उठो, न् हो निराश भवपर
उठो, न् हो निराश भवपर-
हे दीप चक्षु! अश्रु क्यु अंजन हुए, संचित विक्षुब्ध दर्पण तुम।
किसी विकृत प्रसंग के वीलय में तुम्हारा विक्षिप्त सा अर्चन।
हे सूचिंत, तुम् करूण आज कहां गुम हो गए।
हे व्यतीत, तुम प्रसन्न अरुण आज क्यों धूम हो गएं।
क्या प्रसंग...