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लुई - द्वित्य प्रकरण
वर्तमान में -


फरिश्तों की खुवाहिश ऐसी निठल्ली हो चुकी है कि चाहत गुमनाम सी भटकती है।
गिरवी रखी जो जा सकती थी ज़िन्दगी अब कोड़ियों के दाम भी बिकने लायक नहीं रही।
दरकिनार सी शाम यूँ ही नहीं है आज,
मनहूसियत भरे बादल महीनों से जो मंडरा रहे थे।

छल्ला बारिश में अटक गया है। मोहल्ला अकास्मिक जल प्रभाव में बह गया है। ताबड़तोड़ बारिश ने खेत खलिहानों को खुश किया मगर शहरों की बुनियाद को सच दिखा दिया। बरसो रे बरसो।

बुलबुल:- ऐसे चेप हुआ कि मानो खरीद लिया...