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गाय और शिष्टाचार
दिनाँक 23 जुलाई सन 2019 को भईया प्रातः 6:30 बजे गाय ने हमको रेल दिया । कारणवश हमारे बायें हाथ की एक हड्डी जो कि बीच वाली उंगली को हाथ से जोड़ती है , बीच से टूट गई । इसकी पिछली रात हम हनुमान जी की आराधना में रात्रि ठीक 12:00 बजे लीन थे । कहा जाता है कि रोज़ रात 12:00 बजे से 3:00 बजे तक हनुमानजी लंका में होते हैं और इस समय इनकी पूजा नही करनी चाहीये , अशुभ परिणाम मिलते हैं । हमको ये बात हमारी पत्नी ने पूजा के बाद बताई । परिणाम के बाद से हमको इस पर यानी पूजा के नियम पर पूरा यकीन हो चुका है । पाठकों को यदि न हो तो वह एक्सपेरिमेंट के लिए स्वतंत्र हैं ।
आप सब जानते ही हो की दिल्ली के लगभग सब प्राणी आप जैसे ही हैं । गाय ने बच्चा दिया था और समय पर उचित देखभाल न होने के कारण वो सबको सड़क पर ठेलते हुए आ रही थी । हम आफिस की कैब का उल्टी तरफ मुँह किये तिराहे पर रोज़ की तरह इंतज़ार कर रहे थे । आने वाली विपत्ति से हम एक दम अनजान थे । गाय पीछे से अचानक हमको रेली । अचानक रेले जाने की वजह से हम भी पलट के गाय को मरकही समझ के हौंक दिये । गाय बौखला गई फिर सामने से गाय हमको हौंकी और इस धक्कम धक्की में बीच वाली हड्डी टूट गई । कलाई में भी मोच आई और दाहिनी पसलियाँ भी बजने लगी । जब हड्डी टूटी तब हमने गाय के साथ नवजात बछड़ा देखा । हमे जब समझ आया कि गाय की समस्या क्या है तब हमने गाय से माफी मांग उनसे विदा होने को कहा । हैं तो हम भी भैया थोड़ा बैल बुद्धि । वो भूखी थी इसलिए वहाँ से अधिक दूर नही गई । थोड़ी ही दूर जाकर खड़ी हो गई । फिर उनके पति नन्दी जी भी आ गए मौके पर ।
हादसे के एक दिन पहले सोमवार था । सोमवार को हम और हमारी पत्नी अनाज नही खाते हैं और कोशिश करके महादेव जी के दर्शन ज़रूर करते हैं । हादसे से पहले भी यहीं किया गया था । सावन का सोमवार था और तब हम मदनपुर खादर नामक स्थान जो कि सरिताविहार में है के निवासी थे । वहीं पर शिव जी का 100 वर्ष पुराना प्राचीन मंदिर है । हमने हमारी पत्नी के साथ मन्दिर में दर्शन किये पर शायद कुछ विधियाँ अनज़ाने में गलत हो गईं । जैसे पहले से सजे शिवलिंग पर बिलपत्र अर्पित करने के चक्कर में कुछ पुष्प साजो सज्जा के साथ शिवलिंग से नीचे सरक गए । पुजारी के बिगड़ने पर बात बनाने के लिए हम नाममात्र दक्षिणा दे बैठे । गाय को खिलाया जाने वाला अरगासन हम नन्दी महाराज को खिला बैठे ।
ये वहीं नन्दी जी थे जिन्हें हमने पिछली रात गाय वाला अरगासन खिलाया था । दूर से अब तीनों लोग माता , पिता और बच्चा मिलकर हमको ताड़ रहे थे । हमको लगा कि विध फैमिली ये लोग मारेंगें तो हम सबको थोड़ा-थोड़ा भोजन करा कर , कोम्प्रोमाईज़ , कर वहाँ से सरक गए ।
फिर सीधे हम अपनी मेहरारू को बुलाकर गाड़ी बुक करके अस्पताल भाग गए । सूझ बूझ के हिंसाब से हमने मूलचन्द अस्पताल जाने को तय किया था । पर ड्राइवर एक दम ज्ञानचंद था तो उसने हमें सफदरजंग अस्पताल जाने के लिए कन्विंस कर लिया । हमारी खासियत है कनविंस हो जाना । अस्पताल के सामने ड्राइवर ने पहुँच कर बताया की भैया जल्दी दिखाना हो तो थोड़ा नाटक करना पड़ेगा । हमारे पूंछने पर उसने बताया कि अस्पताल के किसी भी कर्मचारी को देख कर आह-आह करना पड़ेगा । पहले हमें लगा कि वो चुस्की ले रहा है पर जब उसने डाँट कर दुबारा समझाया तो हम कन्विंस हो गए ।
हमे जो दिखा हमने उसे देख कर आह-आह किया पर हमको पता ही नही था कि डॉक्टर को भी देख कर करना पड़ता है । कर्मचारियों ने तो हमारी आह रुपित पीड़ा को भाँप तुरन्त प्राथमिक इलाज तक पहुंचा दिया था ।
प्रातः 8:00 बजे के आस पास अस्पताल पहुँच सभी जरूरी औपचारिकताओं का निर्वाहन करते हुए हम इमर्जेंसी में 13 नम्बर बेड पर बैठे डॉक्टर के सामने प्रस्तुत हुए । मरीज़ों की पीड़ा देखने के कारण शायद वह अपने आपे में नही थे । उन्होंने हमारे प्रति इलाज की औपचारिकता शायद जैसे तैसे निभाई तो , पर जब जिज्ञासावश हमने उनसे इलाज सम्बन्धी प्रश्न किया तो उन्होनें झल्ला कर हमे फटकार दिया । अस्प्ताल में 5 घण्टे बिताने के उपरान्त हमारे बायें हाथ पर कच्चा प्लास्टर चढ़ा कर हमसे वापस एक हफ्ते बाद आकर दिखाने को कहा गया ।

हम कहे अनुसार दुबारा 31 जुलाई 2019 को दिखाने गया , हमे ओपीडी में दिखाने को कहा गया था । हम प्रातः 7:30 बजे पहुँच कर नए रोगियों के पर्चे बनाये जाने वाली जगह के सामने लगी लम्बी कतार में शामिल हो गए । काउन्टर तक पहुँचते-पहुँचते 9:30 बज चुके थे । काउंटर पर बैठी महिला ने हमारा पर्चा देखते ही उसे वापस फेंकते हुए दुस्साहसी तरीके से कहा “ जिस डॉक्टर को दिखाया था वहीं इलाज करेगा , वो कल बैठेगा कल आना । हालाकि यह बात हमें 23-07-19 को इमरजेंसी विभाग में भी बताई जा सकती थी । हम फिर भी अस्पताल की महिमा के चक्कर में , महिला के कहे अनुसार 1 अगस्त को तीसरी बार अस्पताल गए । मरीज़ों की कतार लंबी होने के कारण काउन्टर तक पहुँचने में 10 बज गए । काउंटर पर इस बार महिला की सहायता के लिए एक व्यक्ति और था । पर्चा बननेवाले कक्ष के बाहर खड़ा गार्ड मरीज़ों को असभ्य तरीके से निर्देश दे रहा था । महिला शायद मौन व्रत पर थी , सो बाहर खड़ा गार्ड उसकी आवाज बन रहा था । बाहर खड़े गार्ड ने हमे ओपीडी में बना पर्चा थमा कर 5 C नामक कक्ष में जाने का निर्देश दिया । कक्ष में पहुँच कर पता चला की डॉक्टरों की हड़ताल है , 5 C में किसी का भी बैठना निशिचित नही था । कष्ट के कौतूहल में हमने जिज्ञासा का दामन थामा और पूछते-पूछते ओपीडी के कमरा नम्बर 4 में पहुँचे । वहाँ अधेड़ उम्र की दो महिलाएं बैठी थी । दोनों ही देखने मे दक्षिण भारतीय लग रही थीं , उनसे जब हमने पूछा कि डॉक्टर कब तक देखेंगें तो उन्होने टालमटोल करते हुए कोई उचित उत्तर ना दिया । फिर हमने उनसे हड़ताल सम्बंधी घटनाक्रम की शिकायत करने के लिए संबंधित विभाग की जानकारी मांगी तो उन्होंने हमे गलत जगह भेज दिया । इधर उधर धक्के खाकर हम पुनः कमरा नम्बर 4 में पहुँचे । हमारे साथ कुछ और रोगी भी थे । उनमें से एक महिला ने सहायता करने की बजाय कमरे में गार्ड ओर बाउंसर को बुलवा लिया । काफ़ी जद्दोजहद के बाद कमरे में किसी अनजान कर्मचारी ने हमें ग्रीवन्स विभाग में भेजा ।

ग्रीवन्स विभाग में श्री गीता सबरवाल जी से भेंट हुई, हमने उन्हें हड़ताल की वजह से अपने जैसे पीड़ित मरीजों की पूरी जानकारी दी । शुरू शुरू में उन्होंने हमसे ही पूँछा “ क्या आपको मालूम नही हैं कि आज डॉक्टरों की हड़ताल है ? “
हमारे थोड़े जतन के बाद उन्हें हमारी और हमारे जैसों की वेदना समझ आई । वहाँ से उन्होंने हमें ( सीईओ ऑफिस ) ओपीडी निर्देशक श्री रमेश कुमार जी के पास भेज दिया । सीईओ ऑफिस में निर्देशक जी से तो नही पर श्री अशवनी शर्मा जी से भेंट हुई । अब तक हमे सफदरजंग अस्पताल के कार्य करने की विलक्षण प्रतिभा का एहसास हो चुका था । श्री अशवनी जी ने हमारी समस्या को सुना और निर्देशक से मिलवाये बैगैर अपने सहायक के द्वारा ओपीडी में बैठें डॉक्टर श्री जितेन्द्र जी के पास पहुँचवा दिया । डॉक्टर साहब बड़े ही हँसमुख एवं सरल व्यक्ति हैं । हमारे उलटे हाथ का निरीक्षण करने के बाद उन्होंने बताया कि कच्चे प्लास्टर को अभी पक्का नही किया जा सकता है । पर्चे पर कुछ दवाइयां लिख कर हमे सोमवार को दिखाने आने को कह कर भेज दिया ।
5 अगस्त 2019 को 11:25 पर हम पुनः एक बार सफदरजंग ओपीडी में पहुँचे । अस्पताल पँहुचते-पँहुचते हम लबेदम हो चुके थे । इस बार हम ओपीडी काउंटर पर 11:28 पर पहुँचे । काउन्टर पर बैठी महिला 11:29 पर अपनी पूरी पोटली बांध कर पलायन कर गई । हमारे साथ हमारे पीछे खड़े पाँच ओर मरीज़ों की लाख चिरौरियो का उस पर कोई असर नही हुआ । बाहर खड़ा गॉर्ड इस बार कक्ष के अंदर था जोकि वहाँ पर पड़े पर्चो को बटोर रहा था । उस गॉर्ड ने हम 6 में से बचे 3 मरीज़ों को श्वान के भाँति दुत्कार कर भगा दिया । तब घड़ी में 11:31 हो रहे थे । हम पाठकों को बताना चाहेंगे कि ओपीडी में पर्चा बनवाने का समय 8:30 से 11:30 होता है ।
हमने बचपन में पढ़ा था की “ नाम बड़े और दर्शन छोटे “ । इस मुहावरे को हमने सफदरजंग अस्पताल में चरितार्थ होता पाया है । वैसे ही सरकारी अस्पताल मे शिष्टाचार के अभाव के कारण आम मरीज़ों की दुर्दशा है । NMC बिल के विरोध में डॉक्टरों के द्वारा की गई हड़ताल ने मरीज़ों की दुर्दशा पर और भी कुप्रभाव डाला था ।
हमने अपनी शिकायत श्री रमेश कुमार जी से मिलकर 5 अगस्त को दोपहर 2:30 बजे कर दी थी । हमारी तरह वह भी शायद अस्पताल के रवैये से अनजान थे । असफल प्रयत्नों के बाद सज्जन श्री रमेश जी ने हमे पुनः ब्रहस्पति को आने के लिए बोला था । उन्हें इस प्रकार असहाय देख कर हमने शिकायत पत्र सफदरजंग अस्पताल में भी दे दिया था ।
अपना इलाज पैसे खर्च करके करवाने में समर्थ होने के कारण हमने वापस सफदरजंग अस्पताल जाने की इच्छा त्याग दी थी । किन्तु जो लाचार एवम असमर्थ हैं उनके कष्टों की कल्पना ने हमे झकझोर कर कहानी लिखने को प्रेरित किया । कृपया कहानी में अपना स्वांग देखे बिना दूसरे के कष्टों की अनुभूति करें ।
जिस प्रकार आत्मा शिष्टाचार की दासी होती है , उसी प्रकार शिष्टाचार आत्मा का सेवक होता है । एक उचित , जागृत , परोपकारी एवं कर्तव्यनिष्ठ समाज की कल्पना शिष्टाचार के आधारबिंदु के बिना संभव नही है । शिक्षा का स्तर यदि निजी स्वार्थ पर आधारित हो तो कितनी भी उच्च शिक्षा प्राप्त कर ली जाये , उसमें आत्मा नही डाली जा सकती । अर्थात शिक्षा से आत्मा को नही बाँधा जा सकता किन्तु आत्मीयता के माध्यम से ज्ञान को साधा जा सकता है ।

( त्रुटियों को ढूंढते ही पेज पर दिए गए नम्बर पर तुरन्त कॉल करें या कमेन्ट कर के बतायें । )

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