मतदान का मौसम...
#वोट
चाय की टपरी में आज काफी गहमा गहमी है। बनवारी लाल हाथ में अख़बार लिए पढ़ रहे और हर एक ख़बर पर चाय की चुस्कियों के साथ चर्चा हो रही। जैसे चुनाव के दल वैसे ही चाय की दुकान भी दो हिस्सों में विभाजित हो गई थी।
रविवार के शाम को अक्सर हीं इस चाय की दुकान पे हर उम्र के चाय के शौकिन का जमावड़ा रहता है...विशेष कर छात्रों की, जो भिड़ को बढ़ाने का काम कर रही थी।
बनवारी चाचा "नव चेतना" नामक समाचार पत्र में एक सम्मानित पत्रकार थे एंव अपने बेबाक अंदाज के कारण छात्रों में प्रसिद्ध थे...
हर शाम की तरह आज भी वो चाय के चुस्कियों के साथ अख़बार के प्रमुख मुद्दों पर छात्रों से रूबरू थे...
उन्होंने व्यंगात्मक लहजे में एक छात्र से पुछा...इसबार मतदान में "वोट" देने गाँव जा रहे हो?
कोचिंग से कहाँ समय मीलता है चाचा! एक तो वैकेंसी लेट से आता है और उपर से सिलेबस कोचिंग वाले समय से पुरा नहीं करते...बाहर भी पढ़ना पड़ता है और अपने रूम पर भी! छात्र ने जवाब दिया...
चाय कि चुस्की लेते हुए बनवारी चाचा ने...
चाय की टपरी में आज काफी गहमा गहमी है। बनवारी लाल हाथ में अख़बार लिए पढ़ रहे और हर एक ख़बर पर चाय की चुस्कियों के साथ चर्चा हो रही। जैसे चुनाव के दल वैसे ही चाय की दुकान भी दो हिस्सों में विभाजित हो गई थी।
रविवार के शाम को अक्सर हीं इस चाय की दुकान पे हर उम्र के चाय के शौकिन का जमावड़ा रहता है...विशेष कर छात्रों की, जो भिड़ को बढ़ाने का काम कर रही थी।
बनवारी चाचा "नव चेतना" नामक समाचार पत्र में एक सम्मानित पत्रकार थे एंव अपने बेबाक अंदाज के कारण छात्रों में प्रसिद्ध थे...
हर शाम की तरह आज भी वो चाय के चुस्कियों के साथ अख़बार के प्रमुख मुद्दों पर छात्रों से रूबरू थे...
उन्होंने व्यंगात्मक लहजे में एक छात्र से पुछा...इसबार मतदान में "वोट" देने गाँव जा रहे हो?
कोचिंग से कहाँ समय मीलता है चाचा! एक तो वैकेंसी लेट से आता है और उपर से सिलेबस कोचिंग वाले समय से पुरा नहीं करते...बाहर भी पढ़ना पड़ता है और अपने रूम पर भी! छात्र ने जवाब दिया...
चाय कि चुस्की लेते हुए बनवारी चाचा ने...