सियासी रंग
#वोट
चाय की टपरी में आज काफी गहमा गहमी है। बनवारी लाल हाथ में अख़बार लिए पढ़ रहे और हर एक ख़बर पर चाय की चुस्कियों के साथ चर्चा हो रही। जैसे चुनाव के दल वैसे ही चाय की दुकान भी दो हिस्सों में विभाजित हो गई थी।
बनवारीलाल वहीं पर बैठे कुछ लोगों को बता रहे थे कि जब पहले कभी चुनाव होती थी तो अक्सर मुद्दा गरीबी का उठाया जाता था अब तो बुद्धे जो है ना बेरोजगारी के साथ-साथ मजहब को बहुत ज्यादा ही बीच में लाया जाता है ।
इस पर वहां पर बैठे कुछ लोग जो उनकी बातों से सहमत नहीं थे । उनमें से कुछ लोगों ने कहा खास करके श्यामलाल ने कहा नहीं चाचा ऐसा ऐसी बात नहीं है , अब जो है ना जात पात पर भी मुद्दा उठता है । बनवारी लाल ने कहा नहीं श्याम जात पात पर तो उठता ही है पर अब जात पात से ज्यादा हो गया है मजहब ।
अब तुम खुद सोच करके देखो ना इन लोगों ने सब कुछ तो बांट लिए । क्या कभी यह आकाश धरती इसके अलावा क्या सूर्य की किरने चंद्रमा की किरणें इनको भी बाटेंगे क्या ?
कुछ लोग उनके चेहरे को बहुत ध्यान से देखने लगे पता नहीं बनवारीलाल जो सबसे बुजुर्ग थे ।अब यह चाचा क्या कहने जा रहे हैं ।
ठग्गू जमीन पर बैठ गया और अपने दोनों हाथों से चेहरे को छुपाए उनकी तरफ गौर से देखने लगा क्योंकि वह नीचे जात का था तो उसे कहीं ना कहीं यह लग रहा था , कि चलो अच्छी बात है इस जात पात से उठ कर के भी अब कुछ बातें शुरू हो गई हैं ।
जो मजहब के नाम पर है उधर से समीना आती हुई दिखी । उसके दो बच्चे थे जो अनाथ थे ।उसके पिता को किसी ने हत्या करके नदी में डाल दिया था ।
वह भी वहीं आकर बैठ गई क्योंकि बनवारीलाल गांव में सबसे बुजुर्ग थे , सब उनको बहुत मानते थे ।
सभी उनकी बातों को सुनने लगे और यह जो चाई की टपरी थी ना यह करीब-करीब चुनाव के के समय बहुत ज्यादा सक्रिय हो जाती थी । लोग यहां आकर अपनी अपनी बातों की बयानबाजी किया करते थे । अगर कहा जाए तो चलता फिरता एक तरह से अखबार की प्रेस थी ।खैर चाचा सब की तरफ देखते हुए अपने नाको से चश्मा को ऊपर की तरफ किया और कहने लगे कि ध्यान से सुनो बच्चों मेरी बातों को हमारे देश में बहुत सारी समस्याएं हैं । गरीबी है ,आरक्षण है ,बेरोजगारी है ,पर लोगों को सबसे आसान मुद्दा लगता है मजहब ,इनको क्या पता की सूर्य चंद्रमा ने भी कभी अपनी किरणों में फर्क नहीं किया । हम इंसानों के लिए नदी ने पानी बहना बंद नहीं किया, किस-किस की प्यास पहले है । नदी वह सोचे बगैर निरंतर अपनी गति से बहती रही ।
अगर आज ये नदी भेदभाव करने लगती तो क्या हम सुखी रहते । यह...
चाय की टपरी में आज काफी गहमा गहमी है। बनवारी लाल हाथ में अख़बार लिए पढ़ रहे और हर एक ख़बर पर चाय की चुस्कियों के साथ चर्चा हो रही। जैसे चुनाव के दल वैसे ही चाय की दुकान भी दो हिस्सों में विभाजित हो गई थी।
बनवारीलाल वहीं पर बैठे कुछ लोगों को बता रहे थे कि जब पहले कभी चुनाव होती थी तो अक्सर मुद्दा गरीबी का उठाया जाता था अब तो बुद्धे जो है ना बेरोजगारी के साथ-साथ मजहब को बहुत ज्यादा ही बीच में लाया जाता है ।
इस पर वहां पर बैठे कुछ लोग जो उनकी बातों से सहमत नहीं थे । उनमें से कुछ लोगों ने कहा खास करके श्यामलाल ने कहा नहीं चाचा ऐसा ऐसी बात नहीं है , अब जो है ना जात पात पर भी मुद्दा उठता है । बनवारी लाल ने कहा नहीं श्याम जात पात पर तो उठता ही है पर अब जात पात से ज्यादा हो गया है मजहब ।
अब तुम खुद सोच करके देखो ना इन लोगों ने सब कुछ तो बांट लिए । क्या कभी यह आकाश धरती इसके अलावा क्या सूर्य की किरने चंद्रमा की किरणें इनको भी बाटेंगे क्या ?
कुछ लोग उनके चेहरे को बहुत ध्यान से देखने लगे पता नहीं बनवारीलाल जो सबसे बुजुर्ग थे ।अब यह चाचा क्या कहने जा रहे हैं ।
ठग्गू जमीन पर बैठ गया और अपने दोनों हाथों से चेहरे को छुपाए उनकी तरफ गौर से देखने लगा क्योंकि वह नीचे जात का था तो उसे कहीं ना कहीं यह लग रहा था , कि चलो अच्छी बात है इस जात पात से उठ कर के भी अब कुछ बातें शुरू हो गई हैं ।
जो मजहब के नाम पर है उधर से समीना आती हुई दिखी । उसके दो बच्चे थे जो अनाथ थे ।उसके पिता को किसी ने हत्या करके नदी में डाल दिया था ।
वह भी वहीं आकर बैठ गई क्योंकि बनवारीलाल गांव में सबसे बुजुर्ग थे , सब उनको बहुत मानते थे ।
सभी उनकी बातों को सुनने लगे और यह जो चाई की टपरी थी ना यह करीब-करीब चुनाव के के समय बहुत ज्यादा सक्रिय हो जाती थी । लोग यहां आकर अपनी अपनी बातों की बयानबाजी किया करते थे । अगर कहा जाए तो चलता फिरता एक तरह से अखबार की प्रेस थी ।खैर चाचा सब की तरफ देखते हुए अपने नाको से चश्मा को ऊपर की तरफ किया और कहने लगे कि ध्यान से सुनो बच्चों मेरी बातों को हमारे देश में बहुत सारी समस्याएं हैं । गरीबी है ,आरक्षण है ,बेरोजगारी है ,पर लोगों को सबसे आसान मुद्दा लगता है मजहब ,इनको क्या पता की सूर्य चंद्रमा ने भी कभी अपनी किरणों में फर्क नहीं किया । हम इंसानों के लिए नदी ने पानी बहना बंद नहीं किया, किस-किस की प्यास पहले है । नदी वह सोचे बगैर निरंतर अपनी गति से बहती रही ।
अगर आज ये नदी भेदभाव करने लगती तो क्या हम सुखी रहते । यह...