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एक सफ़र अनजाना सा (प्रकाशित अक्टूबर 2022) Episode 14
"A story (Novel) which has a flavor of adventure, mystery and love."

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Episode 14

4 जनवरी 1987
समय – शाम 7 बजे

करण ने वापस दिल्ली आकर ऑफिस ज्वाइन कर तो लिया, लेकिन उसका दिल ज़रा भी काम में नहीं लगा। सारा दिन उसके दिमाग़ में उथल-पुथल मची रही। किशनगढ़ की उन ख़ूबसूरत और महकती वादियाँ में सायरा का वह मासूम-सा चेहरा। वह सामने बैठ अपनी तमाम उम्र उसके दीदार में गुज़ार सकता था। उसे ऐसा लग रहा था मानो वह किसी गहरे सपने से जागा था। कितना सुंदर और मनोरम सपना था वह। जिसे वह बार-बार देखना चाहता था। लेकिन सपनों पर किसका ज़ोर चला है, वे तो आज़ाद पंछियों से होते हैं। अपनी मर्जी से आते है और किसी भी क्षण झटसे चले भी जाते हैं।

दिनभर का कार्य निपटाते-निपटाते उसे शाम के सात बज गए थे। करण जब ऑफिस से निकला तो ढ़लती सुनहरी शाम, गहरी रात में तब्दील हो चुकी थी। इरविन स्ट्रीट रोशनी से जगमगा उठी थी और वातावरण में हल्की धुँध छायी हुई थी। ठण्ड इतनी अधिक थी कि आसमान में टिमटिमाते तारे भी सर्दी में ठिठुरते-से जान पड़ रहे थे।

वैसे तो शाम छः बजे से ही इरविन स्ट्रीट के ज़्यादातर दफ़्तर छूटने लगते थे और सात बजते-बजते सड़क पर पैदल लोगों की जबरदस्त आवाजाही शुरू हो जाती थी। लेकिन रोज़मर्रा के मुकाबले आज कुछ ज़्यादा ही चहल-पहल दिखाई पड़ रही थी। युवक-युवतीयाँ चहकते हुए करण के अगल-बगल से गुजर रहे थे। दाहिनी तरफ़ पान की दुकान पर खड़े कुछेक लोग सिगरेट में कश और जोर-जोर से ठहाके लगा रहे थे। आगे नुक्कड़ की उस छोटी-सी चाय की दुकान पर जलती भट्टी को घेरे कुछ युवक चाय की चुसकियाँ ले रहे थे। लगातार चलते समय के साथ जन-जीवन भी रोज़मर्रा की तरह ही चल रहा था। लम्बे-लम्बे डग भरता हुआ करण अपने पसन्दीदा कॉफी हाउस की ओर बढ़ा जा रहा था।

इरविन स्ट्रीट का यह सबसे बड़ा कॉफी हाउस था। यूँ तो अक्सर ही यहाँ जमघट लगा रहता था, लेकिन आज उस हॉल में बड़ी जबरदस्त भीड़ थी। कुछ जाने-पहचाने से तो कुछ बिल्कुल ही नए चेहरे दिखाई दे रहे थे। कॉफी हाउस चहल-पहल और आनंद से भरा पड़ा था। दिनभर की थकान भुलाकर हर तरफ़ हँसी-मज़ाक और ठहाके गूँज रहे थे।

करण की नज़रें चारों ओर घूम गई, लेकिन वहाँ कोई टेबल खाली दिखाई नहीं दे रही थी। तभी अंधेरे कोने की एक टेबल से किसी ने उसे हाथ का इशारा किया। करण उनके पास जा पहुँचा, वहाँ सुजीत और प्रशान्त बैठे थे। प्रशान्त अकेला ही दो कुर्सीयाँ मिलाकर बैठा था। हमेशा की ही तरह सुजीत के सामने चाय और प्रशान्त के आगे कॉफी का कप रखा था। सुजीत ने फ़र के लम्बे कॉलर वाली भूरे रंग की चमड़े की जैकिट पहनी हुई थी और प्रशान्त आँखों पर नज़र का चश्मा लगाए काले रंग के कोट पेंट पहने था।

सुजीत गर्मजोशी के साथ करण से हाथ मिलाते हुए बोला, “अरे! तू इतने दिनों से कहाँ था? पूरे दस दिनों बाद दिखाई दे रहा है, न तेरी कोई ख़बर न पता, जानता है? न्यू यिअर की पार्टी हमने यहीं रखी थी और तू गायब हो गया!”

फिर प्रशान्त से हाथ मिलाते हुए करण ने कहा, “बस क्या बताऊँ यारों! एक सप्ताह की छुट्टियाँ लेकर गाँव गया था,”

करण के बैठते-बैठते ही सुजीत ने उसके लिए चाय ऑर्डर कर दी।

“तूने अपने जाने के बारे में मुझे भी नहीं बताया? हम सोचते ही रह गए कि तू इस तरह बिना बताए कहाँ चला गया है?” सुजीत बोला।

“जाने से पहले मैं तेरे घर गया था लेकिन तेरा फ्लैट लॉक था,” करण ने कहा।

“चल छोड़! पहले यह बता कि आँटी ने हमारे लिए क्या भेजा है?” सुजीत ने उत्सुकता के साथ पूछा।

“माफ़ कर दो यारों! कुछ नहीं ला पाया बिल्कुल भी टाइम नहीं मिला। बस यूँ समझ लो कि घर पहुँचा और उलटे पाँव ही वापस हो लिया,” करण बोला।

“यह बोल न कि यारों को भूल गया था, बहाने क्यों मारता है?” अबकी बार प्रशान्त बोला।

“सच में यार! घर पर तो मैं सिर्फ़ एक रात ही रुका था और फिर अगले दिन वापस आना पड़ा, छुट्टियाँ जो खत्म हो गई थी,” करण ने बताया।

“अच्छा! तो बाक़ी के दिन क्या झुमरी तलैया में गुजार कर आ रहा है?” सुजीत बोला।

“मैं ख़ुद नहीं जानता कि मैं कहाँ गया था। दिमाग़ ने बिल्कुल काम करना बन्द कर दिया है। मेरी तो कुछ समझ में ही नहीं आ रहा है कि वह हक़ीक़त थी या सपना!” करण ने उदास होते हुए कहा।

“अबे! क्या पहेलियाँ बुझा रहा है, कुछ ठीक से भी बताएगा?” प्रशान्त ने कहा।

“मेरी भी समझ में नहीं आया कि इसने क्या कह दिया!” सुजीत ने चाय की घूँट भरते हुए कहा।

तभी कॉफी हाउस का सर्विंग बॉय करण के लिए भी चाय रख गया।

“पता नहीं तुम दोनों मेरी बातों पर यकीन करोगे भी या नहीं,” करण ने अपनी चाय का कप उठाते हुए कहा।

“अरे! ऐसा क्या हो गया है जो यकीन करने लायक ही नहीं है?” प्रशान्त ने पूछा।

“हमारे सिर में बिना दर्द किए ठीक तरह से अपनी बात कह ड़ाल,” सुजीत बोला।

करण ने एक गहरी साँस ली और कहना शुरू किया, “हुआ यूँ कि मैं पच्चीस दिसम्बर को अपने गाँव के लिए ट्रैन से चला था, ठीक है?”

“अबे ठीक है मेरे बाप, पच्चीस को ही गया होगा! बात किश्तों में मत कर एकमुश्त कह ड़ाल न,” सुजीत बोला।

“सुन तो, मैं पच्चीस को यहाँ से गाँव के लिए निकला था। शाम को लगभग सात बजे के आसपास ट्रैन ने मुझे रामगढ़ स्टेशन पर उतार दिया था। जब मैं स्टेशन पर उतरा तो मुझे बड़ा ही अज़ीब लगा!”

“क्या?” सुजीत ने आश्चर्य से पूछा।

“जाने क्यों मुझे लगा कि मैं रामगढ़ स्टेशन पर नहीं उतरा था! हालांकि देखने में तो वह रामगढ़ स्टेशन ही था! लेकिन फिर भी, वास्तव में वह रामगढ़ स्टेशन नहीं था!” करण ने कहा।

“अरे यार!, क्यों हमारे दिमाग़ की दही कर रहा है। जब तू रामगढ़ स्टेशन पर उतरा था तो वह रामगढ़ स्टेशन ही तो होगा? लेकिन वह रामगढ़ स्टेशन नहीं था?" प्रशान्त कॉफी में घूँट भरते हुए बोला, "अब इसका मतलब भी समझा दे मेरे भाई,”

“अरे यार प्रशान्त! पहले इसकी पूरी बात तो सुन ले,” सुजीत ने प्रशान्त को चुप किया और फिर करण से बोला, “तू बोल फिर क्या हुआ?”

“हां तो मैं यह कह रहा था कि जिस रामगढ़ स्टेशन पर मुझे उतरना था, या फिर जिस रामगढ़ स्टेशन को मैं पहचानता था, यह वह वाला रामगढ़ स्टेशन नहीं था! मतलब जगह तो वही थी लेकिन सबकुछ बदला-बदला था,” करण ने बताया।

“फिर?” सुजीत हैरान होते हुए बोला।

“फिर मैं स्टेशन से बाहर निकला। एक़दम सुनसान चारों ओर सन्नाटा ही सन्नाटा! फिर वहाँ मेरी मुलाक़ात एक लड़की से हुई उसका नाम सायरा था,”

सुजीत आँखें मटकाते हुए प्रशान्त से बोला, “हुम्म! लड़की और नाम सायरा!”

फिर करण ने क्रमवार सारी कहानी उन दोनों को कह सुनाई। कैसे वह रामगढ़ स्टेशन से चाय वाले काका तक पहुँचा, फिर प्रताप सिंह का लिफ़्ट देना और उसे अपनी हवेली पर ले जाना। सायरा से मुलाक़ात और मोहब्बत का इज़हार। प्रताप सिंह का करण को पसन्द करना और फिर अगले दिन वापस अपने घर पहुँचना।

अपनी बात कहते - कहते वह बोला, “लेकिन इस सारे सिलसिले में एक बहुत बड़ी गड़बड़ी है,”

“क्यों इसमें गड़बड़ी कहाँ है?” सुजीत ने कहा।

“गड़बड़ी मैं बताता हूँ कैसे है। अच्छा! यह बताओ कि अगले दिन जब मैं अपने घर पहुँचा था तो उस दिन क्या तारीख़ होनी चाहिए?” करण ने उनसे पूछा।

सुजीत ने चाय की एक चुस्की ली और बोला, “ले क्या पागलों जैसी बातें कर रहा है, अबे जब तू यहाँ से गया ही पच्चीस को है तो अगली तारीख छब्बीस दिसम्बर ही तो होगी?”

“यहीं पर तो सारी गड़बड़ी है! अगले रोज़ छब्बीस दिसम्बर नहीं थी बल्कि दो जनवरी का दिन था,” करण ने बताया।

“एक मिनट-एक मिनट! तूने पच्चीस दिसम्बर को ट्रैन पकड़ी और दो जनवरी को अपने घर पहुँचा? मतलब आठ दिन?” सुजीत ने आश्चर्य के साथ पूछा।

“हाँ! मेरी ज़िंदगी के पूरे आठ दिन कहीं गायब हो गए जो मुझे बिल्कुल याद नहीं हैं,” करण बोला।

प्रशान्त, जोकि चुपचाप कॉफी पीते हुए हर बात बड़े ध्यान से सुन रहा था, बोला, “अबे पच्चीस दिसंबर को तूने कोई भाँग या चरस तो नहीं लगा ली थी?”

“मैं क्या नशा करता हूँ?” करण ने चिढ़कर प्रशान्त से पूछा।

“या फिर ट्रैन में किसी ने बहाने से कुछ मिलाकर तुझे खिला दिया हो!” सुजीत बोला।

“कोई कुछ क्यों खिलाएगा?” करण ने पूछा।

“तेरे माल पर हाथ साफ़ करने के लिए,” सुजीत ने कहा।

“ऐसा कुछ नहीं हुआ! मेरा हर समान मेरे बैग में एक़दम ठीक-ठाक था, और पर्स में रुपए भी,” करण ने बताया।

“अब तू अपनी जासूसी करनी बन्द करेगा?” प्रशान्त सुजीत से बोला।

“यार अब संभावनाएं तो सारी देखनी पड़ेंगी न? नहीं तो तू बता, ऐसा क्या हुआ होगा? आखिर तू इतना बड़ा फिज़िक्स का प्रोफेसर बना फिरता है,” सुजीत बोला।

“रहने दे, मेरे जेम्सबॉन्ड! यह तेरे जैसे बच्चों के स्तर की बातें नहीं हैं। हम साइन्स वाले कब काम आयेंगे?” प्रशान्त ने सुजीत की तरफ़ आँखे तरेरते हुए कहा और फिर करण से बोला, “अच्छा! करण तू मुझे सच-सच कह सकता है,”

“क्या सच कह सकता हूँ?” करण ने पूछा।

“यही कि तूने भाँग या चरस लगा रखी थी, गलती से,” प्रशान्त बड़े प्यार से बोला, “वैसे भी हम किससे कहने जा रहे हैं, क्यूँ सुजीत?"

सुनते ही सुजीत की हँसी छूट गई और प्रशान्त भी ज़ोर से हँसने लगा। उन दोनों को हँसते देख करण चिढ़ गया।

करण के बदलते तेवर देख प्रशान्त ने सुजीत को डाँटते हुए कहा, “चुप कर! ख़ुद तो बकवास करता ही है, मुझसे भी करवाता है। हँसी-मज़ाक बाद में, पहले हमें सीरियसली करण की बात सुननी चाहिए। अच्छा करण फिर क्या हुआ था?”

“फिर कुछ नहीं हुआ और इस बात को यहीं बन्द करो,” करण ने झल्लाते हुए कहा।

“साले! यार भी कहता है और हमें बात भी नहीं बताना चाहता है?” सुजीत बोला।

“बहुत अच्छी बात कर रहे हो न तुम दोनों। मैं तुम दोनों को अपनी आप बीती सुनाकर अपना मन शान्त करना चाहता हूँ, और तुम मुझपर हँस रहे हो!” करण भावुक हो गया था।

“यार के साथ नहीं हँसेंगे तो फिर किसके साथ हँसेंगे?” सुजीत बोला।

प्रशान्त ने प्यार से करण के कँधे पर हाथ रखा, “यदि हमें सच्चा मित्र मानता है तो बता फिर आगे क्या हुआ था? शायद तेरी समस्या का समाधान मिल जाए!”

“ताकि तुम फिर हँस सको!” करण बोला।

“नहीं यार! हम बिल्कुल नहीं हँसेंगे, अब मज़ाक नहीं, कसम से! और तेरा चेहरा ही बता रहा है कि बात गंभीर है!” सुजीत बोला।

“तो ठीक है! अब ज़रा याद करने की कोशिश कर कोई बात या ट्रैन में किसी व्यक्ति का व्यवहार जो तुझे असाधारण लगा हो!तुझे जो भी कुछ हुआ है वह ट्रैन में ही हुआ है!” प्रशान्त ने कहा।

कुछ पलों की चुप्पी के बाद करण ने कहना शुरू किया, “यार, मुझे उस रात की हर घटना और हरेक इंसान बिल्कुल अच्छे से याद है, जैसे तुम दोनों याद हो। ऐसी कोई बात तो मुझे कहीं नज़र नहीं आई जो असाधारण-सी हो। मुझे मिस्टर खन्ना ने लिफ़्ट दी और उन भले आदमी ने ही मुझे अपनी हवेली में एक रात के लिए पनाह भी दी थी। फिर उसके बाद अगले दिन सीधा मैं अपने घर पहुँच गया, इतने में ही मेरे आठ दिन बीत गए थे। इस घटना को मैं अपने दिमाग़ की कोई बीमारी ही समझता रहता या फिर यह कि ट्रेन में मुझे किसी ने कुछ मिलकर खिला दिया था, यदि मुझे वह संतोष नहीं मिलता!”

“एक मिनट! यह संतोष बीच में कहाँ से आ गया?” सुजीत ने एक़दम जासूसी अंदाज में पूछा।

“यह की न जेम्सबॉन्ड वाली बात, शाबाश! सुजीत, मुझे तुझसे ऐसी ही उम्मीद थी,” प्रशान्त ने फिर करण से पूछा, “हाँ! भई बता, वह संतोष इस कहानी में कहाँ से आ गया?”

करण ने फिर आगे की कहानी भी कह सुनाई। कैसे वह घर से वापस दिल्ली आते समय किशनगढ़ पहुँचा। जहाँ न कोई झील न पहाड़ी और न ही कोई महल था, सबकुछ गायब हो चुका था और उस ऑटोरिक्शा वाले लड़के संतोष से हुई बातचीत भी कह सुनायी।

करण की पूरी कहानी सुनने के बाद प्रशान्त ने चहकते हुए कहा, “कमाल है! यदि वैसा ही हुआ है जैसा मैं सोच रहा हूँ, तो फिर यह एक आश्चर्यजनक घटना है जो केवल कहानियों में ही लिखी रहती है!”

“कैसी आश्चर्यजनक घटना?” सुजीत ने पूछा।

“यदि जैसा यह बता रहा है, और ठीक वैसा ही हुआ है, तो जानते हो तुम दोनों कि क्या हुआ हो सकता है?” कहकर प्रशान्त ने बारी-बारी दोनों की ओर देखा।

“क्या हुआ है?” सुजीत और करण एक साथ बोल उठे।

“करण ने समय यात्रा की थी!” प्रशान्त बोला।

“समय यात्रा?”

प्रशान्त द्वारा इस रहस्योद्घाटन को सुनकर करण और सुजीत एक साथ चौंक उठे। दोनों ने एक दूसरे को देखा और फिर प्रशान्त को आश्चर्य से देखने लगे। आज प्रशान्त उनका मित्र कम और एक फिज़िक्स का प्रोफेसर अधिक लग रहा था। उन्हें अपने कानों पर यकीन ही नहीं हो रहा था कि समय यात्रा हक़ीक़त में भी संभव हो सकती है। क्योंकि इस बारे में तो उन्होंने कभी-कभार ही मुश्किल से कहीं सुना या पढ़ा था।

“टाइम ट्रैव्लिंग? मैं कुछ समझा नहीं, मतलब ऐसा कैसे हो सकता है? म....मैंने तो साधारण-सी एक ट्रैन यात्रा की थी, न कि कोई समय यात्रा! सुजीत, यह प्रशान्त क्या कह रहा है, तुझे कुछ समझ आया?” करण एक़दम बेचैन हो उठा।

“यार प्रशान्त! मेरी भी कुछ समझ में नहीं आया। ठीक से समझाए तो कुछ पल्ले पड़े!” सुजीत प्रशान्त से बोला।

“देखो! विज्ञान भी इस टाइम ट्रैव्लिंग के मत से इत्तफ़ाक़ रखता है। वैज्ञानिक नज़रिये से भी ऐसी घटनाओं को खारिज़ नहीं किया जा सकता!” कुछ सोचते हुए प्रशान्त ने कहा, “यहाँ दो संभावनायें हो सकती है! नंबर एक, एनर्जी फ़ील्ड में बने इनविज़िबल एनर्जी गेट से होकर करण किसी अन्य समय में पहुँच गया था,”

“और दूसरी?” झट से करण ने पूछा।

“या फिर नंबर दो, एनर्जी फ़ील्ड में बने उसी इनविज़िबल एनर्जी गेट के ज़रिए ही तू किसी समानांतर दुनिया में पहुँच गया हो!” प्रशान्त ने बताया।

“प्रशान्त! सच में यार आज तो तू बड़ी ही आश्चर्यजनक बातें कर रहा है! तेरी दोनों ही बातें कुछ पल्ले नहीं पड़ी,” सुजीत ने उत्सुकता के साथ कहा।

“ऊम्म! इसे इस तरह समझो! किसी स्थान पर यदि बहुत अधिक मात्रा में ऊर्जा इककट्ठी हो जाए तो वह एक एनर्जी फ़ील्ड बना सकती है। और ऐसे ज़बरदस्त एनर्जी फ़ील्ड ग्रैविटी को अधिक सघन कर देते हैं। और ग्रैविटी की सघनता इनविज़िबल एनर्जी गेट बना सकती है!” प्रशान्त बोला।

“इनविज़िबल एनर्जी गेट से क्या मतलब?” करण ने पूछा।

“इनविज़िबल एनर्जी गेट को विज्ञान की भाषा में वॉर्महोल कहते हैं। इन्हें कैसे क्रीऐट और कंट्रोल किया जाता है यह तो नहीं मालूम, लेकिन ये ऐसे दरवाज़े होते हैं जो समय के अलग-अलग आयामों से जुड़े होते हैं! कुछ बुद्धिजीवी ऐसा ही मत रखते हैं कि यदि किसी को इनमें प्रवेश मिल जाए तो वह टेलीपोर्ट होकर दूसरे समय या दुनिया में पहुँच सकता है,” प्रशान्त ने बताया।

“किसी भी समय में?” करण ने पूछा।

“हाँ! किसी भी समय में, क्योंकि ये वॉर्महोल भूत या भविष्य किसी भी समय से जुड़े हो सकते हैं!” प्रशान्त ने करण की आँखों में झाँकते हुए कहा।

“ये वॉर्महोल किसी को समय में कितना आगे या पीछे ले जा सकते हैं?” करण ने फिर पूछा।

“कुछ नहीं कहा जा सकता क्योंकि हम अभी समय को भी ठीक से नहीं जानते हैं! हालांकि वैज्ञानिक मत है कि यदि किसी वजह से कोई समय यात्रा कर भी ले तो वह केवल भविष्य में जा सकता है। भूतकाल या कहो पास्ट में नहीं जा सकता,” एक साँस लेकर प्रशान्त बोला, लेकिन मेरा मत है कि समय यात्रा फ्यूचर के साथ-साथ पास्ट में भी की जा सकती है। बस अभी हमें इस थ्योरी पर और काम करना है।"

“इसका मतलब उस वॉर्महोल से अनजाने में ही टेलीपोर्ट होकर मैं समय में कहीं पीछे पहुँच गया था?” करण ने ख़्यालों में गुम होते हुए पूछा।

प्रशान्त ने एक पल सोचा और बोला, “नहीं!”

“नहीं?” करण और सुजीत एक साथ बोले।

“शायद ऐसा नहीं हुआ! क्योंकि ऊर्जा फ़ील्ड में बने ये वॉर्महोल, केवल समय के दो आयामों को ही नहीं जोड़ते, बल्कि ये दो समानांतर दुनिया या पैरेलल वर्ल्ड में आने-जाने के रास्ते भी हो सकते हैं! और बहुत मुमकिन है कि तूने वॉर्महोल से टेलीपोर्ट होकर किसी पैरेलल वर्ल्ड में एंट्री पा ली हो!” प्रशान्त ने कहा।

“पैरेलल वर्ल्ड का क्या मतलब हुआ?” सुजीत ने एक जिज्ञासु बालक की तरह पूछा।

“समानांतर दुनिया! देखने में बिल्कुल हमारी दुनिया जैसी ही होती है। वॉर्महोल इन समानांतर दुनियाओं के बीच के ऐसे शॉर्टकट रास्ते होते है, जिनसे पलभर में ही उस दुनिया से इस दुनिया में आया-जाया जा सकता है!” प्रशान्त ने कहा।

“इसका मतलब मैं टेलीपोर्ट होकर किसी पैरेलल वर्ल्ड में पहुँच गया था?” करण अब और भी हैरान और परेशान हो चुका था।

“लेकिन यह तू कैसे कह सकता है?” सुजीत ने प्रशान्त से पूछा।

“देखो! करण को उस ऑटोरिक्शा वाले लड़के ने बताया कि उस लड़की ने उसे 1950 से 1960 के बीच के सिक्के दिए थे, बराबर?” प्रशान्त बोला।

“बराबर!” वे दोनों एक साथ बोल उठे।

“अब इस तरह से देखा जाए तो करण 1950 के दशक में पीछे गया होना चाहिए!” प्रशान्त ने कहा।

“बिल्कुल!” सुजीत बोला।

“लेकिन जब यह कल फिरसे उसी स्थान पर, क्या नाम था उस जगह का?” प्रशान्त ने पूछा।

“किशनगढ़!” ज़वाब सुजीत ने दिया।

“हुम्म! बड़ी अच्छी याददास्त है तेरी! तू जासूसी का काम ही शुरू कर ले!” प्रशान्त ने चुटकी लेते हुए कहा।

“ठीक है-ठीक है, आगे बोल!” सुजीत बोला।

“हाँ! तो जब यह फिरसे किशनगढ़ पहुँचा। तब वहाँ न तो कोई झील थी, न कोई पहाड़ी और न ही उस पहाड़ी पर कोई महल या हवेली। तो कहाँ गई वह लोकैशन? केवल 40-45 वर्षों में इतना बड़ा परिवर्तन नहीं हो सकता! इतना बड़ा महल कुछ सालों में गायब नहीं हो सकता! उस महल के वहाँ होने का कोई तो गवाह होता!” प्रशान्त बोला।

“इसका मतलब यह हुआ कि मैं ऐसी ही किसी दूसरी दुनिया में पहुँच गया था? जहाँ रामगढ़ स्टेशन भी है और किशनगढ़ भी है?” करण ने पूछा।

“बिल्कुल! तूने एक पैरेलल वर्ल्ड में यात्रा की हो सकती है!” प्रशान्त ने कहा।

“लेकिन वह एनर्जी फ़ील्ड कैसे और कहाँ बना? मुझे तो ऐसा कुछ दिखाई नहीं दिया कि जहाँ ढेरों ऊर्जा इककट्ठी हो रही थी!” करण इस रहस्य के बारे में सबकुछ जानना चाहता था।

“ऊर्जाएँ केवल उन्हीं रूपों में नहीं होतीं, जो हमें नज़र आती हैं! गुरुत्वाकर्षण ऊर्जा यानि ग्रैविटैशनल एनर्जी क्या तुझे या मुझे नज़र आती है? हमारी पृथ्वी का वातावरण आक्सिजन और अन्य गैसों से भरा पड़ा है। और ये गैस भी ऊर्जा का ही एक रूप हैं, लेकिन ये दिखायी नहीं देतीं!”

“हमारी पृथ्वी पर ऊर्जाएँ विभिन्न रूपों में मौजूद हैं, कुछ ठोस, कुछ तरल तो कुछ गैस के रूपों में! अभी तक हम पूरी तरह से इन ऊर्जाओं को नहीं समझ पाए हैं, इनका उपयोग करना तो दूर की बात है!” प्रशान्त ने कहा।

“हुम्म!” करण प्रशान्त को ध्यान से सुन रहा था।

“लेकिन इन सभी ऊर्जाओं में एक ऐसी बड़ी शक्ति है, जो यहाँ इस पृथ्वी पर शासन करती है!” प्रशान्त बोला।

“कौन सी?” करण और सुजीत ने एक साथ पूछा।

“जल!” प्रशान्त ने बताया।

“जल?” दोनों एक साथ बोल उठे।

“हाँ जल! वॉटर! पानी! जल ही वह महाशक्ति है जो इस पृथ्वी पर राज करती है! यह सुनने और देखने में यह एक साधारण-सा नाम प्रतीत होता है। लेकिन क्या कभी इस पर ग़ौर किया है?” एक पल रुककर प्रशान्त दोनों के चेहरे देखने लगा।

“इसमें ग़ौर करने वाली कौन-सी बात है?” सुजीत बोला।

“देखो! यह तो तुम दोनों जानते ही होंगे कि हमारी पृथ्वी पर 71 प्रतिशत भाग जल है,” प्रशान्त ने पूछा।

“हाँ!” सुजीत बोला।

“लेकिन मेरा मानना यह है कि जल ही इस पृथ्वी पर अब तक की सबसे बड़ी शक्ति है। यह जीवनदायनी ऊर्जा है जो कई रूपों में यहाँ मौजूद है। इसमें मेमोरी है यह जानकारियां ख़ुद में स्टोर कर सकता है। और यह जल ऊर्जा ख़ुद को ट्रांसफॉर्म भी कर सकती है, तूने पिया तो तेरा रूप, मैंने पिया तो मेरा रूप, जानवर पिए तो जानवर और पेड़-पौधे पिए तो पेड़-पौधे!”

यह ठोस रूप में अथाह दिखाई पड़ता है। तरल रूप में सारी पृथ्वी को ढ़के है, और इसकी कितनी ही बड़ी मात्रा, ऊपर आसमान में मौजूद है!” प्रशान्त ने अपनी तर्जनी उँगली ऊपर उठाते हुए कहा।

दोनों ध्यान से प्रशान्त की बातें सुन रहे थे।

तभी करण बोला, “बादल?”

“सही समझा!, बादल ही वह रूप है, जब यह जलशक्ति सबसे शक्तिशाली ऊर्जा का रूप धारण करती है। तब यह लाखों क्या करोड़ों वॉल्ट्स अपने भीतर रखता है। अब सोचो उतनी ऊर्जा से क्या नहीं किया जा सकता?” प्रशान्त ने आँखे चौड़ी करते हुए बारी-बारी करण और सुजीत को देखते हुए कहा।

“उस दिन भी मौसम बहुत ख़राब था! जबरदस्त बारिश और गरजते हुए बादल,” करण बोला।

“मतलब वॉर्महोल?” सुजीत बोला।

प्रशान्त मुस्कराया और बोला, “मैं नहीं जानता कि वॉर्महोल प्राकृतिक रूप से बनते हैं, या फिर कोई अनजान शक्ति अपने उपयोग के लिए इन्हें बनाती है। मग़र यह होते हैं, ऐसा मेरा मानना है!”

“अच्छा! मान लिया कि मैं वॉर्महोल से कहीं पहुँच गया था। लेकिन समय गुज़रने का इतना बड़ा अन्तर कैसे आ गया? वहाँ मेरी एक रात, लेकिन यहाँ आठ दिन?” करण ने पूछा।

“विज्ञान में एक सिद्धांत है, जनरल थ्योरी ऑफ रिलेटिविटी। इस थ्योरी के अनुसार, किसी अन्य आयाम में उपस्थित किसी गृह पर, ग्रैविटी का घनत्व कम या ज़्यादा हो सकता है! वहाँ की ग्रैविटी के अनुसार ही वहाँ का समय चलता है!” प्रशान्त ने दोनों की ओर देखते हुए कहा, “मतलब! यदि ग्रैविटी सघन (अधिक) हो तो समय धीमा, और यदि ग्रैविटी विरल (कम), तो समय तेज़!”

“कुछ समझ-सा नहीं आया!” सुजीत ने कहा।

“जिस पैरेलल वर्ल्ड में हमारे करण ने विज़िट किया था। वह दुनिया एक ऐसे आयाम में हो सकती है जहाँ ग्रैविटी सघन है, इसलिए वहाँ का समय हमारी दुनिया के समय के मुक़ाबले धीमा है। इसके बिताए वहाँ कुछ घंटे हमारे यहाँ कुछ दिनों के बराबर हो गए! एग्जेक्ट कैलकुलेट करें तो....” प्रशान्त ने कुछ गढ़ना करके फिर बोला, “वहाँ बिताया इसका एक घंटा हमारे यहाँ लगभग दस घंटे से थोड़ा ज़्यादा था। इसके बताए समय के हिसाब से यह उस डाइमेंशन में क़रीब अठारह घंटे रहा। यदि सीधे-सीधे अठारह घंटों को दस से गुणा करे तो हमें एक सौ अस्सी घंटे तो मिल ही जाते हैं। और इन्हें चौबीस से डिवाइड करें तो साढ़े सात दिन तो सीधे तौर पर ही हो गए!”

“यार प्रशान्त! तुम विज्ञान वालों ने ऐसी कोई मशीन नहीं बनाई?” सुजीत ने चुटकी बजाते हुए कहा, “जिसमें बैठकर फट से वहाँ और झट से यहाँ आना-जाना हो सके?”

जवाब देने की बज़ाय प्रशान्त केवल मुस्कराया। फिर उसने अपनी घड़ी में समय देखा। बातचीत करते हुए उन्हें अब काफ़ी समय हो चला था। कॉफी हाउस में अब गिने-चुने ही लोग बैठे थे। प्रशान्त ने वापस चलने की इच्छा ज़ाहिर की तो करण के साथ-साथ सुजीत भी सहमत हो गया। सुजीत उठकर बिल चुकता करने चला गया

कुछ ही देर बाद वे तीनों कॉफी हाउस से बाहर निकल आए।

***

तापमान बहुत नीचे गिर गया था और धुँधलाहट लिए हुए मौसम बड़ा ही सर्द हो चला था। इसके बावज़ूद भी इरविन स्ट्रीट पर लोगों की आवाज़ाही ज़ारी थी।

प्रशान्त ने करण के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, “करण! ब्रह्माण्ड की उस शक्ति ने तेरा परिचय एक अद्भुत दुनिया से कराया है, जो बाक़ी लोगों के लिए एक़दम अनजान है। उस शक्ति ने तुझे समय और दुनिया के ऐसे पलों से रू-ब-रू कराया है जिन्हें देखने की बात तो दूर, कोई सोच भी नहीं सकता है! तेरी चाहत समय के बहुत बड़े फासले पर मौजूद है। और समय की इतनी बड़ी ख़ाई को पार कर पाना असम्भव ही है। वहाँ पहुँचना केवल और केवल समय के हाथ में है। इसलिए उन पलों को मीठी यादें मानकर आगे बढ़ चल। यही जीवन का नियम है, आगे बढ़ते जाना!”

“प्रशान्त ठीक कह रहा है, जो बीत गया सो बीत गया। और फिर वह ऐसी जगह तो है नहीं, कि जब तूने चाहा झट से वहाँ चला गया, और जब चाहा वापस आ गया। इसलिए वहाँ बिताए उन सुखद पलों को एक सपना समझकर भूल जाने में ही भलाई है,” सुजीत ने भी करण को समझाया।

“हुम्म!” करण ने एक गहरी साँस लेते हुए कहा, “शायद तुम दोनों ठीक कहते हो!”

“शायद नहीं मेरे भाई, ठीक ही कह रहे हैं, और यही तेरे लिए ठीक भी है समझे?” सुजीत बोला।

प्रशान्त ने सुजीत और करण से गले लगकर विदा ली। वे लोग अपनी-अपनी कार की तरफ़ चल पड़े। सुजीत ने ड्राइविंग सीट संभाली और करण उसके साथ बराबर वाली सीट पर बैठ गया। सुजीत की कार अब घर की ओर दौड़ चली।

प्रशान्त की कही बाते एक़दम तर्कसंगत लग रही थी। सुजीत समय यात्रा की इस जानकारी से बहुत ही रोमांचित था। वह इस मुद्दे पर करण से बातें किए जा रहा था, लेकिन करण चाहकर भी सुजीत की बातों पर ध्यान नहीं दे पा रहा था। वह तो जैसे किसी और ही दुनिया में खोया था। उसने अपना सिर सीट पर टेक दिया और आँखे बन्द कर ली।

एक के बाद एक करके उसे तो वे सभी लोग याद आ रहे थे। वह बाप जो अपनी बेटी की ख़ुशी हर कीमत पर हासिल करना चाहता था। वह माँ जिसने समझदारी से अपनी बेटी और पति को परिवार के साथ संभाल रखा था। और मामूली-सी चाय की दुकान वाले वह काका जो जीवन के गूढ़ रहस्य को भली-भांति जानते थे।

करण को अपने भीतर बड़ी तकलीफ़ महसूस हो रही थी। जाने बेरहम वक़्त ने यह कैसा खेल खेला था? खेल ही खेल में जिसने दो दिलों के बीच ऐसी दूरी बना दी थी जिसका अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता था, उससे पार पाना तो कल्पना से भी बाहर की बात थी। पहली मोहब्बत का दर्द उसके दिल में उठता ही जा रहा था।

करण के दिमाग़ में विचार घुमड़-घुमड़कर उठ रहे थे, “हवेली तक आती उस सूनी सड़क को देखकर सायरा की बेचैनी और भी बढ़ जाती होगी! आँसुओं से भरी उसकी झील-सी गहरी आँखें, मेरा इंतज़ार कर रही होंगी! मग़र सायरा को तो यह भी ख़बर न होगी कि वह कभी न खत्म होने वाला इंतज़ार कर रही है!

आख़िर यह कैसा संयोग है? प्रेम भी हुआ तो ऐसी दुनिया में जाकर, जो समय के भी पार है, जहाँ पहुँचना मुश्किल ही नहीं बल्कि नामुमकिन है!”

तभी करण के कानों में सायरा के कहे शब्द गूँज उठेे, “यदि फिरसे मेरी किस्मत ने मुझसे मज़ाक किया, तो शायद इस बार मेरा दिल इतना मजबूत न रह पाएगा कि वह धड़क सके,”

यह सोच उसका दिल दर्द से भर गया, जाने यह कैसा दर्द था, जो लगातार उसके दिल की गहराईयों में उतरता ही चला जा रहा था। दर्द के इस एहसास से वह भीतर ही भीतर रो पड़ा।

तभी उसके दिमाग़ में एक नंबर चमक उठा। उसे याद आया कि जाते समय जब वह रामगढ़ स्टेशन पर उतरा था तो उस ट्रेन पर एक नंबर लिखा था, “0226”। ये नंबर प्रत्येक ट्रैन पर लिखे होते हैं जो हर ट्रेन की अपनी आइडेंटिटी होती है। फिर उसे प्रशान्त की कही बात याद आयी, “तुझे जो भी कुछ हुआ है वह ट्रैन में ही हुआ है!”

“इसका मतलब यह है कि उस वाले रामगढ़ जाने के लिए सिर्फ़ वही एक ट्रैन हैं जिसका नंबर है “0226”,

THE END

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