
हमेशा से मेरी एक ही इच्छा रहती थी कि मेरे भी माता पिता मेरे अभिनय, नृत्य, संगीत को देखे पर आज तक ऐसा कभी न हुआ माँ अब नहीं रही, पिता जी के पास हमारे लिए इतना वक्त कहा! पर आज भी मेरी कोशिश यही है कि जब मैं IPS officer👮बनुं तो मेरे पिता जी का हाथ कम से कम एक बार मेरे सिर पर अवश्य आशीर्वाद देने के लिए पडे़ और जुवान पर एक गर्वान्वित वाक्य हो!!

© Anishtha priya Agarwal