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अनजानी रात १
राज और करण रात के ३ बजे पार्टी करके निकले ही थे की फ़ोन की घंटी बजी। राज ने जैसे ही फोन उठाया वह चौंक उठा। फ़ोन पर उसके दोस्त करण का नाम था। लेकिन…करण तो उसके साथ ही था। गाड़ी चला रहा था। फ़ोन भी साथ था!
तो आख़िर फ़ोन किसका था? करण का नाम क्यों लिखा था? सोचते सोचते फ़ोन की घंटियां थम गई लेकिन सवाल नहीं थमे राज के!
राज इसपर विचार कर पाता, इससे पहले ही गाड़ी अपना संतुलन खो बैठी। ब्रेक फ़ैल हो गए । करण बड़ी मुश्किल से गाड़ी संभाल रहा था। इतनी घनी रात में कुछ दिखाई भी नही पड़ रहा था।

कमबख्त हैडलाइट भी काम नहीं कर रही। ब्रेक भी फेल हो चुके हैं!! करण ने डरते हुए गुस्से में कहा।
इतनी रात गए इतने अंधेरे में कोई दिख भी नहीं रहा। सन्नाटा चिल्ला चिल्ला कर किसी के न होने की गवाही दे रहा है! राज ने चिंता व्यक्त की।

करण जैसे तैसे गाड़ी को संभाल रहा था कि गाड़ी एक पेड़ से टकरा गई और रुक गई। करण और राज गाड़ी से उतरे और दोनों ने अपने फ़ोन की टॉर्च ऑन की।

ये कहां पहुंच गए हम?? करण अचंभित स्वर में पूछता है।
मैं भी तुम्हारे साथ यहां आया हूं! मुझे कैसे पता? राज ने आगे कहा – इतने घने पेड़ों को देखकर तो ऐसा लगता है कि ये कोई जंगल है।
जंगल??? करण हैरान था।
हां… बोला तो मैंने जंगल ही था…राज ने हंसते हुए कहा।
अरे मतलब, अब इस जंगल से बाहर कैसे निकलें? करण ने राज की ओर देखकर पूछा।
कुछ आगे चलकर देखते हैं, शायद रास्ता मिल जाए। राज ने जवाब दिया।
ह्मम … करण ने हामी भरी।

दोनों ने आगे बढ़ते हुए झाड़ियां हटाई ही थी कि सामने जिस मंजर को देखा, दोनों की आंखें फटी की फटी रह गई।

आख़िर दोनों ने क्या देखा? जानने के लिए थोड़ा सा इंतजार कीजिए अगले भाग का : अनजानी रात २


© Utkarsh Ahuja