...

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आलू+चना..=आलोचना..!!!
मैने कही पढ़ा था..

वही करें जो आपको अपने दिल में सही लगे - क्योंकि वैसे भी आपकी आलोचना की जाएगी। यदि आप ऐसा करते हैं तो आप शापित होंगे और यदि आप ऐसा नहीं करते हैं तो शापित हो जाएंगे।

सच कहूं तो ये बात समय समय पर मेरे काम आती है...
जब भी कलम उठाती हू तो मुझे पता होता है की मेरी भर भर के आलोचना होने वाली है ,फिर भी मैं उसका स्वागत करने हेतु तैयार रहती हू..

मैं हमेशा एक बात कहती हू...
"की हर कोई आपकी बातो से सहमत हो ये ज़रूरी नहीं".... ये नियम मुझपर भी लागू होता है..पर ये बात साबित करने के लिए मैं बेवजह बहस में भिड़ जाना जरूरी नही समझती...आलोचना भी सही जगह पर होनी चाहिए ...!!!

"आलोचना कोमल बारिश जैसी होनी चाहिए जो फसल को बिना उखाड़े उसे विकास को पोषण दे..!!!!"

पर कुछ लोग ये बात नही समझते
और आ जाते है अपना "असीम ज्ञान का प्रदर्शन करने..

इसका प्रयोग कभी कभी "बंदर के हाथ में उस्तरा देने जैसा होता है..!!

हर आदमी के पास आलोचना का थोक स्टॉक होता है..जो वह लगातार सप्लाई करता रहता है। चाहे...