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गरीबी
भाग एक

हर मनुष्य की जिंदगी उसके कर्म पर लागू होती है ! मनुष्य कभी समय के साथ सबसे अमीर बन जाता है, तो कभी अत्यंत गरीब भी! सुख और दुख उसके कारण के दो पहलू हैं! अच्छे दिन और बुरे दिन कम किन के पास आ जाए यह कोई नहीं कह सकता!
ऐसा ही एक समय मेरे परिवार का था!
जब घर में दरिद्रता का बहुत बड़ा साया था! उस समय घर में गरीबी इतनी थी, कि खाने को चुन लायक (आटे के )पैसे तक नहीं रहते थे ! पापा कमाते नहीं थे ! और यदि दो -चार दिन कमाते भी तो कमाने से ज्यादा तो महीनों भर घर पर ही निठल्ले बन बैठे रहते ! पापा पेंट का काम जानते थे अतः वही उनकी मजदूरी क्या काम था!
प्रायः जब भी वह पेंट का काम करने जाते तो कई बार तो पैंट की शैडो के मालिक ऐसे ही नहीं देते थे !
और घर का खर्च मेरी मां के कुछ अलग छिपाकर रखे हुए पैसों से चल पाता था!
पापा बस केवल घर में आलसी बनकर एक चिंतित मुद्रा में पड़े रहते थे उस समय , अधिकतर घर के खर्चे के अलावा अन्य खर्चों का भार भी मां के पैसों से ही पूर्ण हो पाते थे ! अत: मां को इस बढ़ती गरीबी के चलते अनेक जगह मेहनत-मजदूरी भी करनी पड़ीं!
यह उस दौर की बात है जब लोगों के पास आज जैसी इतनी बड़ी सुविधाएं नही थी!
उस वक्त, हमारे अड़ोस-पड़ोस के लोग पास में ही पहाड़ पर पत्थर की रोड़ियां (टुकड़े) तोड़ने जाते थे! तो उस कड़ी धूप में मां भी रोडिया तोड़ने जाती थी अपनी रोजी-रोटी लिए मजबूरन उसमें इनका सारा दिन यूं ही कट जाता था! और अंततः सौ- डेढ़ सौ रूपये मिलते थे!कई बार मां दूसरों के खेतों में मजदूरी भी करने जाती थी! इंसान के अतिरिक्त भी घर के घरेलू काम जैसे सिलाई मशीन से औरतों के कपड़े सिलना आदि भी करती थी तथा अन्य घर के काम भी करती थी ! यहां तक कि घर के कामों में घर की साफ सफाई करना , रोटी बनाना, पापा को नहाने पानी लाकर देना आदि! यद्यपि इस तरह कमाए गए पैसों को मेरे पापा से छुपा कर अलग रखती थी! क्योंकि मेरे अब्बा निठल्ले बैठे उन पैसों को तंबाकू गुटखा मैं उड़ा देते थे! उस समय अक्सर वे एक मटमैला सा पातीदार पजामा व हाफ बाजू की बनियान पहना करते थे! मुझे उनकी सर एक बात अच्छी नहीं लगती थी कि वे मां के दुर्व्यवहार करते थे! किंतु मां इस पीड़ा को भी सहनशील होकर सह लेती थी! वह अपना दर्द किसी को नहीं बताती थी! वह अपनी चारदीवारी के भीतर जैसा जो भी मिलता खा लेती थी और अपने पास दो आने होते तो उन्हें बचा कर रखती थी!

ऐसी थी मेरी मरदानी माँ