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✨ गांव की एक भोर ✨

ब्रम्ह्म मुहुर्त का समय है चारों ओर धुप्प अंधेरा है वातावरण में निस्ब्धता छाई है । मानव, पशु,पक्षी अपने-अपने बसेरे में निद्रा में निमग्न है ।तमस का साम्राज्य अपने चरम पर है । गगन में कुछ तारे टिम टिमा रहें हैं पर तमस के साम्राज्य से मानों निस्तेज से है । तमस यूं गौरवान्वित है मानों जैसे अब चिरकाल तक उसका ही साम्राज्य होगा ।यूं ही अंधेरा चारों ओर फैला रहेगा ।

कुछ वक्त गुजरता है ...आलोक की कुछ किरणें गुप्त योद्धा की मानिंद तमस के साम्राज्य में प्रवेश कर जाती हैं । तमस अपने गर्व में चूर, आलोक की गतिविधियों से अनजान है। उन कुछ किरणों के संकेत पर कुछ और सेना तेजी से तमस के साम्राज्य में फ़ैल जाती है। तमस बंदी बना लिया जाता है।
वह हक्का बक्का सा ताकता रह जाता है। कहां ऐसा लग रहा था कि तमस का साम्राज्य कभी अंत नहीं होगा, कहा कुछ ही पलों में उसका अस्तित्व ही नेस्तनाबूद हो गया है।
इस तरह एक नई भोर का आगाज होता है...

आलोक का साम्राज्य स्थापित हो चुका है अभी आलोक युवराज है आहिस्ता आहिस्ता अपने आप को स्थापित कर रहे हैं। अब हल्का हल्का दृष्टिगोचर होने लगता है।

मैं मार्निंग वाक पर निकल पड़ता हूं। ओह !.. वसुंधरा का सौंदर्य मानों मुझे अभिभूत कर देता है। उस दृश्य को शब्दों में उतारना असंभव है उसे महसूस ही करना होगा.. शब्दों की भी अपनी सीमा जो होती है। प्रयत्न करता हूं..पुर्ण नहीं तो आंशिक ही सही ..वो परमानंद आप तक पहुंचे तो सही..

वसुंधरा शबनम से नहाई हुई है एक अजब सी शीतलता, शांति, पवित्रता, सुकुन से वातावरण समृद्ध है । कोहरे की पर्त चारों और पसरी हुई है मानों वसुंधरा ने श्वेत वस्त्र परिधान किये है । वसुंधरा की खुबसूरती अपने में आत्मसात करने में खुद को मानों को बैठता हूं मानो मैं भी वसुंधरा का एक अभिन्न हिस्सा हूं मेरा अलग कोई वजूद ही नहीं है। बस अब और कहीं नहीं जाना है कुछ भी नहीं करना है इसी में समाहित हो जाना है। इसी मनोवस्था में कुछ पल व्यतीत होते हैं.. अब गगन में हलकी सी लालिमा दृष्टिगोचर होती है जो क्रमशः बढ़ती जाती है मानों वसुंधरा अपने गालों पर लाली लगा रहीं हैं । कुछ ही पलों में एक अस्पष्ट बिंदु सा आकार क्षितिज पर उभरता है.. श्वेत धुसर सा.. अस्पष्ट सा... देखते ही देखते जो एक सुनहरे लाल छटा वाले वृत में परिवर्तित हो जाता है.. पहले पहल कुछ सौम्य सा... आंखों को भाने वाला... वसुंधरा ने मानों प्रसाधन करने के बाद बिंदी लगा ली हो ! अद्भुत,अद्वितीय ...हक्का बक्का सा रह जाता हूं शब्द, भाव, जब सब साथ छोड़ दे, व्यक्त करने में असमर्थ हो जाय तो और क्या विकल्प शेष रह जाता है ?

मैं हतप्रभ हूं कभी इस सौंदर्य का रसपान करने में लग जाता हूं फिर अचानक ख्याल आता है कि इसे कैमरे में कैद कर लूं... विडियो ही बना लूं...पर अपने मानस पटल पर अंकित करना ही श्रैयस्कर लगता है।

अधिकांश लोग सुबह सुबह बाहर निकलने से परहेज़ ही रखतें हैं ठंढी का मौसम जो ठहरा ! कुछ जो बाहर है कौडा ( अलाव) के इर्द-गिर्द शीत लहर से निजात पाने और गरम महसूस करने में प्रयासरत हैं साथ ही साथ गांव की फिलहाल में घटित महत्वपूर्ण घटनाओं पर विश्लेषण एवं वाद विवाद भी हो रहा है। खेतों में इक्का दुक्का लोग कार्य करते दिखाई देते हैं। धान की कटाई,सटकाई खत्म हो गई है अधिकांश खेत अब खाली है मानों पिरीयड न होने पर विश्राम ले रहे हो। खाली खेतों में कुछ खेत जोत दिये गये है अगली फसल के लिए..पक्षी इन खेतों में अपना आहार ढूंढते दृष्टिगोचर हो रहें हैं। खेतों में आलू बो दिए गए हैं जिनमें अब नन्हे बालक गोपाल मानों ज़मीन से सिर निकाल कर झांकने लगे हैं।

एक अजीब सा सुकुन, शांति और आत्मिक आनंद से सराबोर हो मैं वाक से कब लौट आया इसका भान ही नहीं रहता..यह अनुभव मेरे ह्रदय के एकदम करीब है हमेशा मुझे नवस्फुर्ति और जीने की प्रेरणा देता रहेगा ।

इस लेख के माध्यम से आपसे संवाद का अवसर मिला इसका हर्ष है आगे भी यह संवाद जारी रहे यही कामना है...

स्वरचित, २४.११.२०२० ॐ साईं राम
© aum 'sai'