...

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तू थी तुझे लिखता था...
मोहब्बत की राह में नफरत मिला।
इबादत की राह में बगावत मिला।

हम सोचे ना थे मेरे लिए तेरे लफ्ज़ ऐसे होंगे,
बता उस लफ्ज़ के बदले तुझे क्या मिला?

चल शुरुआत की एक बात याद कर।
मैं अगर झूठा तो खुदा से एक फरियाद कर।

बोल अपने उस रब को मेरी मौत हो जाए,
तू रह जिंदा और खुद को आबाद कर।

और एक बात सुन....

तू साथ थी, “होती है तेरी कमी” लिखता था।
तू हंसती थी और मैं नमी लिखता था।

तुझे क्यूं समझ नहीं आया था हालात मेरा?
राहुल अब मुझे लिखता है, तू थी तुझे लिखता था।

कभी तेरा ख्याल लिखता था।
कभी मोहब्बत का इजहार लिखता था।

“सच बोलना मुझसे” तूने ही कहा था।
कभी तकलीफ, कभी शक, जो था खुलेआम लिखता था।

राहुल अब मुझे लिखता है, तू थी तुझे लिखता था।

अश्क में बीती वो रात लिखता था।
तेरी हसीं की बरसात लिखता था।

ख्यालों के शहर से एक ख्याल लिखता था।
मोहब्बत में दर्द की पुकार लिखता था।

राहुल अब मुझे लिखता है, तू थी तुझे लिखता था।

अंधेरों में भी तेरा नाम लिखता था।
तुझे जान, इश्क की पहचान लिखता था।

बेपनाह मोहब्बत सरेआम लिखता था।
तुझे इश्क, खुद को बदनाम लिखता था।

राहुल अब मुझे लिखता है, तू थी तुझे लिखता था।

कायनात को छोटा, मोहब्बत को कायनात लिखता था।
मोहब्बत की भीड़ में, बिना लिखे तेरा नाम लिखता था।

तू हमेशा दूर और खफा रही उससे,
पर तुझे खुदा और खुद को गुलाम लिखता था।

राहुल अब मुझे लिखता है, तू थी तुझे लिखता था।

अब, कहां-कहां था झूठा, हर एक सवाल लिखता है।
खुद से करता है बात, खुद का जवाब लिखता है।

जैसी जिंदगी की हालात होगी, वो हालात लिखेगा।
कभी खुद से सवाल तो कभी जवाब लिखेगा।

राहुल अब मुझे लिखता है, तू थी तुझे लिखता था।

© Rahul Raghav

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