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लुई - द्वित्य प्रकरण
वर्तमान में -


फरिश्तों की खुवाहिश ऐसी निठल्ली हो चुकी है कि चाहत गुमनाम सी भटकती है।
गिरवी रखी जो जा सकती थी ज़िन्दगी अब कोड़ियों के दाम भी बिकने लायक नहीं रही।
दरकिनार सी शाम यूँ ही नहीं है आज,
मनहूसियत भरे बादल महीनों से जो मंडरा रहे थे।

छल्ला बारिश में अटक गया है। मोहल्ला अकास्मिक जल प्रभाव में बह गया है। ताबड़तोड़ बारिश ने खेत खलिहानों को खुश किया मगर शहरों की बुनियाद को सच दिखा दिया। बरसो रे बरसो।

बुलबुल:- ऐसे चेप हुआ कि मानो खरीद लिया हो। जब देखो सबकी चुगलियाँ करता रहता था। मुझे भी हाँ में हाँ मिलानी पड़ जाती थी। क्या करती, मैं तो नई, अनजान अबला नारी थी जो इस दूर वीराने में एडजस्ट हो रही थी। बातचीत क्या हो गयी, जब देखो मेरे पीछे। अब मुझे बिच कह रहा है। व्हाट द फ्रॉड!

इक्की:- छोड़ो अब, क्यों मूड खराब करना। फोन करके हड़का दिया ना, अब चलते हैं होस्टल वापिस। 7 बज गए। लोग सवाल करेंगे नहीं तो। जाने से पहले कुछ चाहिए तुम्हें?

बुलबुल:- कुछ नही चाहिए मुझे। में नहीं खेल रही अब। बहुत हो गया। एक और मैसेज आया तो मैं पुलिस में कम्प्लेन कर दूंगी।

इक्की :- होहोहो... ठरकी तो गयो! और तुमको भी एक वही मिला था दोस्ती करने के लिये।

बुलबुल:- सही कह रहे हो यार। पहली क्यों नहीं बात की तुमने मुझसे। ये ड्रामा एक महीना तो ना चलता। और वो भी ऐसे।

इक्की:- मैं सोच रहा था कि जब गेम ओवर होगा तो उसके बाद इसका ज़लालत भरा चेहरा देखने में मजा ज्यादा आएगा। इसीलिए अपनी शक्तियों का प्रदर्शन नहीं किया मैनेजमेंट ने भी यही तय किया था। डॉन्ट वरी, आई विल मैनेज!

बुलबुल:- क्या क्या मैसेज भेजता है। पागल हो गया है। वो सब कर रहा है जिसकी खुद निंदा करता था। काहे का फेमिनिस्ट? फरेबी है।

इक्की मुस्कुराते हुए गाड़ी स्टार्ट करता है। और होस्टल की और हल पड़ता है।

बुलबुल :- मेरी शिकस्त और उसकी फतह? हुँह! वो घुन था जो इस आस में पिस गया कि गेहूँ के साथ हूँ, कुछ तो आटा निकलेगा। हिम्मत तो देखो, बिच कह रहा है।

इक्की:- अरे अखण्ड था। क्यों अपना दिमाग खराब कर रही हो।

टू बी कन्टीन्यूड...



© Kunba_The Hellish Vision Show