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मासिक धर्म (Periods):भाग 1
आसान नहीं होती एक औरत की जिन्दगी । कितने ही दर्द से हो के गुजरना पड़ता है। और सभी दर्द में एक दर्द ये भी है जो हर महीने मिलता है। जिसे हम " मासिक धर्म" कहते है।

आप यही सोच रहे की कैसे कोई इस पर इतना खुल के बात कर सकता है? इसका तो नाम भी इतना धीरे से लिया जाता है की कोई सुन ना ले। कहीं कहीं तो औरतें इशारे में बात करती है?



मेरा उन्हीं औरतों से सवाल है। ऐसा क्यों? इसमें इतना छुपाने जैसा क्या है? ये तो प्राकृतिक है। मैं ये भी नहीं कह रही की हर जगह खुल के इसकी चर्चा की जाए। लेकिन बढ़ती हुई बच्चियों को इसकी जानकारी देनी चाहिए। जिससे वो अपने मासिक धर्म से जुड़ी समस्या को खुल के बता सके।



एक औरत की जिन्दगी का यही वो समय है जब उसे बहुत ज्यादा प्यार ,देखभाल और अपनेपन की जरूरत होती है।



लेकिन कौन थे वो लोग जिन्होंने मनगढ़ंत अफवाहें फैलाई की इस समय लड़कियां गंदी होती है। उन्हें छूना नहीं। उनसे बात नहीं करनी। उनका चेहरा नहीं देखना। उन्हें घर से अलग किसी कमरे में रखना। मंदिर में मत जाना क्यू भला? अरे भाई भगवान को ऐसी हालत में छूना भी मत गंदे हो जाएंगे भगवान, रसोई में मत जाना क्यों? क्योंकि तुम्हारे हाथ का बन खाना कौन खायेगा भला और ना जाने क्या क्या?



इतना भेदभाव वो भी उस समय जब एक लड़की, एक औरत इतने दर्द से गुजर रही हो।



अंजान नहीं है कोई इस बात से की मासिक धर्म के समय कितना असहनीय पेट दर्द होता है। पैर तो ऐसे दर्द होते है जैसे मिलो चल के आये हो । कमर में इतना दर्द होता है जैसे किसी ने हजारों सुइयां चुभाई हो। सर अलग ही दर्द से फट रहा होता है।



बात सिर्फ यही खत्म नहीं है । ये शारीरिक दर्द तो जान लेता ही है। और इसके साथ मिल रहा मानसिक दर्द तो जले पर नमक का काम करता है।



फिर भी लोग कहते है की लड़कियां तो नाजुक होती है । उन्हें दर्द का क्या एहसास।

( मुझे नहीं पता इसे पढ़ने के बाद लोग मेरे बारे में क्या सोचेंगे । मैंने बस वही लिखा है जो सच है।)

महावरी से जुड़ी कहानी है स्कूल के बच्ची की उसका भाग 2 जल्दी ही आएगा...
धन्यवाद 😊
© kittu_writes