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"मीठे आँसू"❤️🥀
सुबह उठने पर सर भारी था।देर रात तक जगना तो मेरी आदत है पर कल बेवक़्त आये आंसुओं ने नींद को भगा दिया था।इन आँसुओं की भी न अपनी ही वजह होती है।हमलोग समझौते कर लेते हैं परिस्थितियों से,मान लेते हैं कि अब सब ठीक है ।सोच लेते हैं कि अब किसी से भी कोई उम्मीद नहीं करेंगे पर अंतर्मन शायद नहीं छोड़ता उम्मीदें करना। तभी तो वक़्त बेवक़्त आँखों से उतर पड़ते हैं दर्द की रेखाओं के सहारे।लुढ़कते हुए चुपचाप।ये नमकीन मोती भी तन्हाई ढूंढते हैं।खुलकर बहने के लिए।इन्हें भी डऱ होता है कहीं भीड़ में बाहर निकल पड़े तो सैकड़ों सवालों के जवाब कौन देगा।
काफ़ी का मग लेकर बालकनी में खड़ी हो गयी।सामने की छत पर शर्मा अंकल आंटी के सफेद बालों में कलर कर रहे थे।आंटी लगातार उन्हें डाँट रही थी ,ऐसे करो वैसे करो,तुम्हें तो कुछ नहीं आता।स्माइल आ गयी उनदोनों को देखकर।उम्र के इस पड़ाव पर आते आते प्यार के कितने रूप हो जाते हैं।बालों में फूल लगाने से सफेद बालों को रंगने तक का सफर।कितना खूबसूरत होता है प्यार।
तभी मोबाइल बजा।अंदाजा था कि किसका होगा।हर दिन तकरीबन इसी वक्त रोज उसका कॉल आना और वही रोज वाला रटारटाया सवाल पूछना।
"हेलो!"
" कैसी हो? उठ गई? तबीयत ठीक है ना तुम्हारी"
" हां ठीक है "
"उठ गई ?आवाज भारी क्यों लग रही है?
" कुछ नहीं! अभी जस्ट उठी हूं, इसलिए आवाज भारी है ..."
"ओके !और सब ठीक है? मैं शाम में कॉल करता हूं अपना ख्याल रखना"l
ये नीरव था।मेरा दोस्त।दोस्ती के कितने साल हुए ये उतना याद ,नहीं पर जीवन के उतार चढ़ाव में इसने मेरा जितना साथ दिया ,वह हमेशा याद रहेगा। फिर वह चाहे अपने पति को छोड़कर सिंगल मदर बनकर अपने बच्चों को अकेले पालने का फैसला ही क्यूँ न हो। कठिन था ये निर्णय लेना ।जब रोज रोज घरेलु हिंसा झेलते झेलते आखिरकार मैंने अकेले रहने का फैसला किया कितने प्रतिरोध का सामना करना पड़ा था मुझे। मायका ससुराल हर जगह लोगों ने मुझसे यही कहा था की औरत को बर्दाश्त करना ही पड़ता है... पर खुद पर चोट के निशान मुझे उतनी गहरी नहीं लगते थे ..जितने गहरे दरवाजे की ओट से झांकते हुए अपने बच्चे के आंखो में मुझे दिखते थे। वह पीड़ा मेरे लिए असहनीय थी ।
आखिरकार मैंने निर्णय लिया। उस समय नीरवके अलावा किसी ने मेरी मदद ना की। आज सब कुछ ठीक है ।जिंदगी अपने ढर्रे पर चल पड़ी है।
पर कल रात एक कहानी पढ़ते पढ़ते उसकी नायिका की कहानी अपनी जैसी लगी ।खुद ब खुद आँसू बहने लगे।
दिन उदास ही बीता।शाम में अचानक नीरव को देखकर चौक गई ।
"तुम!! इस वक्त मेरे घर "?
"हां ...ऑफिस से सीधा यही आ गया। आज तुम्हारी आवाज में वह खनक नहीं थी ।सब ठीक है ?
"ठीक है"
बोलने में मेरी आवाज फिर भारी हो गई ।
" नीरजा ...मैं तुम्हारी जिंदगी का हिस्सा बनना चाहता हूं |क्या मुझे अपनी जिंदगी में शामिल करोगी? हां ...मैं जानता हूं तुमने बहुत तकलीफ झेली है और किसी पर विश्वास करना अब मुश्किल है तुम्हारे लिए। पर मैं तुम्हारा वह विश्वास जीतना चाहता हूं। मैं यह तो नहीं कहता कि मैं तुम्हारा बीता वक्त लौटा पाऊंगा पर इतना जरूर है आने वाले समय में तुम्हें रोने का मौका नहीं दूंगा। कहकर उसने पॉकेट से एक रिंग निकाली और घुटनों के बल बैठ गया।
मैंने अपनी कांपती उंगलियां उसके सामने कर दी ।आंखे छलछला गयी पर इस बार ये आँसू मीठे थे....🍂🥀


#लघु_कथा✍️😊

© preet_90aii